हिंसा के चेहरे पर चढ़ता अहिंसा का नया मुखौटा / जयप्रकाश चौकसे

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हिंसा के चेहरे पर चढ़ता अहिंसा का नया मुखौटा
प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2020


अमेरिका में हथियार खरीदने के लिए कोई आज्ञा पत्र नहीं दिखाना पड़ता और न ही स्वयं की नागरिकता का प्रमाण पत्र देना पड़ता है। कभी ये प्रयास हुए हैं कि खुले बाजार में सरेआम हथियार रखना प्रतिबंधित किया जाए, परंतु अमेरिका की अवाम को बिना हथियार रखे निर्वस्त्र व्यक्ति की तरह जीने जैसा लगता है। आम अमेरिकन शांतिप्रिय व परिवार को प्रेम करने वाला होता है, परंतु उनके सामूहिक अवचेतन में अनजान भय कुंडली मारे बैठा है। इस तथ्य को रेखांकित करने वाली फिल्म भी बनी हैं। अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस को बंदूक के जोर पर खदेड़ दिया गया था। इसका विवरण ‘हाऊ द वेस्ट वाज वन’ नामक फिल्म में प्रस्तुत किया गया था। ‘फॉर ए फ्यू डॉलर्स मोर’ भी इसी श्रेणी की फिल्म है। हॉलीवुड में फिल्मों को ‘वेस्टर्न’ कहा जाता है। जॉन वेन नामक अभिनेता ने इस तरह की इतनी अधिक फिल्मों में अभिनय किया है कि वह कुर्सी या सोफे से अधिक घोड़े पर बैठे हैं। हमारे देश में हथियार खरीदने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता है। लगभग एक दर्जन दफ्तरों के अनुमोदन पर ही लाइसेंस प्राप्त होता है। नियम यह भी है कि लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात लाइसेंस उसके उत्तराधिकारी के नाम पर ट्रांसफर हो जाता है।

हमारे अजब गजब देश में सिनेमाघर का लाइसेंस उत्तराधिकारी के नाम पर ट्रांसफर नहीं होता और उसे पुनः आवेदन की लंबी और खर्चीली प्रक्रिया से गुजरना होता है। क्या सरकार सिनेमाघर को बंदूक से अधिक खतरनाक मानती है। दरअसल रिवॉल्वर किसी के हाथ भी हो उसकी विचार प्रणाली ही असली ट्रिगर है। दाभोलकर और गौरी लंकेश को एक ही रिवॉल्वर से मारा गया। अगर शोध करें तो यह तमंचा वही निकलेगा, जिसका इस्तेमाल नाथूराम गोडसे ने किया था। यह बात इसलिए दोहराई जा रही क्योंकि हत्याएं भी बार-बार की जा रही हैं। इस वैचारिक ट्रांसफर पर जीएसटी नहीं लगता। यह माले मुफ्त दिल बेरहम मामला है। एक अंग्रेजी उपन्यास का नाम है ‘द लॉस्ट ट्रेन फ्रॉम गनहिल’। कथा एक ऐसे पिछड़े हुए क्षेत्र की है जहां सप्ताह में केवल एक ट्रेन आती है। बचपन में दो दोस्त रहे व्यक्ति एक-दूसरे के विरोधी हैं। एक इंस्पेक्टर बन गया तो दूसरा लूटेरा। पुरानी मित्रता की खातिर लुटेरा, इंस्पेक्टर को एक रिवॉल्वर देता है और भागने का अवसर देता है। वह यह भी कहता है कि रेलवे स्टेशन तक जाने के लिए घने जंगल से गुजरना होगा। लुटेरा उसके जाने के चार घंटे बाद निकलेगा और अगर सामना हुआ तो गोली मार देगा। उस रचना में इतनी उत्तेजना है कि पाठक गोलियां गिनता रहता है। हिंसक पशुओं को गोली मारता हुआ इंस्पेक्टर दौड़ कर चलती हुई ट्रेन के एक डिब्बे में पहुंच जाता है। ज्ञातव्य है कि आबिद सुरति जो धर्मयुग में ‘डब्बू जी का कोना’ नामक कार्टून रचते थे, ने इसी उपन्यास से प्रेरित एक पटकथा लिखी है। इसके फिल्मांकन के लिए कुछ प्रयास हुए हैं। खाकसार ने धर्मेंद्र और अमजद खान अभिनीत फिल्म बनाने का प्रयास किया था, परंतु पूंजी निवेशक गुणवंत लाल शाह की मात्र 41 वर्ष में मृत्यु हो जाने के कारण फिल्म नहीं बन पाई। कुछ दिन पूर्व ही आंदोलन करने वाले छात्रों पर एक व्यक्ति ने गोली चलाई। कश्मीर में जन्मा एक छात्र जख्मी हुआ है। हमलावर की आयु कभी 19 तो कभी 17 वर्ष बताई जा रही है। समय बीतने पर उसे आजन्म शिशु भी साबित कर दिया जा सकता है। हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह की पुत्री ने यह शोध प्रस्तुत किया है कि हम केवल महात्मा गांधी के प्रभाव काल में अहिंसा के पुजारी बने रहे। अन्यथा हमारा अधिकांश इतिहास रक्त रंजित ही रहा है। सम्राट अशोक ने भी अपने रिश्तेदारों की हत्या की थी। कलिंग युद्ध के पश्चात महात्मा बुध की प्रेरणा से उन्होंने अहिंसा के आदर्श को आत्मसात किया था। क्या गोली-गोली पर लिखा होता है मरने वाले का नाम जैसे दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम।