हिंदुस्तान के आर्य कैसे थे? / नेहरू / प्रेमचंद
आर्यों को हिंदुस्तान आए बहुत जमाना हो गया। सबके सब तो एक साथ आए नहीं होंगे, उनकी फौजों पर फौजें, जाति पर जाति और कुटुम्ब पर कुटुम्ब सैकड़ों बरस तक आते रहे होंगे। सोचो कि वे किस तरह लंबे काफिलों में सफर करते हुए, गृहस्थी की सब चीजें गाड़ियों और जानवरों पर लादे हुए आए होंगे। वे आजकल के यात्रियों की तरह नहीं आए। वे फिर लौट कर जाने के लिए नहीं आए थे। वे यहाँ रहने के लिए या लड़ने और मर जाने के लिए आए थे। उनमें से ज्यादातर तो उत्तर-पश्चिम की पहाड़ियों को पार करके आए; लेकिन शायद कुछ लोग समुद्र से ईरान की खाड़ी होते हुए आए और अपने छोटे-छोटे जहाजों में सिंधू नदी तक चले गए।
ये आर्य कैसे थे? हमें उनके बारे में उनकी लिखी हुई किताबों से बहुत-सी बातें मालूम होती हैं। उनमें से कुछ किताबें, जैसे वेद, शायद दुनिया की सबसे पुरानी किताबों में से हैं। ऐसा मालूम होता है कि शुरू में वे लिखी नहीं गई थीं। उन्हें लोग जबानी याद करके दूसरों को सुनाते थे। वे ऐसी सुंदर संस्कृत में लिखी हुई हैं कि उनके गाने में मजा आता है। जिस आदमी का गला अच्छा हो और वह संस्कृत भी जानता हो उसके मुँह से वेदों का पाठ सुनने में अब भी आनंद आता है। हिंदू वेदों को बहुत पवित्र समझते हैं। लेकिन 'वेद' शब्द का मतलब क्या? इसका मतलब है 'ज्ञान' और वेदों में वह सब ज्ञान जमा कर दिया गया है जो उस जमाने के ऋषियों और मुनियों ने हासिल किया था। उस जमाने में रेलगाड़ियाँ, तार और सिनेमा न थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस जमाने के आदमी मूर्ख थे। कुछ लोगों का तो यह खयाल है कि पुराने जमाने में लोग जितने अक्लमंद होते थे, उतने अब नहीं होते। लेकिन चाहे वे ज्यादा अक्लमंद रहे हों या न रहे हों उन्होंने बड़े मार्के की किताबें लिखीं जो आज भी बड़े आदर से देखी जाती हैं। इसी से मालूम होता है पुराने जमाने के लोग कितने बड़े थे।
मैं पहले ही कह चुका हूँ कि वेद पहले लिखे न गए थे। लोग उन्हें याद कर लिया करते थे और इस तरह वे एक पुश्त से दूसरी पुश्त तक पहुँचते गए। उस जमाने में लोगों की याद रखने की ताकत भी बहुत अच्छी रही होगी। हममें से अब कितने आदमी ऐसे हैं जो पूरी किताबें याद कर सकते हैं?
जिस जमाने में वेद लिखे गए उसे वेद का जमाना कहते हैं। पहला वेद ऋग्वेद हैं। इसमें वे भजन और गीत हैं जो पुराने आर्य गाया करते थे। वे लोग बहुत खुशमिजाज रहे होंगे, रूखे और उदास नहीं। बल्कि जोश और हौसले से भरे हुए। अपनी तरंग में वे अच्छे-अच्छे गीत बनाते थे और अपने देवताओं के सामने गाते थे।
उन्हें अपनी जाति और अपने आप पर बड़ा गरूर था। आर्य शब्द के माने हैं शरीफ आदमी या ऊँचे दरजे का आदमी। और उन्हें आजाद रहना बहुत पसंद था। वे आजकल की हिंदुस्तानी संतानों की तरह न थे जिनमें हिम्मत का नाम नहीं और न अपनी आजादी के खो जाने का रंज है। पुराने जमाने के आर्य मौत को गुलामी या बेइज्जती से अच्छा समझते थे।
वे लड़ाई के फन में बहुत होशियार थे। और कुछ-कुछ विज्ञान भी जानते थे। मगर खेती-बाड़ी का ज्ञान उन्हें बहुत अच्छा था। खेती की कद्र करना उनके लिए स्वाभाविक बात थी। और इसलिए जिन चीजों से खेती को फायदा होता था उनकी भी वे बहुत कद्र करते थे। बड़ी-बड़ी नदियों से उन्हें पानी मिलता था इसलिए वे उन्हें प्यार करते थे और उन्हें अपना दोस्त और उपकारी समझते थे। गाय और बैल से भी उन्हें अपनी खेती में और रोजमर्रा के कामों में बड़ी मदद मिलती थी, क्योंकि गाय दूध देती थी जिसे वे बड़े शौक से पीते थे। इसलिए वे इन जानवरों की बहुत हिफाजत करते थे और उनकी तारीफ के गीत गाते थे। उसके बहुत दिनों के बाद लोग यह तो भूल गए कि गाय की इतनी हिफाजत क्यों की जाती थी और उसकी पूजा करने लगे। भला सोचो तो इस पूजा से किसका क्या फायदा था। आर्यों को अपनी जाति का बड़ा घमंड था और इसलिए वे हिंदुस्तान की दूसरी जातियों में मिल-जुल जाने से डरते थे। इसलिए उन्होंने ऐसे कायदे और कानून बनाए कि मिलावट न होने पाए। इसी वजह से आर्यों को दूसरी जातियों में विवाह करना मना था। बहुत दिनों के बाद इसी ने आजकल की जातियाँ पैदा कर दीं। अब तो यह रिवाज बिल्कुल ढोंग हो गया है। कुछ लोग दूसरों के साथ खाने या उन्हें छूने से भी डरते हैं। मगर यह बड़ी अच्छी बात है कि यह रिवाज कम होता जा रहा है।