हिंसा का इतिहास, अवैध हथियार का भूगोल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2020
बिहार के मुंगेर से उत्तरप्रदेश के मेरठ तक अवैध हथियारों का व्यापार इतना अधिक फैल गया है कि इकहत्तर लाख हथियार होने का अधिकृत आंकड़ा सामने आया है। अमेरिका में हथियार खरीदने या रखने के लिए सरकारी लाइसेंस नहीं लेना पड़ता। आम अमेरिकन बिना हथियार स्वयं को निर्वस्त्र व्यक्ति महसूस करता है। वहां के मूल निवासी रेड इंडियंस को कैसे खदेड़ा गया, इसका विवरण प्रस्तुत करने वाली फिल्म का नाम था ‘हाऊ द वेस्ट वाॅज वन’। गन, गर्ल और गैंग्स जुड़े हुए प्रस्तुत किए जाते हैं। नारी के प्रति पुरुष पूर्वाग्रह और कमजोरी के दृष्टिकोण के कारण ही इस तरह के विचार प्रकट किए जाते हैं। कमल हासन की एक फिल्म के दृश्य में बंदूक को स्त्री में बदलते हुए दिखाया गया है और स्त्री को बंदूक में बदलते हुए भी प्रस्तुत किया गया है।
दरअसल, बंदूक का ट्रिगर मनुष्य की विचार शैली में केंद्रित है और अपराध विज्ञान की प्रयोगशाला में कोई चिह्न इस ट्रिगर का मिल नहीं पाता। वैचारिक संकीर्णता ही प्राय: ट्रिगर दबाती है। निशाने पर प्रोफेसर दाभोलकर हों या गौरी लंकेश हों। क्या गोडसे के द्वारा इस्तेमाल गन ही उपरोक्त हत्याओं में इस्तेमाल की गई है? इसका प्रमाण नहीं मिलता, परंतु हर हत्या के बाद पिस्तौल का हत्था बदला जा सकता है।
गोली मारने की एक प्रक्रिया को रशियन रूले कहा जाता है। रिवॉल्वर में केवल एक गोली है, शेष पांचों खानों में गोली नहीं है। आमने-सामने बैठे दो लोग बारी-बारी से स्वयं पर गोली दागते हैं। कहते हैं कि गोली पर मरने वाले का नाम लिखा होता है। रशियन रूले दृश्य ‘धूम 2’ में भी प्रस्तुत हुआ है। कुछ लोग ट्रिगर हैप्पी कहलाते हैं। रिवॉल्वर हाथ में आते ही उनकी इच्छा गोली चलाने की होती है। यह दिमागी खुजली होती है। गुजश्ता दौर के एक फिल्मी पुत्र को इस तरह की खुजली होती रहती थी। कभी-कभी वह आधी रात के बाद रहवासी बस्ती में हवाई फायर करता था। आधी रात को कोई व्यक्ति यूं ही अपनी बालकनी में आ जाए तो कसूर सितारा पुत्र का नहीं माना गया।
फिल्म ‘हिस्ट्री ऑफ वाॅयलेंस’ में किशोर वय का एक लड़का हत्या कर देता है। कहता है कि उसने अपने पिता को उस व्यक्ति को गोली मारते हुए देखा है, जिसके साथ उनकी मामूली कहासुनी हो गई थी। मुद्दा यह है कि क्या माता-पिता अपनी संतान के सामने आदर्श आचरण करते हैं? एक फिल्म में तीन किशोर दुष्कर्म करने के बाद हत्या कर देते हैं। बाल अपराध अदालत में एक विशेषज्ञ अर्जी लगाता है कि इस किशोर को एक और अवसर मिलना चाहिए। उसका दावा है कि वह किशोर के अवचेतन से हिंसा और यौन संबंध का ऑब्सेशन मिटा देगा।
अदालत की आज्ञा से किशोर को विशेषज्ञ के हवाले कर दिया जाता है। विशेषज्ञ किशोर के हाथ-पैर बांधकर उसे कुर्सी पर बिठाता है। उसे बार-बार हिंसा और यौन विकृतियों की फिल्में दिखाई जाती हैं। वह सो नहीं जाए, इसलिए पलकों पर क्लिप लगा दिया जाता है। कुछ समय बाद किशोर को अदालत में पेश किया जाता है। किशोर, स्त्री का स्थिर चित्र देखते ही डर से कांपने लगता है। यौन संबंध की फिल्म देखते ही बेहोश हो जाता है।
गहरे परीक्षण और साक्ष्य के अध्ययन के बाद अदालत किशोर को स्वतंत्र कर देती है। किशोर के साथी उसे बार-बार स्त्री सहवास के लिए प्रेरित करते हैं। वह घबराकर आत्महत्या कर लेता है। संदिग्ध मुद्दा यह है कि क्या अवचेतन से यौन संबंध की कामनाओं को मिटा दिए जाने से जीवन निस्सार हो जाता है? इस विषय पर एकमत नहीं है। इस विषय पर एक कवि कहता है- ‘शायद वे एकांतवासी हो जाते हैं और अपने को इतना अकेला कर लेते हैं कि कोई भाषा उन तक पहुंच नहीं पाती’। अन्य कविता है- मर जाएं शर्म से कि किसी काम के नहीं, इस जिंदगी के फूस में अगर शोला न हो। हमने अवैध हथियारों का जखीरा बना लिया है। बकौल निदा फाजली- ‘बारूद के गोदाम पर माचिस पहरेदार है।’