हास्य कलाकार कपिल शर्मा की त्रासदी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :13 अप्रैल 2018
कपिल शर्मा का कार्यक्रम निरस्त किया जा सकता है। चैनल गंभीरता से विचार कर रहा है। कपिल शर्मा अनेक बार शूटिंग पर नहीं पहुंचे और कार्यक्रम के लिए आमंत्रित सितारों को अपना समय नष्ट करने से अधिक दुख इस बात का है कि कपिल शर्मा ने कोई पूर्व-सूचना भी नहीं दी। कपिल शर्मा से संपर्क नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपना मोबाइल बंद कर दिया है। उनके कुछ मित्र कलाकार उनसे मिलने के लिए गए तो उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा। कपिल शर्मा ने स्वयं को अपने कोप भवन में बंद कर लिया है। उनकी भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमिकाओं का विचार है कि कपिल को मनोचिकित्सा की आवश्यकता है। ज्ञातव्य है कि दिलीप कुमार ने लगातार त्रासदी फिल्मों में अभिनय किया तो वे नैराश्य से घिर गए। लंदन के डॉक्टर के परामर्श पर उन्होंने हास्य फिल्मों में अभिनय किया गोयाकि अभिनय एक इलाज भी है, असाध्य रोगों का इलाज भी किया जा सकता है। क्रॉस वर्ड पहली भरना भी एक इलाज है। इसे करने वाले बुद्धि के विकार से बच सकते हैं। उम्रदराज लोगों को इससे लाभ होता है। उम्रदराज नैराश्य पीड़ित महिलाओं को स्वेटर बुनना चाहिए गोयाकि 'बुनते रहिए ख्वाब दम ब दम'।
कुछ उम्रदराज लोगों की संतानें विदेश में कार्यरत हैं और अकेलेपन से बचने के लिए वे वृद्धाश्रम में भर्ती हो जाते हैं ताकि उन्हें साथ मिले। तन्हाई को साधना अत्यंत कठिन है। आजकल फाइव स्टार होटलों की तरह सुविधाजनक वृद्धाश्रम भी खुल गए हैं, क्योंकि उनकी संतानें अमेरिका में डॉलर कूट रही हैं। एक फिल्म में आधी रात एक अनाथालय में आग लग जाती है। सभी बच्चे बचा लिए जाते हैं और समीप के वृद्धाश्रम में भेज दिए जाते हैं। उनके लिए दूसरा अनाथालय खोजने में समय लगना था। वृद्ध लोग शोर बचाते बच्चों को सख्त नापसंद करते हैं और बच्चे भी इन गुमसुम लोगों के साथ खुद को असहज महसूस करते हैं परंतु धीरे-धीरे उन बच्चों की स्वाभाविकता के प्रभाव में उम्रदराज लोगों को अपना बचपन याद आने लगता है और बच्चे भी उनमें अपने पिता, दादा, नाना की झलक पाते हैं और सब कुछ सामान्य हो जाता है।
इस फिल्म का एक मार्मिक दृश्य इस प्रकार है कि एक उम्रदराज की मृत्यु हो जाती है और उसके सभी साथी यह तय करते हैं कि मृत्यु की बात बच्चों से छिपाई जाए और देर रात मरने वाले की शवयात्रा निकाली जाए। वे अपनी ओर से पूरी सावधानी रखते हुए आधी रात को शव को श्मशान भूमि ले जाते हैं। वहां वे तमाम बच्चे पहले से मौजूद हैं। अनाथालयों में बच्चे जल्दी वयस्क होते हैं और वृद्धाश्रम में रहने वालों की मृत्यु समय से थोड़े पहले आ जाती है। अपनों द्वारा अनदेखा किया जाना बड़ा कष्टप्रद होता है। हर उम्रदराज के अवचेतन में एक शिशु हमेशा अक्षुण्ण रहता है। इस महान फिल्म का नाम था 'ए बुक ऑफ विशेज'।
बहरहाल, कपिल शर्मा द्वारा रचा गया हास्य अत्यंत फूहड़ और कुछ हद तक अश्लील भी रहा है। वे अपने रचे फॉर्मूले का ही शिकार हो रहे हैं। सफलता के लिए निरंतर फूहड़ता रचना आज भारी पड़ रहा है। सफलता सीधे उनकी विचार शैली में गहरे पैठ गई। सफलता का सफेद घोड़ा शेर की गंध से अपने होश खो देता है और सवार को शेर के पास फेंककर भाग जाता है। कपिल शर्मा सारे समय बतियाते रहे हैं। यहां तक कि सह-कलाकार को अपना संवाद पूरा भी अदा नहीं करने देते। वे स्वयं संवाद हथिया लेते थे।
एक समय था जब मेहमूद इतने सफल हास्य कलाकार थे कि उन्हें नायक से अधिक मेहनताना मिलता था। वे स्वयं को जगाए रखने की दवा खाते थे। उस दौर में मेन्ड्रैक्स नामक गोली कुछ छात्र भी सेवन करते थे। इस तरह काम करते रहने के कारण मेहमूद बीमार पड़ गए। अनेक असफल प्रेम प्रकरण भी हुए। मेहमूद ने पहले घोर संघर्ष किया था। एक दौर में वे मीना कुमारी की कार के ड्राइवर भी रहे हैं। उनके संघर्ष के दौर में पहली बड़ी भूमिका उन्हें राज कपूर अभिनीत 'परवरिश' में मिली। इस रोचक फिल्म में एक धनाढ्य व्यक्ति की पत्नी अस्पताल में एक पुत्र को जन्म देती है। घटनाक्रम कुछ ऐसा हो जाता है कि नर्सरी में बच्चों को पहचान पाना कठिन है। अत: धनवान व्यक्ति दो बच्चों को घर ले आता है, जिसमें एक उसका अपना है और दूसरा एक तवायफ का बच्चा है। तवायफ के भाई को भी साथ लाना होता है। इस फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन के प्रमुख सहायक दत्ताराम ने दिया था। दत्ताराम का गीत 'आंसू भरी है ये जीवन की राहें, कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं' बहुत यादगार सिद्ध हुआ। इसमें एक हास्य गीत भी था 'मामा ओ मामा'। इसी फिल्म में राज कपूर के साथ समानांतर नायक की भूमिका मेहमूद ने अदा की और सफलता के दरवाजे खुल गए।
उन दिनों दक्षिण भारत की फिल्मों में मूल-कथा के साथ एक उपकथा भी होती थी जिसका मूल कथा से कोई सम्बंध नहीं होता था। इन्हीं फिल्मों के मुंबइया संस्करण में उपकथा के नायक मेहमूद और नायिका शुभा खोटे होती थीं। बहरहाल, कपिल शर्मा अपने 'मेहमूदी मेन्ड्रैक्स' के दौर में हैं और उन्हें मनोचिकित्सक मदद कर सकते हैं परंतु इसके पूर्व उन्हें स्वयं की मदद करनी होगी कि अपने कार्यक्रम से फूहड़ता खारिज करें। अगर वे जॉनी वॉकर अभिनीत फिल्में बार-बार देखें तो अपने फूहड़पन से मुक्त हो सकते हैं। जॉनी वॉकर ने 'निर्मल आनंद' की रचना की थी। राजेश खन्ना अभिनीत ऋषिकेश मुखर्जी की 'आनंद' में थीम संवाद 'जॉनी वॉकर' ने ही अदा किया था।
कैन्सर के सबसे अधिक रोगी भारत वर्ष में हैं। सरकार बेखबर और बेपरवाह है। छिंदवाड़ा में जन्मे अक्षय पहारे अपनी कैन्सर पीड़ित मां का इलाज नागपुर में करवा रहे हैं और उन्हें अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी है। कैन्सर रोगी का पूरा परिवार ही अपंग-सा हो जाता है। इस तरह जाने कितने लोग पीड़ित हैं और ऐसे में कपिल शर्मा छद्म रोग के शिकार हो रहे हैं।