हाँसी बोललै माय / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
हँसना तेॅ स्वभाव छेलै सीता रोॅ जे जन्मजात दैबें उनका उपहार देनें छेलै। परसलोॅ थाली सें भोजन रोॅ कौर उठाय केॅ सोनमनी अब तांय कहियो नै छोड़नें छेलै। खाना पर सें बीचैं में उठतेॅ देखी केॅ सीता बेटा केॅ टोकलकै-"सोनमनी, थरिया पर सें बिना खैंनें उठी गेलोॅ। मोॅन ठीक नै छौं की या कनियैनी सें झगड़ा करनें छोॅ?"
"माय, जमींदारेॅ ऐन्होॅ बात कहनें छै कि मनोॅ केॅ मथ्थी रेल्होॅ छै। तोरा सें कहै के हिम्मतेॅ नै होय छै।"
"दुनियां में ऐन्होॅ कोनोॅ बात नै छै जे माय सें नै कहलोॅ जाबेॅ पारै। माय तेॅ संतान लेली दुखमोचन होय छै। बोली सें भी दुख हरी लै छै। बोलोॅ, की बात छै?"
सोनमनी सभ्भेॅ बात माय केॅ विस्तार सें कहि केॅ सुनैलकै। माय हाँसलै। सोनमनी अचरज सें बोललै-" माय, तोंय हाँसै छोॅ?
"बस अतने टा बातोॅ लेॅ तोंय खैबोॅ छोड़ी देलेॅ रहोॅ। टाका होय जैतेॅ। तोंय पैन्हेॅ हमरा आगू में बैठी केॅ खाना खा।"
सोनमनी खाना खैलकै। मनरुपा आरो बिहारी दूनोॅ माय-बेटा के बीच रोॅ बात ध्यान सें सुनै लागलै। बियालीस बीघा जमीन। बत्तीस सौ टाका। ई दूनोॅ बात ओकरा दुनोॅ ससुर-पुतोहु के समझ सें बाहर के बात छेलै, अजूबा, अजगुत।
सीते बोललै-"यहेॅ सपना पूरा करै लेली आय बीस-पच्चीस बरसोॅ सें टाका हम्में जोगी, सैंती केॅ राखलेॅ छियै। ताँबा के कलसी में सात-आठ कलसी टाका पुवारी बड़का घरोॅ में जहाँ जंगला लगला पर हम्में सुतै छेलियै। तोरा याद होतौं सोनमनी, हम्में तोरा जिद करला पर भी पुरनका तरी सें तनियो टा हिन्नेॅ-हुन्नेॅ कोड़ेॅ-खानै नै देनें छेलियै। वही घरोॅ में एकदम बीचोॅ में कलसी में टाका गाड़ी-गाड़ी हम्में राखनें छियै। केकरोह सें माँगेॅ लेॅ शायद नै पड़तौं।"
सोनमनी "धन्य छौं तोय माय ' कहि केॅ गोड़ोॅ पर बच्चा नांकी लोटी गेलै। मनरुपा धरती पर पेटकुनियां दैकेॅ सीता रोॅ चरण छूलकै आरो बिहारी कहलकै-" सैंतनी, जोगनिया कुलवंती सीता। ई खानदान के आबेॅ वाला सात पीढ़ी तक तोरा याद करतौं। तोरा नांकी स्त्राी नै होलोॅ छै कलियुग में, नै होतै आरो जौं होतै तेॅ उ$ खानदान के नाम युग-युग तांय बरतै। "
सीता फेरू हाँसलै। बेटा पुतोहू केॅ आशीर्वाद देतें हुअें पाँजोॅ में भरी लेलकै-"घोॅर जरलोॅ पर सोनमनी केॅ ई टाका के बारें में नै बतैलियै, हमरोॅ संकल्पेॅ छेलै कि ई जोगलोॅ टाका जमीनें खरीदेॅ में निकालबै। हमरोॅ ई सपना पूरा होतै। यहेॅ हमरा खुशी छै। अकबाल सोनमनी के. बढ़ेॅ, फलेॅ, फूलेॅ।"
नीलामी के दिन कचहरी पर खचाखच भीड़ छेलै। कागजोॅ के पैसा रोॅ चलन नै छेलै। चाँदी या तांबा के टाका चलै छेलै। बत्तीस सौ टाका लै जाय केॅ मतलब छेलै सात माथोॅ। सात मजदूरोॅ सें कम के ढ़ोना संभव नै छेलै। सोची समझी केॅ सोनमनी पालकी पर बैठलै आरो पीछू-पीछू बैलगाड़ी पर टाका। गाड़ी पर गाड़ीवानोॅ साथें बिहारी रौत टप्परोॅ में बैठलोॅ कचहरी पहुँचलै। केकरोह समझै में नै ऐलै कि ई की होय रहलोॅ छै। जेकरा देखलोॅ नै गेलै वें कहलकै-"आपनोॅ-आपनोॅ भाग्य। सोनमनी के चलती चली गेलै।"
नीलामी में कोय दोसरोॅ नै टिकेॅ पारलै। तहसीलदार महावीर दासें सोनमनी सें पूछलकै-" की सोनमनी बाबू, ई जमीन केकरा नामें होतै।
"माय सीता देवी, जौजे बिहारी रौत।"
जमींदार खोखा बाबू आदेश देलकै-"मंगल, तोंय मजमून लिखोॅ। दसखत, टीप, भीतर आबी केॅ लै लिहोॅ" आरो हुनी सोनमनी केॅ लैकेॅ भीतर कोठरी में चल्लोॅ गेलै। तीस-बत्तीस बरसों के दूनो छवारीक राम-लखन जुगां ही लागै। खोखा बाबू गोरोॅ दीप-दीप, लाल टूहटूह आरो सोनमनी रामें रंग समता साम वरन।
हँसी केॅ सोनमनी बोललै-"हमरा लागै छेलै कि तोंय भूली जैभोॅ। बच्चा में खेललोॅ-खैलोॅ बड़ा आदमी रो बच्चा की याद रखतै। मतुर तोंय खोखा आदमी नामोॅ के परमपत राखी केॅ आदमी के मान बढ़ाय देलोह। तोरोॅ ई उपकार हम्में कहियो नै भूलभौं।"
खोखा बाबू यै बातोॅ पर मुस्कुरैतें बोललै-"बचपन रोॅ वहेॅ समय जोगी केॅ राखै के चीज छेकै। यहाँ सें गेला के बाद तोरा एक क्षण लेली भी भूलेॅ नै पारलियोह।"
आरो खोखा सोनमनी केॅ गल्ला सें लगाय लेलकै।