हव्वा से तनुश्री और कंगना रनोट तक / जयप्रकाश चौकसे

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हव्वा से तनुश्री और कंगना रनोट तक
प्रकाशन तिथि : 09 अक्टूबर 2018


तनुश्री दत्ता और 'क्वीन’ कंगना रनोट ने आरोप लगाया है कि उनके सह-कलाकारों ने समय-असमय अनावश्यक रूप से उनके बदन को छुआ है और हर स्पर्श एक अभद्र संकेत रहा है। लोकल ट्रेन के भीड़ भरे डिब्बों में भी इसी तरह के स्पर्श किए जाते रहे हैं और भीड़ तथा रेल की गति को इसका कारण बताया जाता रहा है। कुछ वर्ष पूर्व एक आला पुलिस अफसर ने एक महिला के पृष्ठ भाग पर चिमटी ली थी। वह अफसर मैदानी वीरता के लिए सम्मानित किया गया था परंतु ह्रदय के कुरुक्षेत्र में वह अपनी लम्पटता को कोई कवच पहना नहीं पाया। सरकारी और गैर-सरकारी दफ्तरों में काम करने वाली महिलाएं इसे प्रोफेशनल हेजार्ड मानकर चलती हैं। ईश्वर ने स्त्री को यह शक्ति दी है कि उसकी अधखुली पीठ पर गढ़ती हुई दृष्टि को वह महसूस कर सकती है। दरअसल, नारी शरीर एक चलता-फिरता एंटीना है जो अन्य ग्रह में किए गए अभद्र संकेत भी पकड़ लेता है। अगर सारी सृष्टि में कोई एक अदालत होती तो कुछ देवता भी इस तरह के स्पर्श या स्पर्श की लालसा के अपराधी पाए जाते। संभवत: स्वर्ग के मालिक इंद्र को तो उम्र कैद ही हो जाती।

शास्त्रों से संविधान तक महिला को देवी का स्थान दिया गया है परंतु यथार्थ के धरातल पर उसका शरीर ही उसका एकमात्र परिचय है। मगरमच्छ खाया नहीं जाता परंतु मछली खाई जाती है। मछली भी विचित्र है कि स्वयं उसकी याददाश्त मात्र 5 सेकंड तक की बनी रहती है परंतु विज्ञान कहता है कि मछली खाने वालों की याददाश्त बहुत अच्छी हो जाती है।

दरअसल, नारी को केवल बदन माना जाता है और उनकी विचार प्रक्रिया जिसे आत्मा का गरिमामय नाम दिया गया है को नज़रअंदाज किया जाता है। चतुर मनुष्य ने अपनी दमित इच्छाओं के लिए नज़र को दोषी ठहराया है, जबकि नज़र वहीं देखती है जो आप की दबी हुई इच्छा चाहती है। शायद इसलिए फिल्म गीत लिखा गया, 'नजरों के दिल से, दिल की नज़र से हम देखते हैं’। राज कपूर और नरगिस के अलगाव के बाद गीतकार ने जानकर मुखड़ा लिखा 'किसी नरगिसी नज़र को दिल देंगे हम’ परंतु राज कपूर ने इसे अभिनीत करने से इंकार कर दिया तो यह मधुर गीत हास्य कलाकार मारुति पर फिल्माया गया। जिनके प्रेम में गरिमा होती है, वे अपना अलगाव भी शालीनता से जीते हैं और गाते हैं। 'आंसू भरी है जीवन की राहें, कोई हमें कह दे कि हम उन्हें भूल जाएं।’ नारी देह हमारी सामूहिक दुखती रग रही है और इसका सिलसिला सदियों पूर्व से चला आ रहा है। एक पवित्र आख्यान में नदी के किनारे एक स्त्री स्नान कर रही है।

कवि वर्णन करता है कि एक लोटा पानी जो उसने अपने सिर पर डाला तो उस पानी को उसके चरण तक आने में एक प्रहर लगा जैसे अनेक घुमावदार पहाड़ों व घाटियों से गुजरता हुआ आया है। संभवत इसी से प्रेरित एक फिल्मकार ने अपनी तीन फिल्मों में नायिका को जलप्रपात पर स्नान करते दिखाया है। इसी प्रेरणा से एक साबुन के विज्ञापन में भी महिला जलप्रपात के नीचे स्नान कर रही है गोयाकि विज्ञापन का आशय था कि इस साबुन में एक जल प्रपात कैद है।

एक दौर में मॉडेस्टी ब्लेज और विली गार्विन काल्पनिक पात्र गढ़े गए थे। एक मकान में मॉडेस्टी ब्लेज और गार्विन घिर गए हैं। चारों ओर हथियारों से लैस शत्रु खड़े हैं। मॉडेस्टी ब्लेज अपने सारे वस्त्र उतार देती हैं और दरवाजा खोलकर बाहर निकलती है। सारे शत्रु अवाक खड़े रह जाते हैं, वे इतने सुन्न हो जाते हैं कि गोली नहीं चलाते और विलि गार्विन की मशीनगन का शिकार हो जाते हैं। वर्तमान में देश के प्रमुख अंग्रेजी अखबार में एक चित्रमय कथा प्रकाशित होती है। उसकी नायिका भी अधखुले बदन को शस्त्र की तरह प्रयोग करती है।

कवर पृष्ठ पर अधखुले बदन की तस्वीरों वाली कामुकता केंद्रित पत्रिकाओं का प्रकाशन होता रहा है। प्रकाशन उद्योग ने लम्पटता को खूब भुनाया है। गंभीर साहित्य भी इसी तरह बेचा गया है। नारी बदन कारू का खजाना रहा है और लूट-खसोट जारी है। संभवत: आईना खोजकर पुरुष ने स्त्री के खिलाफ षड़यंत्र का प्रारंभ किया। उसके अवचेतन में ठूंसा गया कि वह स्वयं को निहारती रहे और अग्नि गर्भा रूप गर्विता बनकर सिमट जाए। बकौल सारा शगुफ्ता सच्चाई यह है कि 'औरत का बदन ही उसका वतन नहीं होता, वह कुछ और भी है। पौरुष के झंडे लिए घूमने वालों, औरत जमीन नहीं कुछ और भी है, लम्पटता के पंछियों को क्या पता, औरत आकाश नहीं, कुछ और भी है।’