हाइकु साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण कृति-सप्तपदी / सुरंगमा यादव
'सप्तपदी' रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी के श्रम बिन्दुओं का प्रतिफल है। 'सप्तपदी' में सात श्रेष्ठ हाइकुकारों के उत्कृष्ट हाइकु संगृहीत हैं साथ ही संख्या की दृष्टि से भी पर्याप्त हाइकु हैं। अधिकतर संपादित संकलनों में हाइकुकारों की संख्या तो अधिक होती है, परंतु प्रत्येक हाइकुकार के हाइकु अत्यल्प होते हैं, इस दृष्टि से यह संग्रह अपने-आप में विशिष्ट है। चुनिंदा सात हाइकुकारों के बड़ी संख्या में एक ही स्थान पर हाइकु का संग्रह होने से पाठक को अपनी रुचि के हाइकु सहज ही उपलब्ध हो जाएँगे तथा हाइकुकार के भाव-विचार, शिल्प व शैली को भी काफ़ी हद तक समझा जा सकेगा। 'सप्तपदी' का आवरण आकर्षक है। प्रतीकात्मक रूप से संकलित सात हाइकुकारों के पद-चिह्नों में से कुछ तो हाइकु के पथ पर अपने अमिट पग-निशान छोड़ने में पूर्णतया सफल हैं तथा कुछ इस ओर अग्रसर हैं। 'सप्तपदी' में सात हाइकुकारों के विभिन्न विषयाधारित 624 हाइकु हैं। हाइकु को हिन्दी साहित्य में सुप्रतिष्ठित करने वाली डॉ. सुधा गुप्ता 'सप्तपदी' की प्रथम शोभा हैं। अनेक हाइकु संग्रहों द्वारा हाइकु साहित्य की श्री वृद्धि करने के साथ-साथ आपने 'हिन्दी हाइकु प्रकृति काव्यकोश' का संपादन कर अभूतपूर्व कार्य किया है। गहन भावबोध व सौंदर्य-चेतना से संपन्न आपके हाइकु अलग ही छाप छोड़ते हैं। मन के किसी कोने में सोई स्मृतियों के उद्वेलन का दृश्य द्रष्टव्य है-
किसी की याद / फिर फड़फड़ायी / छाती में फ़ाख़्ता।
इसी प्रकार-सूखता कंठ / मधु स्मृतियाँ जैसे / दो घूँट पानी।
द्वितीय रचनाकार रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' हैं, जो कि इस कृति के संपादक भी हैं, आप हिन्दी हाइकु के विकास और प्रचार-प्रसार में सतत् संलग्न हैं आपके तीन हाइकु संग्रह व कई संपादित संकलन प्रकाशित हुए हैं। 'सप्तपदी' के साथ ही आपके मार्गदर्शन में 'सप्तक शृंखला' का आरंभ हुआ है, जो हिन्दी हाइकु के क्षेत्र में निश्चय ही अति महत्त्वपूर्ण कार्य सिद्ध होगा। आपके हाइकु में भावुक मन का निश्छल व उदात्त प्रेम देखते ही बनता है-
तू मेरी झील / अवगाहन करूँ / सौ-सौ जनम।
प्रिय की पीर की अनुभूति देखिए-
परदेस में / उठी तुमको पीर / मैं था अधीर।
डॉ. कुँवर दिनेश सिंह सृजन, संपादन व अनुवाद द्वारा हाइकु को उच्च सोपानों पर ले जा रहे हैं। आपने हाइकु रूपी तूलिका से प्रकृति के बड़े मन-मोहक चित्र खींचे हैं-
सूर्य गुलाबी / साँझ ढले झील में / बढ़ी बेताबी।
बढ़ते शहरीकरण को प्रकृति के माध्यम से कितनी खूबसूरती से आपने कहा है-
हिम जो झरे / कंक्रीट का शिमला / घावों को भरे।
कमला निखुर्पा विगत लगभग दस-बारह वर्षों से हाइकु सर्जन कर रही हैं। आपके हाइकु में लोक जीवन जीवंत हो उठता है। भाई की याद आने पर बचपन की शरारतों के दृश्य साकार हो उठते हैं-
आई हिचकी / अभी-अभी भाई ने / चोटी ज्यों खींची।
ममता की पराकाष्ठा है-
मैं रो पड़ी / भीगा-भीगा-सा होगा / आँचल तेरा।
विभिन्न विधाओं में सृजनरत डॉ. कविता भट्ट 2014 से हाइकु लेखन में संलग्न हैं। आपकी भाषा व शब्द चयन भावों को बड़ी सहजता से वहन कर लेता है। शब्दों की गहराई में उतरकर ही आपके हाइकु का भाव आत्मसात् किया जा सकता है-
प्रतीक्षारत / मैं योगिनी-सी ही हूँ / तुम महेश।
मिलन-राग / प्रतीक्षा तुम गाओ / पी को सुनाओ।
डॉ. जेन्नी शबनम का इसी वर्ष 'प्रवासी मन' शीर्षक से हाइकु संग्रह प्रकाशित हुआ है। आपके हाइकु की एक बानगी द्रष्टव्य है-
जिंदगी बीती / जैसे शोर मचाती / आँधी गुजरी।
फुर्र से उड़ा / ज्यों ही तू घर आया / दर्द का पंछी।
नवोदित हाइकुकार रश्मि विभा त्रिपाठी ने अत्यल्प समय में ही अपनी रचनाधर्मिता के प्रति आश्वस्त किया है। 'सप्तपदी' में आपका होना इसका स्वतः प्रमाण है। कोमल भाव संपन्न हैं आपके हाइकु-
जी उठे पात / देता ओस चुम्बन / नवजीवन।
प्रेम-पाँखुरी / सुगंधित सलोना / उर का कोना।
समृद्ध भाषा-भाव व हाइकु की कसौटी पर खरी इस कृति में जीवन के विविध पक्षों के हाइकु अनुस्यूत हैं। मनभावन ऋतुएँ, आकाश नापती बेटियाँ, यादों के फूटते प्रपात, जीवन-संघर्ष, मिलन-विछोह, प्रेम-पीड़ा, प्रकृति के विभिन्न उपादान-झील, हिम, नदी, वृक्ष, सूर्य-चाँद, प्रेम की डोर से बँधे मन के रिश्ते आदि पर प्रचुर संख्या में हाइकु का पाठक रसास्वादन कर पायेंगे। शोधार्थी व पाठक वर्ग के बीच 'सप्तपदी' निश्चय ही लोकप्रिय होगी।
सप्तपदी (हाइकु-संग्रह) : सं-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , मूल्य: 250 रुपये, पृष्ठ: 112, संस्करण: 2021, प्रकाशक: अयन प्रकाशक, 1 / 20 महरौली, नई दिल्ली-110030