हिंदुस्तान की दशा – 2 / हिंद स्वराज / महात्मा गांधी
पाठक : हिंदुस्तान की शांति के बारे में मेरा जो मोह था वह आपने ले लिया। अब तो याद नहीं आता कि आपने मेरे पास कुछ भी रहने दिया हो।
संपादक : अब तक तो मैंने आपको सिर्फ धर्म की दशा का ही ख्याल कराया है। लेकिन हिंदुस्तान रंक क्यों है, इस बारे में मैं अपने विचार आपको बताऊँगा तब तो शायद आप मुझसे नफरत ही करेंगे; क्योंकि आज तक हमने और आपने जिन चीजों को लाभकारी माना है, वे मुझे तो नुकसानदेह ही मालूम होती हैं।
पाठक : वे क्या है?
संपादक : हिंदुस्तान को रेलों ने, वकीलों ने और डॉंक्टरों ने कंगाल बना दिया है। यह एक ऐसी हालत है कि अगर हम समय पर नहीं चेतेंगे, तो चारों ओर से घिर कर बरबाद हो जाएँगे।
पाठक : मुझे डर है कि हमारे विचार कभी मिलेंगे या नहीं। आपने तो, जो कुछ अच्छा देखने में आया है और अच्छा माना गया है, उसी पर धावा बोल दिया है। अब बाकी क्या रहा?
संपादक : आपको धीरज रखना होगा। सभ्यता नुकसान करनेवाली कैसे है, यह तो मुश्किल से मालूम हो सकता है। डॉंक्टर आपको बतलाएँगे कि क्षय का मरीज मौत के दिन तक भी जीने की आशा रखता है। क्षय का रोग बाहर दिखाई देनेवाली हानि नहीं पहुँचाता और वह रोग आदमी को झूठी लाली देता है। इससे बीमार विश्वास में बहता रहता है और आखिर डूब जाता है। सभ्यता का भी ऐसा ही समझिए। वह एक अदृश्य रोग है। उससे चेत कर रहिए।
पाठक : अच्छा, तो अब आप रेल-पुराण सुनाइए।
संपादक : आपके दिल में यह बात तुरंत उठेगी कि अगर रेल न हो तो अंग्रेजों का काबू हिंदुस्तान पर जितना है उतना तो नहीं ही रहेगा। रेल से महामारी फैली है। अगर रेलगाड़ी न हो तो कुछ ही लोग एक जगह से दूसरी जगर जाएँगे और इस कारण संक्रामक रोग सारे देश में नहीं पहुँच पाएँगे। पहले हम कुदरती तौर पर ही 'सेग्रेगेशन' - सूतक - पालते थे। रेल से अकाल बढे़ हैं, क्योंकि रेलगाड़ी की सुविधा के कारण लोग अपना अनाज बेच डालते हैं। जहाँ महंगाई हो वहाँ अनाज खिंच जाता है, लोग लापरवाह बनते हैं और उससे अकाल का दुख बढ़ता है। रेल से दुष्टता बढ़ती है। बुरे लोग अपनी बुराई तेजी से फैला सकते हैं। हिंदुस्तान में जो पवित्र स्थान थे, वे अपवित्र बन गए हैं। पहले लोग बडी़ मुसीबत से वहाँ जाते थे। ऐसे लोग वहाँ सच्ची भावना से ईश्वर को भजने जाते थे; अब तो ठगों की टोली सिर्फ ठगने के लिए वहाँ जाती है।
पाठक : यह तो आपने इकतरफा बात कही। जैसे खराब लोग वहाँ जा सकते हैं वैसे अच्छे भी तो जा सकते हैं। वे क्यों रेलगाड़ी का पूरा लाभ नहीं लेते?
संपादक : जो अच्छा होता है वह बीरबहूटी की तरह धीरे चलता है। उसकी रेल से नहीं बनती। अच्छा करनेवाले के मन में स्वार्थ नहीं रहता। वह जल्दी नहीं करेगा। वह जानता है कि आदमी पर अच्छी बात का असर डालने में बहुत समय लगता है। बुरी बात ही तेजी से बढ़ सकती है। घर बनाना मुश्किल है, तोड़ना सरल है। इसलिए रेलगाड़ी हमेशा दुष्टता का ही फैलाव करेगी, यह बराबर समझ लेना चाहिए। उससे अकाल फैलेगा या नहीं, इस बारे में कोई शास्त्रकार मेरे मन में घडी़ भर शंका पैदा कर सकता है; लेकिन रेल से दुष्टता बढ़ती है यह बात जो मेरे मन में जम गई है वह मिटनेवाली नहीं है।
पाठक : लेकिन रेल का सबसे बडा़ लाभ दूसरे सब नुकसानों को भुला देता है। रेल है तो आज हिंदुस्तान में एक-राष्ट्र का जोश देखने में आता है। इसलिए मैं तो कहूँगा कि रेल के आने से कोई नुकसान नहीं हुआ।
संपादक : यह आपकी भूल ही है। आपको अंग्रेजों ने सिखाया है कि आप एक-राष्ट्र नहीं थे, और एक-राष्ट्र बनने में आपकों सैकड़ों बरस लगेंगे। यह बात बिलकुल बेबुनियाद है। जब अंग्रेज हिंदुस्तान में नहीं थे तब हम एक-राष्ट्र थे, हमारे विचार एक थे, हमारा रहन-सहन एक था। तभी तो अंग्रेजों ने यहाँ एक-राज्य कायम किया। भेद तो हमारे बीच बाद में उन्होंने पैदा किए।
पाठक : यह बात मुझे ज्यादा समझनी होगी।
संपादक : मैं जो कहता हूँ वह बिना सोचे-समझे नहीं कहता। एक-राष्ट्र का यह अर्थ नहीं कि हमारे बीच कोई मतभेद नहीं था; लेकिन हमारे मुख्य लोग पैदल या बैलगाड़ी में हिंदुस्तान का सफर करते थे, वे एक-दूसरे की भाषा सीखते थे और उनके बीच कोई अंतर नहीं था। जिन दूरदर्शी पुरुषों ने सेतुबंध रामेश्वर, जगन्नाथपुरी और हरद्वार की यात्रा ठहराई, उनका आपकी राय में क्या ख्याल होगा? वे मूर्ख नहीं थे, यह तो आप कबूल करेंगे। वे जानते थे कि ईश्वर-भजन घर बैठे भी होता है। उन्होंने हमें यह सिखाया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। लेकिन उन्होंने सोचा कि कुदरत ने हिंदुस्तान को एक-देश बनाया है, इसलिए वह एक-राष्ट्र होना चाहिए। इसलिए उन्होंने अलग अलग स्थान तय करके लोगों को एकता का विचार इस तरह दिया, जैसे दुनिया में और कहीं नहीं दिया गया है। दो अंग्रेज जितने एक नहीं हैं उतने हम हिंदुस्तानी एक थे और एक हैं। सिर्फ हम और आप जो खुद को सभ्य मानते हैं उन्हीं के मन में ऐसा आभास (भ्रम) पैदा हुआ की हिंदुस्तान में हम अलग अलग राष्ट्र हैं। रेल के कारण हम अपने को अलग राष्ट्र मानने लगे और रेल के कारण एक-राष्ट्र का ख्याल फिर से हमारे मन में आने लगा, ऐसा आप मानें तो मुझे हर्ज नहीं है। अफीमची कह सकता है कि अफीम के नुकसान का पता मुझे अफीम से चला, इसलिए अफीम अच्छी चीज है। यह सब आप अच्छी तरह सोचिए। अभी आपके मन में और भी शंकाएँ उठेंगी। लेकिन आप खुद उन सबको हल कर सकेंगे।
पाठक : आपने जो कुछ कहा उस पर मैं सोचूँगा। लेकिन एक सवाल मेरे मन में इसी समय उठता है। मुसलमान हिंदुस्तान में आए उसके पहले के हिंदुस्तान की बात आपने की। लेकिन अब तो मुसलमानों, पारसियों, ईसाइयों की हिंदुस्तान में बडी़ संख्या है। वे एक-राष्ट्र नहीं हो सकते। कहा जाता है कि हिंदू-मूसलमानों में कट्टर बैर है। हमारी कहावतें भी ऐसी ही हैं। 'मियाँ और महादेव की नहीं बनेगी।' हिंदू पूर्व में ईश्वर को पूजता है, तो मुस्लिम पश्चिम में पूजता है। मुसलमान हिंदू को बुतपरस्त - मूर्तिपूजक - मानकर उससे नफरत करता है। हिंदू मूर्तिपूजक है, मुसलमान मूर्ति को तोड़नेवाला है। हिंदू गाय को पूजता है, मुसलमान उसे मारता है। हिंदू अहिंसक है, मुसलमान हिंसक। यों पग-पग पर जो विरोध है, वह कैसे मिटे और हिंदुस्तान एक कैसे हो?