हिंदू-मुस्लिम विद्वेष और भारत सरकार / गणेशशंकर विद्यार्थी
उत्तुंग शिमला शैल के होटल सेसील में भारत के नये वायसराय लार्ड इरविन ने गत सप्ताह, हिंदू-मुस्लिम विद्वेष के संबंध में बड़े मार्के का भाषण दिया। वह वायसराय महोदय की प्रथम सार्वजनिक वक्तृता थी। हमने काफी तादाद में वायसरायों का आवागमन देखा है, इसलिये पहले सार्वजनिक उद्गारों के आधार पर, हम उनके व्यक्तित्व के विषय में कोई निश्चित मत नहीं दे सकते। जिस समय लार्ड रेडिंग भारत के भाग्य विधाता बनकर आये थे, उस समय उन्होंने भी न्याय और समदर्शिता की बहुत दुहाई दी थी। बहुत से आदमियों ने उनके भाषणों के आधार पर, उनके व्यक्तिगत आचरण और उनकी राजनैतिक प्रणाली के बारे में अपना मत स्थिर कर लिया था। हम जानते हैं कि उनके आगे आये शासन-क्रम को देखकर उन लोगों को अपना मत बदलना पड़ा था, जिन्होंने लार्ड रेडिंग को न्यायमूर्ति मान रखा था। लार्ड इरविन के भाषण के आधार पर हम उनके भावी शासनकार्य के संबंध में कोई राय कायम नहीं कर सकते। वे सज्जन प्रतीत होते हैं, उनका हृदय सुसंस्कृत और उनकी वाणी ओजपूर्ण मालूम पड़ती है। उनके भाव और उनकी भाषा प्रवाहयुक्त सौष्ठव लिये हुए है। बस, इससे अधिक हम कुछ नहीं कह सकते। महात्मा गांधी ने लार्ड रेडिंग के आगमन के समय एक बड़ा रहस्यपूर्ण परंतु नितांत सत्य वाक्या लिखा था। लार्ड रेडिंग के विषय में 'यंग इंडिया' में अपना मत प्रकाश करते हुए महात्मा जी ने लिखा था, 'लार्ड रेडिंग को चाहिये कि वे भारतीय नौकरशाही को उदरस्थ कर जायें, अन्यथा वह नौकरशाही उन्हीं निकल जायेगी।' लार्ड इरविन के प्रथम भाषण को पढ़ चुकने के उपरांत हम इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि राजनैतिक मामलों में लार्ड इरविन नौकरशाही के कदम ब कदम चलेंगे, पर सामाजिक और नैतिक प्रश्नों को वे केवल अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखते रहेंगे। लार्ड चेम्सफोर्ड की कमजोरी उनमें है या नहीं, यह हम नहीं कह सकते। पर इतना तो निश्चय है कि लार्ड रेडिंग की कूटनीति उनमें नहीं है। लार्ड इरविन ने अपने भाषण में हिंदू-मुस्लिम विद्वेष के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए दो बातों पर बहुत जोर दिया है। पहली बात यह है कि सरकार हिंदू-मुसलमानों के झगड़ों को देखकर खुश नही होती है, उसे बहुत दु:ख होता है। दूसरे यह कि जब कभी झगड़े हो जाते हैं तब सरकार भरसक यह प्रयत्न करती है कि वे शांत हो जायें और भविष्य में न होने पावें। लार्ड इरविन का कथन है कि भारत सरकार के ऊपर झगड़ा बढ़ाने और बढ़ते हुए झगड़ों से खुश होने का जो दोष लगाया जाता है, वह गलत है। वायसराय महोदय अपने कथन की पुष्टि में ब्रिटिश पार्लियामेंट की भारत के प्रति प्रदर्शित नीति का उल्लेख करते हैं। ब्रिटिश पार्लियामेंट की दुहाई ऐसे समय देना व्यर्थ है। हमारा अनुभव और नित्य प्रति व्यवहार में आने वाली घटनाएँ इसी बात को स्पष्ट रूप से सिद्ध कर रही हैं कि भारत सरकार तथा प्रांतीय सरकारों की नीति शांतिपूर्ण रही है और रहती आयी है। बंगाल सरकार का अभी हाल का उदाहरण बहुत ताजा है। लार्ड लिटन ने मुसलमानों का पक्ष लेकर हिंदुओं के प्रति जैसा व्यवहार किया, राजराजेश्वरी के जुलूस का मार्ग बदलकर मुसलमानों को जिस प्रकार बढ़ावा दिया और मस्जिदों के सामने बाजा रोककर हिंदूओं को जिस प्रकार अपमानित किया, उस सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि बंगाल सरकार विद्वेष की आग को भड़कते देख संतोष लाभ कर रही है। हम कई बार यह कह चुके हैं कि सरकार ने स्वराज्य दल के बल को पूर्ण करने की लालसा से प्रेरित होकर एक महीने तक कलकत्ते जैसे नगर को विद्वेष की आग में जलता रहने दिया। स्वयं एंग्लो इंडियन दैनिक पत्र इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि बंगाल सरकार सर अब्दुर्रहीम द्वारा मंत्रिमंडल बनवाना चाहती है, इसलिये वह उनकी हाँ में हाँ मिलाती जा रही है। सर जान मेनार्ड ने मुडीमेन कमेटी के सामने गवाही देते हुए यह स्पष्ट कह दिया कि पंजाब कौंसिल में मुसलमानों की अधिक संख्या है और सरकार को उन पर अवलम्बित रहना पड़ता है। इसलिये मियाँ फजली हसन की (मुस्लिम-पोषक, हिंदू-विरोधक) नीति की अति को रोकने में पंजाब सरकार असमर्थ थी। इस प्रांत के गवर्नर सर विलियम मैरिस ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए मुस्लिम सभ्यता के प्रति ब्रिटिशों की विशेष संलग्नता का उल्लेख कर ही दिया है। इधर इलाहाबाद के मिस्टर क्रास्थवेट ने तथा फतेहपुर के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ने मुसलमानों का जो अनुचित पक्ष लिया, वह सब जानते ही हैं। कोहाटी हिंदुओं को जो भारी क्षति उठानी पड़ी, उसका मूल कारण सरकारी कर्मचारियों का अनुचित पक्षपात ही था। रावलपिंडी में मुसलमान गुंडे पुलिस थाने से तीन मिनट के फासले पर आग लगाते रहे और लूटमार करते रहे और यह सब लगातार रात के 10 बज के 30 मिनट से प्रात: पौने चार बजे तक होता रहा, पर क्या कारण है कि न तो आग ही बुझाई गयी और न कोई बदमाश उचक्का गिरफ्तार ही हुआ? लार्ड इरविन ने भारत की नौकरशाही की पीठ ठोंकी है। यदि वे इसमें जरा, 'फौलादी चौखट', ये शब्द कहीं और सटा देते तो नौकरशाही की प्रशंसा वाला यह अंश लायड जार्ज के मुख से उद्गारित वाक्य समझा जा सकता था। लार्ड इरविन जिसकी तारीफ करें और जिसकी चाहे निंदा करें, हमें इससे कोई सरोकार नहीं। पर जब वे सार्वजनिक नौकरों की बेजा तारीफ करने लगते हैं, तब हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम उनकी बातों को अनुचित कहें। भारतवर्ष की नौकरशाही ऐसी नहीं है, जैसी कि लार्ड इरविन उसे समझते हैं। हमने ऊपर जितने उदाहरण दिये, उनसे हिंदू स्थान के इन सेवक-स्वामियों की चालाकियों की नीति-रीति का कुछ पता लग जाता है। हम गत सप्ताह भूतभूर्व भारत सचिव लार्ड ओलिवियर के वाक्यों को उद्धृत करके यह दिखला चुके हैं कि भारतवर्ष के नौकरान, जातीय मामलों में काफी पक्षपात से काम लेते हैं। वे सदा कभी एक समाज को तो, कभी दूसरे को बढ़ावा देते रहते हैं। जिस समय महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन के भाव से देश को मंत्रमुग्ध कर दिया था, उस समय बंबई प्रेसीडेन्सी के तत्कालीन गवर्नर सर जार्ज लायड ने एक प्रवासी सज्जन से वार्तालाप करते हुए इस बात पर अत्यंत आश्चर्य प्रकट किया था कि गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम ऐक्य-ऐसी अनहोनी वस्तु को करके दिखला दिया। वही एक ऐसी बात थी जो उन्हें खटकती थी। बंबई सरकार तो आजकल भेदनीति का खूब प्रयोग कर रही है। मुसलमानों को नौकरियों में विशेष अधिकार और विशेष सुविधाएँ दी जा रही हैं। उनकी एक संस्था के सिफारिश कर देने पर मुसलमान को बड़ी-बड़ी सरकारी नौकरियाँ मिल जाती हैं, परंतु जब सिंध प्रांत के हिंदू लोग इसी प्रकार, सिंध की नौकरियों में हिंदुओं की उचित संख्या कर देने की माँग पेश करते हैं तो उन्हें गवर्नर के प्राइवेट सेक्रेटरी टका-सा जवाब देते हैं। वे कह देते हैं कि चूँकि सिंध के हिंदू काउन्सिलर अधिक मौकों पर सरकार के विपक्ष में मत देते रहे हैं, इसलिये सरकार उन्हें नौकरियों की सुविधाएँ न देगी। वह तो मुसलमानों को ही नौकरियाँ देगी, क्योंकि मुसलमान काउन्सिलर सरकार का चरण चुम्बन करते रहते हैं। प्रांतीय शासकों की यह स्पिरिट (भावना) है, जिससे प्रेरित होकर वे शासन की बड़ी गति से संचालन करते हैं। पंजाब, बंगाल, युक्त प्रांत और बंबई प्रेसीडेंसी के शासकों की नीति का ऊपर सूक्ष्म में उल्लेख करके तथा कई स्थानों के पब्लिक (सार्वजनिक) सेवकों के पक्षपात का विवरण देकर हमने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत सरकार रूपी विशालकाय मशीन का प्रत्येक पुर्जा अपनी गति को, जातिगत पक्षपात से प्रभावित होकर संचालित करता है। इसलिये सरकारी नीति का यशोगान करके वायसराय महोदय ने शासकों की निष्पक्षपात वृत्ति का जो राग अलापा है, वह बहुत बेसुरा, बहुत बेताला, अत्यंत असामयिक और नितांत भ्रमपूर्ण है। संभव है कि उन्हें अभी वस्तुस्थिति का पता नहीं लग सका है। यह भी संभव है कि सूचना देने वाले ने उन्हें वास्तविक परिस्थिति से परिचित ही न कराया हो। पर फिर भी उनके सदृश उत्तरदायी पुरुष के मुख से भ्रमपूर्ण बात निकलना हास्यास्पद है। लार्ड इरविन ने अंत में, चलते-चलाते, जातीय ऐक्य के लिये जो अपील की है, वह प्रत्येक देशप्रेमी को आनंददायक और अनुकरणीय प्रतीत होगी। धर्म, नीति, विज्ञान और सामाजिक प्रगति के उच्चतम ध्येय को लार्ड इरविन ने इस सुंदरता, सहृदयता और संवेदना के साथ चित्रित किया है कि थोड़ी देर को आत्मा आनंद और पारस्परिक प्रेम के स्रोत में उतरने लगती है। यदि लार्ड इरविन अपने इस ध्येय की पूर्ति में लगे रहे तो वे मनुष्यता की बड़ी भारी सेवा कर जायेंगे।