हाइकु-चिंतन एवं सृजन की कृति-वैश्विक हिन्दी-हाइकु / सुरंगमा यादव

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हाइकु रूपी पौधा डॉ. सत्यभूषण वर्मा ने रोपा, डॉ. सुधा गुप्ता तथा डॉ. भगवतशरण अग्रवाल ने अपनी रचनाधर्मिता से उसे पोषण प्रदान किया एवं उसकी अभिवृद्धि व प्रचार-प्रसार में सतत् संलग्न हैं डॉ. हरदीप कौर संधु तथा रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' । हाइकु में गंभीर सर्जन कर्ताओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है; परंतु इस विधा में भी आत्मप्रवंचना करने वालों की कमी नहीं है। हाइकु की लघुता ही उसका वैशिष्ट्य है साथ ही रचनाकार की काव्यकला की कसौटी भी। किसी भी रस या कला का आस्वादन करने के लिए रसिक मन होना परमावश्यक है, हाइकु के विषय में भी यह बात सत्य है। अन्यथा तो बिहारी के शब्दों में-

वे न इहाँ नागर बढ़ी जिन आदर तो आब।

फूल्यौ अनफूल्यौ भयौ गँवई गाँव गुलाब॥

'वैश्विक हिन्दी हाइकु-चिंतन एवं सृजन' रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा संपादित यह पुस्तक हाइकु-चिंतन एवं हाइकु सर्जन दो प्रधान अनुभागों से सज्जित है। प्रथम भाग हाइकु-चिंतन में सर्वप्रथम डॉ. कुँवर दिनेश सिंह का एक विशेष आलेख 'हाइकुः बाशो की समय चेतना' में बाशो की अनुभूत सत्य से प्रेरित हाइकु सर्जन की कला पर प्रकाश डाला है। डॉ. कुँवर दिनेश सिंह लिखते हैं-" जैन बौद्ध धर्म से प्रभावित बाशो ने अपनी कविता में एक रहस्यमयी प्रवृत्ति का संचार किया और सरल प्राकृतिक छवियों के माध्यम से शाश्वत एवं सार्वभौमिक विषयों को व्यक्त करने का प्रयास किया। ...कवि मात्सुओ बाशो की समय-चेतना वर्तमान से अतीत और पुनः वर्तमान में और कभी भविष्य की स्थितियों में पहुँच जाती है और समय के नैरन्तर्य को दार्शनिक आयाम देती हुई प्रतीत होती है। निम्न हाइकु में वर्तमान और अतीत का युग्मित भाव देखा जा सकता है-

ग्रीष्म घास में / पुराने योद्धाओं के / शाही सपने।

वर्ष 2021 में प्रकाशित वैश्विक हाइकु संग्रहों की शृंखला में 'सप्तपदी' संपादक-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , समीक्षक-डॉ. सुरंगमा यादव। 'सप्तपर्णा' संपादक-डॉ. कविता भट्ट, समीक्षक-रश्मि विभा त्रिपाठी। 'सप्तस्वर' संपादक-डॉ.कुँवर दिनेश सिंह, समीक्षक-डॉ कविता भट्ट। 'सप्तरंग' संपादक-डॉ. सुरंगमा यादव एवं कृष्णा वर्मा, समीक्षक-डॉ. कविता भट्ट। 'शैल शिखर' सम्पादक-डॉ. हरदीप कौर संधु एवं डॉ. कविता भट्ट, समीक्षक-ऋता शेखर 'मधु।' स्वर्ण शिखर'संपादक-श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , समीक्षक-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव द्वारा लिखी गई उत्कृष्ट कोटि की समीक्षाओं को स्थान दिया गया है। ये सभी संग्रह ऐतिहासिक महत्त्व के हैं इनमें स्थापित हाइकुकारों के साथ-साथ नई प्रतिभाओं को प्रकाश में लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है। अल्प समय में हाइकु पर उक्त संपादित संग्रहों का आना अपने आप में विषेश है।

मौलिक एवं संपादित संग्रहों के साथ-साथ अनुदित हाइकु-संग्रह भी निरंतर प्रकाशित हो रहे हैं। इस दिशा में डॉ. कविता भट्ट द्वारा बेहद महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है। आपने विश्व के पाँच देशों के 43 हाइकुकारों के 468 हाइकु का गढ़वाली में 'काँठा माँ जून' (पहाड़ी पर चंदा) शीर्षक से अनुवाद किया है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए रश्मि विभा त्रिपाठी द्वारा 'भुरुका आई' (उषा आएगी) शीर्षक से पांच देशों के 41 हाइकुकारों के हाइकुओं का अवधी भाषा में अनुवाद किया है। डॉ.कुँवर दिनेश सिंह ने हिन्दी के 32 हाइकुकारों के 147 हाइकुओं का अंग्रेज़ी में 'फ्लेम ऑफ द फॉरेस्ट' नाम से गुणात्मक अनुवाद किया है। अनुवाद अपने-आप में बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि अन्य भाषा या बोली में छंद का अनुशासन, संप्रेषण एवं मूल भाव का संरक्षण काफ़ी कठिन होता है। अनुवाद भाषाओं के अंतर्निहित सम्बंधों को प्रगाढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन तीनों ही अनुदित संग्रहों की समीक्षा इस पुस्तक में रखी गई है। हाइकु पर शोध कार्य भी प्रगति पर है। डॉ. पूर्वा शर्मा ने शोधार्थी के रूप में हाइकु पर उल्लेखनीय कार्य किया है। उनके शोध प्रबंध 'आधुनिक हिन्दी कविता में हाइकु का स्वरूपःएक अनुशीलन' का वर्ष 2020 में पुस्तक के रूप में 'हाइकु की अवधारणा और हिन्दी हाइकु संसार' शीर्षक से प्रकाशन हुआ है। यह पुस्तक समीक्षात्मक एवं शोध परक पुस्तक लेखन की परंपरा में अपना स्थान बनाने में तथा हाइकु के वैशिष्ट्य को निरूपित करने में पूरी तरह सफल रही है। इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का परिचय भी हमें आलोच्य पुस्तक में प्राप्त होता है।

समीक्षित पुस्तक के द्वितीय अनुभाग हाइकु-सृजन में भारत के 58 नए-पुराने हाइकुकारों तथा ऑस्ट्रेलिया, मॉरिशस, यू. एस.तथा कनाडा के 10 हाइकुकारों के विविधवर्णी हाइकु भी पढ़ने को मिलते हैं, जिनमें यादों की कसक है, प्रतीक्षा में सूखते आंसू हैं, प्रकृति का माधुर्य है, रिश्तों की कड़वी सच्चाई है, यादें हैं, मन की मृगतृष्णा है, नारी स्वावलंबन की गूँज के साथ और भी बहुत-से भाव गुम्फित हैं। एक बानगी प्रस्तुत है-

भेद तो खोल / कीड़े खाए पपीहा / मधु से बोल-डॉ. सुधा गुप्ता

हुए दुष्कर / दो चार सच्चे आंसू / मरने पर-डॉ. गोपाल बाबू षर्मा

हुआ विकास / नींव को छोड़ छतें / चढ़ीं आकाश-नीलमेंदु सागर

उर शिलाएँ / दबा न पायीं यादें / फूटा प्रपात-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

सहला गया / झोंका ठंडी हवा का / ज्यों स्पर्श माँ का-सुदर्शन रत्नाकर

सूर्य गुलाबी / सांझ ढले झील की / बढ़ी बेताबी-डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

नैन सूखे हैं / प्रतीक्षा है मुखर / मूक अधर-डॉ. कविता भट्ट

नारी कहो न! / क्या लता ही रहोगी? / वृक्ष बनो न-डॉ. सुरंगमा यादव

केशों में चाँदी / स्वर्ण मृग मन में / उम्र ठगिनी-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

लगे बरसों / मन की कहने में / कल परसों-डॉ. भीकम सिंह

कहीं कमी है / रिश्तों के आइने में / धूल जमी है-रश्मि विभा त्रिपाठी

निःसंदेह 'वैश्विक हिन्दी-हाइकु चिंतन एवं सृजन' एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है; क्योंकि इसमें जहाँ एक ओर हाइकु पर सद्यः हुए कार्यों का ब्योरा है, जो हाइकु प्रेमियों, अध्येयताओं, तथा आलोचकों को ठोस विषयवस्तु उपलब्ध कराती है, तो दूसरी ओर हाइकु पाठकों को रससिक्त करने की सामर्थ्य भी रखती है।

" 'वैश्विक हिन्दी-हाइकु चिंतन एवं सृजन: संपादक-श्री रामेश्वर काम्बोज' हिमांशु' , संस्करण-2023

मूल्य-320 / -, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, जे-19 / 39, राजापुरी, उत्तम नगर नई दिल्ली-11005" '