हाॅलीवुड अश्वमेध और भारतीय सिनेमा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हाॅलीवुड अश्वमेध और भारतीय सिनेमा
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2014


भारत भवन में आयोजित समारोह में कथा फिल्म सदी पर बात करते हुए मैंने कहा कि अमेरिका में अनेक फिल्म विचारकों को यह विश्वास है कि कथा फिल्में अपनी दूसरी सदी पूरी नहीं कर पाएंगी और इसकी मृत्यु कुछ ही दशकों में संभव है तथा टेक्नोलॉजी का विकास यह संभव कर पाएगा कि बिना एक भी दिन की शूटिंग किए किसी सितारे की फिल्म बनाई जा सकती है जैसे लता मंगेशकर के गाए 10 हजाार गीतों से अंश लेकर एक ऐसा गीत बनाया जा सकता है जो उन्होंने गाया ही नहीं है। कुछ इस तरह के प्रयोग से "300 ब्लोंज' नामक फिल्म हाॅलीवुड में बनाई जा चुकी है। इसका अर्थ यह है कि टेक्नोलॉजी से सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान अभिनीत फिल्म भी असेंबल की जा सकती है जो यथार्थ में संभव नहीं है।

आज केवल तीन देशों में बड़े पैमाने पर फिल्में बनाई जा रही है- भारत, अमेरिका और चीन। इंग्लैंड, यूरोप और जापान में बहुत सीमित संख्या में फिल्में बनती हैं। आज यूरोप के सभी देशों में अधिकांश सिनेमाघर हॉलीवुड के कब्जे में हैं और देशज फिल्मों को प्रदर्शन के लिए सीमित समय मिलता है। इस कारण आय घट जाने के कारण निर्माण के लिए भी धन का अभाव होता है। हॉलीवुड के अर्थशास्त्रियों ने अत्यंत कुशलता से व्यूह रचना करके अनेक देशों में सिनेमा को लगभग खत्म कर दिया है और उनके इस सिनेमाई अश्वमेध यज्ञ में केवल भारत के दर्शकों के अपनी फिल्मों के लिए प्रेम ने ही इस घोड़े की लगाम पकड़ी है। भारत में प्रदर्शन क्षेत्र में हॉलीवुड घुसपैठ नहीं कर पाया ओर ऐसे हालात नहीं पैदा कर पाया कि प्रदर्शन क्षेत्र की परतंत्रता हमारे सिनेमा को खत्म कर दे। हमारे सिनेमाघरों में हमेशा हिंदुस्तानी फिल्मों के प्रदर्शन को महत्व दिया। इसी कारण भारत दुनिया में सबसे अधिक फिल्में बनाने वाला देश बन गया है।

अंग्रेजों के जमाने में मनोरंजन कर मात्र बारह प्रतिशत था परंतु आजादी के बाद प्रांतीय सरकारों ने इसे 150 प्रतिशत तक पहुंचा दिया था। परंतु विगत दशक में अनेक प्रांतीय सरकारों ने मनोरंजन को कर मुक्त कर दिया और इस क्षेत्र में अग्रणी सरकारें राजस्थान, पंजाब और मध्यप्रदेश की रहीं। खबर है कि राजस्थान सरकार पुन: मनोरंजन कर लगाना चाहती है। गौरतलब यह है कि भारत में सिनेमाघरों को कर मुक्त रखना कई कारणों से आवश्यक है। अमेरिका की प्रदर्शन क्षेत्र हड़पने की साजिश से भारतीय सिनेमा को बचाना आवश्यक है अन्यथा युवा वर्ग हॉलीवुड की विज्ञान फंतासी के नशे में अपना सबकुछ भुला देगा। दूसरा कारण यह है कि सिनेमाघर केवल नौकरियों का निर्माण करता है वरन् उससे जुड़े अनेक व्यवसाय पनपते हैं। सिनेमाघरों में प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं, इसलिए वहां बाजार का विकास होता है। विज्ञापन के लिए सिनेमा से बेहतर स्पेस कोई नहीं प्रदान करता। तीसरा कारण यह है कि वायु, पानी की तरह मनोरंजन आवश्यक है और वायु की तरह इसे भी कर मुक्त रखा जाना चाहिए। आज जीवन बहुत कठिन है और विषम परिस्थितियों से घबराए हुए आम लोग सिनेमा के मनमोहक संसार में कुछ समय राहत के साथ गुजारते हैं। आम आदमी अपने घर में प्रेमल व्यक्ति है, सड़क पर वह उन्माद में सकता है, परंतु सिनेमाघर में उसके आक्रोश के भावों का विरेचन हो जाता है। सिनेमा के मनोवैज्ञानिक लाभ और हानि का विधिवत अध्ययन ही नहीं हुआ है। जिन लोगों ने कर मुक्ति के दौर में मंहगी जमीन खरीदकर सिनेमा बनाना प्रारंभ किया है, उनके आय आकलन को कर लगाया जाना बिगाड़ सकता है।

भारत हजारों वर्षों से कथा वाचकों और श्रोताओं का देश रहा है और इस देश को शाश्वत इसीलिए कहा जा सकता है कि यहां परंपराएं मरती नहीं, जेट आकाश में उड़ता है तो पुल के ऊपर तेजी से गुजरती रेलगाड़ी के साथ ही पुल के नीचे बैलगाड़ी भी नजर आती है। आधुनिकता के साथ पारंपरिकता का सामंजस्य ही भारत की ताकत रही है। विदेश में शादियां मर रही हैं, परिवार टूट रहे हैं परंतु भारत में ऐसा नहीं है।