हास्य लेखन की अपंगता के परिणाम / जयप्रकाश चौकसे

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हास्य लेखन की अपंगता के परिणाम
प्रकाशन तिथि :06 जून 2016


अपनी स्थूल काया के कारण टुन टुन को हास्य भूमिकाएं लंबे समय तक मिलती रहीं। उनका असली नाम उमा देवी था और इस नाम से उन्होंने अनेक मुधुर गीत गाए थे। विगत कुछ समय से भारती छोटे परदे पर हास्य अभिनय करती हैं। टुन टुन की तरह स्थूल काया के आधार पर उनके लिए हास्य रचा जाता है। अगर ऐसी स्थूल काया के किसी कलाकार को हृदय रोग हो जाए और डॉक्टर के परामर्श पर उन्हें अपना वजन घटाना पड़े, क्योंकि जीवित बने रहने के लिए आवश्यक है, तब उन्हें काम नहीं मिलेगा। उनका हास्य मुटापा आधारित रहा है और दुबला होते ही काम नहीं मिलेगा और रोजी-रोटी के लाले पड़ जाएंगे। यह कैसी विडम्बना है कि रोजी-रोटी का आधार रोग में घातक सिद्ध हो रहा है। यह सबसे त्रासदायक चुनाव हो सकता है कि एक तरफ कॅरिअर है, दूसरी तरफ जीवन।

इंदौर के बदरुद्‌दीन पियक्कड़ का अभिनय करते थे और उन्हें जॉनी वॉकर का नाम दिया गया, जबकि यथार्थ जीवन में वे पांच वक्त के नमाजी व्यक्ति थे और शराब को उन्होंने कभी छुआ तक नहीं था। उनकी रोजी बन गया पियक्कड़ का अभिनय। बाद में उन्हें विविध भूमिकाएं भी मिलीं, परंतु कॅरिअर का 'स्थायी' हमेशा पियक्कड़ छवि रही। किसी दौर में गोप नामक हास्य अभिनेता की भी स्थूल काया थी और वही उनकी असमय मृत्यु का कारण बनी। ऐसा कई बार हुआ कि कलाकार ने अपना हृदय रोग छुपाए रखा, ताकि भूमिकाएं मिलती रहें। हरीभाई जरीवाला उर्फ संजीव कुमार को खाने-पीने का शौक था और अमेरिका में हृदय रोग की शल्यक्रिया कराने के बाद भी वे अधिक समय जीवित नहीं रहे।

इस तरह के प्रकरण सिनेमा तक सीमित नहीं हैं। लोग रस्सी पर चलने का करतब दिखाकर रोजी-रोटी कमाते हैं। कुछ लोग अपनी उघड़ी पीठ पर स्वयं बेहिसाब कोड़े बरसाते हैं और तमाशबीन उन्हें पैसा देते हैं। सारी रात पीठ का इलाज करते हैं और सुबह फिर कोड़े का तमाशा करते हैं, क्योंकि 'कोड़ा जो भूख है, उस पर तरह-तरह नाच के दिखाना यहां पड़ता है।' कितने ही नेता बेहद बीमार हैं और लुक-छुपकर अपना इलाज करा रहे हैं, परंतु बात के उजागर होते ही उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है। इस तरह की प्रवृत्तियां बीमार देश की रचना कर रही हैं और हमारा गणतंत्र बीमारों द्वारा बीमारों के लिए बीमार चला रहे हैं। नेताओं में डॉक्टर की हैसियत रखने वाला नेता स्वयं अत्यंत बीमार है। राजनीतिक दल जनरल वार्ड में बदल चुके हैं और शीर्ष नेता होने के लिए सबसे अधिक बीमार होना आवश्यक है।

यह भी गौरतलब है कि नेता अपना इलाज विदेश में कराते हैं और क्यों न कराएं, विदेशी सोच भी तो उनका ही है। नेता उन भारतीय अस्पतालों में इलाज नहीं कराते, जिनमें उनकी प्यारी जनता इलाज कराती है। विगत समय भारत में सबसे अधिक लाभ शिक्षण संस्थाएं कमाती हैं और दूसरे क्रम पर पांच सितारा होटलनुमा निजी अस्पताल खुल गए हैं। तीसरे क्रम पर लाभ कमाने वाला व्यवसाय रेस्तरां और होटल है। स्कूल, अस्पताल और भोजनालय भारतीय जीवन में धन कमाने की त्रिवेणी है।

अब यह कृषि प्रधान देश नहीं रहा। इन तीनों व्यवसायों के मालिक नेता हैं। नेतागिरी से अधिक धन किसी अन्य क्षेत्र में नहीं कमाया जा सकता। फिल्म शूटिंग में एक्शन दृश्य में डुप्लीकेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। उसकी सुरक्षा के इंतजाम होते हैं, फिर भी कुछ हादसे हुए हैं। यह 'बॉडी डबल' का व्यवसाय भी खतरों से भरा है, परंतु यही उनकी रोजी-रोटी है। इस विषय पर हॉलीवुड में 'स्टंट मैन' नामक फिल्म बनी थी। हिंदुस्तानी में 'स्टंट मैन' बनी है। कुछ सितारों ने भी भूमिकाओं के अनुरूप अपने वजन घटाए या बढ़ाए हैं गोयाकि शरीर की बांसुरी में परिवर्तन किए हैं। आमिर खान इस तरह के काम कर चुके हैं। चौथे दशक की किसी फिल्म में कमाल का गीत लिखा था, 'विरहा ने कलेजा यूं छलनी किया मानो जंगल में बांसुरी पड़ी हो।' गौरतलब यह है कि जिस लकड़ी या बांस से बांसुरी बनती है, उसमें संगीत नहीं होता। यह कमाल बांसुरी बनाने वाले का है और उससे अधिक श्रेय उसे बजाने वाले को जाता है। इसी तरह तबले पर कसी खाल जिस पशु की है, उसे त्रिताल बजाना नहीं आता। मनुष्य की त्वचा से तबला नहीं बनता। सारे जानवरों की त्वचा ही उपयोगी सिद्ध होती है, परंतु कुछ लचीले मनुष्य स्वयं को वह जूताबना लेते हैं, जो नेताजी पहनते हैं।