हिंदुस्तानी सिनेमा में क्रिश्चियन पात्र / जयप्रकाश चौकसे

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हिंदुस्तानी सिनेमा में क्रिश्चियन पात्र
प्रकाशन तिथि : 25 दिसम्बर 2018


हिंदुस्तानी सिनेमा में क्रिश्चियन पात्रों की रचना हर कालखंड में की गई है। ऋषिकेश मुखर्जी की 1959 में प्रदर्शित राज कपूर, नूतन अभिनीत 'अनाड़ी' में मिसेज डिसा का पात्र प्रस्तुत हुआ जो अपने चित्रकार किराएदार के चित्र स्वयं खरीदती है परंतु उससे कहती है कि किसी कद्रदान ने खरीदा है। यह रिश्ता मां और बेटे के रिश्ते की तरह है। नायक दवा बनाने वाली कंपनी में काम करता है, जो नकली दवा बनाती है। इस दवा के कारण मिसेज डिसा की मृत्यु हो जाती है और नायक इस व्यवसाय को जड़ से उखाड़ देता है। इस फिल्म के दशकों बाद आई 'जूली' जिसमें ओमप्रकाश अभिनीत पात्र रेल का ड्राइवर है और उसकी पत्नी का पात्र नादिरा ने अभिनीत किया था। इसी फिल्म में नायिका की छोटी बहन का पात्र श्रीदेवी ने अभिनीत किया था। फिल्म की क्रिश्चियन नायिका से बामन परिवार के युवा को प्रेम हो जाता है। इसी फिल्म में प्रीति सागर ने एक अंग्रेजी गीत गाया था 'माय हार्ट इज बीटिंग' इस फिल्म में क्रिश्चियन पात्रों को मानवीय करुणा से ओत-प्रोत दिखाया गया है। दरअसल, अच्छे या बुरे लोगों को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि वे सभी धर्मों में होते हैं। क्यों न हम अच्छाई को धर्म और बुराई को अधर्म मान लें। कई विवाद समाप्त हो जाएंगे। विवाद समाप्त होने पर अधिकांश नेता बेरोजगार हो जाएंगे।

मनमोहन देसाई की एक फिल्म में अमिताभ बच्चन ने 'एंथोनी' नामक पात्र अभिनीत किया था और रीना रॉय उसी बस्ती की क्रिश्चियन पात्र हैं। इस पात्र का पूरा नाम था 'एंथोनी गोंजाल्विस'। ज्ञातव्य है कि गोवा में जन्मा गोंजाल्विस एक वादक था और फिल्म गीत की रिकॉर्डिंग्स में भाग लेता था। छठे दशक में भारतीय क्रिश्चियन पात्रों को सोना और शराब तस्कर की भूमिकाएं दी जाती रही हैं। उस दौर में मुंबई में शराब का व्यवसाय अवैध था। बांद्रा में एक उम्रदराज क्रिश्चियन महिला के घर से फिल्म उद्योग के लोग शराब खरीदते थे। उन दिनों 'आंटी का अड्डा' एक प्रिय ठिकाना था। अमेरिकन फिल्मों में क्रिसमस के दृश्य रखे जाते थे। एक फिल्म में यह दिखाया गया था कि एक गरीब बस्ती में एक प्यारा बालक जानलेवा बीमारी से ग्रसित है और उसकी अंतिम इच्छा यह है कि वह कम से कम क्रिसमस तक जीवित रहे। डॉक्टर का कहना है कि बालक क्रिसमस तक जीवित नहीं रहेगा। बस्ती के लोग तय करते हैं कि वे सब क्रिसमस के बहुत पहले ही अपने घरों को क्रिसमस की तरह सजा लेंगे। पूरे उत्साह व ऊर्जा से क्रिसमस पूर्व क्रिसमस मनाया जाएगा ताकि उस बीमार बालक की अंतिम इच्छा पूरी हो सके। संंभवत: फिल्म का नाम था 'क्रिसमस स्ट्रीट'। इसी फिल्म की प्रेरणा से विश्व युद्ध डिज्नी थीम पार्क में एक क्रिसमस स्ट्रीट को स्थाई स्वरूप दिया गया है जहां क्रिसमस बारहमासी बना दिया गया है। क्या हमारा कोई थीम पार्क या स्टूडियो इसी तरह दिवाली या ईद स्ट्रीट का निर्माण करेगा?

नैराश्य से घिरा व्यक्ति इस तरह की क्रिसमस, दिवाली या ईद स्ट्रीट पर कुछ समय बिता कर अपने नैराश्य से मुक्ति पा सकता है। आज ट्रम्प जैसे नेता सत्तासीन हो गए हैं और आम आदमी के जीवन में नैराश्य का भाव बढ़ चुका है। ट्रम्प महोदय अमेरिका और मैक्सिको की सरहद पर दीवार बनाना चाहते हैं, जिसमें किया गया पूंजी निवेश अमेरिका के अर्थशास्त्र को नष्ट कर सकता है। यह छायावादी अकारण उदासी नहीं है वरन् सकारण संक्रामक रोग बन चुका है। कोई 'लाफ्टर क्लब' इसका इलाज नहीं कर सकता।

एक दौर में फिल्मों में होली के दृश्य रखे जाते थे परंतु अब हमारे पारम्परिक उत्सव फिल्मी परदे पर नज़र नहीं आते बल्कि नए उत्सव सामने आए हैं, जैसे वैलेंटाइन डे। 31 दिसंबर की रात भी उत्सव बन चुकी है। हॉलीवुड में 'प्रेतात्मा फिल्में' भी बनी हैं और हर फिल्म में शैतान द्वारा कब्जा जमाने वाले व्यक्ति पर चर्च का पवित्र जल छिड़कने से प्रेतात्मा भाग जाती है। कुछ फिल्मों में क्रॉस के स्पर्श से प्रेतात्मा भाग जाती है। इस तरह की फिल्मों में धर्म का तड़का लगाया जाता है। भूत-प्रेत के साए से मुक्ति का एक व्यवसाय भी पनपा है और कई टोटके आजमाए जाते हैं। अदालत में इस तरह का प्रकरण आता है कि प्रेतात्मा के प्रभाव में की गई हत्या का अपराधी प्रेतात्मा को माना जाए और मनुष्य को सजा नहीं दी जाए। अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैम्ब की बहन ने एक प्रेतात्मा के साए में अपनी मां की हत्या कर दी थी और अदालत ने उन्हें पागलखाने भेजा था। कुछ समय बाद चार्ल्स की जमानत व जवाबदारी पर बहन को उसके सुपुर्द किया गया और उन्होंने उसे ताउम्र अपने स्नेह और सेवा से उसे सामान्य बनाए रखा।

क्रिश्चियनिटी पर अनेक लोकप्रिय उपन्यास रचे गए हैं और उन पर फिल्में बनी हैं। 'द नन्स स्टोरी' एक रहस्यमय फिल्म थी जिसमें एक नन गर्भवती हो जाती है जबकि कोई पुरुष कभी उसके संपर्क नहीं आया था। टीएस एलियट का पद्य में लिखा नाटक 'मर्डर इन कैथेड्रल' विश्व प्रसिद्ध रचना है। इसी थीम पर बनी 'बैकेट' में पीटर ओ टूल और रिचर्ड बर्टन ने अभिनय किया था। इस महान फिल्म का चरबा ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन अभिनीत 'नमक हराम' बनाई थी।