हिंसा के दौर में ढाई आखर ! / जयप्रकाश चौकसे

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हिंसा के दौर में ढाई आखर !
प्रकाशन तिथि : 08 फरवरी 2013


अमेरिका की शिक्षण संस्थाओं में गोलीबारी की घटनाओं के कारण सुरक्षा बढ़ा दी गई है और राष्ट्रपति बराक ओबामा अमेरिकी नागरिकों के हथियार रखने की स्वतंत्रता के मुद्दे पर चिंतित हैं। अमेरिका में आप डबलरोटी की तरह आसानी से हथियार और गोलियां खरीद सकते हैं। अमेरिका में हथियार खरीदने की स्वतंत्रता के खिलाफ कानून बनाना अत्यंत कठिन है और कुछ बुजुर्गों का कहना है कि इस तरह का कानून बनाने के लिए अब्राहम लिंकन सा हौसला चाहिए, एक और गृहयुद्ध लडऩे का खतरा मोल लेना होगा। २०१० में किए गए आकलन के अनुसार अमेरिका में लगभग पांच करोड़ पैंतालीस लाख फायरआम्र्स नागरिकों के पास हैं। कुछ संस्थाएं प्रचार करती हैं कि हथियार प्रतिबंध कानून बनाया जाए।

अमेरिका में गण राजनीति और गन राजनीति समान रूप से हमेशा सक्रिय रही है। हाल ही के आकलन के अनुसार ४९ फीसदी घरों में हथियार हैं। औसतन हर वर्ष गन शूटिंग की बीस घटनाएं होती हैं, जिनमें चार से अधिक लोगों की मृत्यु हुई हो। किसी व्यक्ति का रिकॉर्ड देखकर ही उसे गन खरीदने की इजाजत दी जाए, यह बात इसलिए मायने नहीं रखती कि अमेरिका में गन शूटिंग के अनेक गुनहगारों का ट्रैक रिकॉर्ड साफ-सुथरा एवं अहिंसक था। बहरहाल, अमेरिका में हथियार खरीदने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की बात पुरानी है, परंतु इस बार लोगों की विचारशैली बदलने के लिए गंभीर प्रयास शुरू हो गए हैं।

यह बात भारत में इसलिए प्रासंगिक है कि हमारे यहां अनेक प्रदेशों में अवैध रूप से रखे गए हथियारों की संख्या कम नहीं है। उत्तरप्रदेश और बिहार में देसी कट्टे अनगिनत हैं। शादी-ब्याह के अवसर पर खुशी प्रकट करने के लिए गोलियां दागने और उनमें अनचाहे ही मृत्यु हो जाने की अनेक घटनाएं भी प्रकाश में आई हैं। चुनाव के समय अवैध हथियारों का प्रयोग भी होता रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में हथियार आज भी हैसियत का प्रतीक हैं। हथियारों की तस्करी भी अनेक स्तरों पर होती है। पेशावर में भी हथियार सब्जियों की तरह सहजता से बेचे जाते हैं। दरअसल यह हिंसा और आक्रोश का दौर है, जिसमें वैध या अवैध हथियार प्रचुर मात्रा में प्रचलन में हैं और इतनी ही चिंता की बात सर्वत्र व्याप्त असहिष्णुता है। एक छोटा क्रिश्चियन समूह मणिरत्नम की 'कदाल' में सात दृश्यों पर आपत्ति उठा रहा है, जबकि फिल्म निर्माण के पूर्व मणिरत्नम ने पटकथा उन समूहों को दी थी और कुछ दृश्यों की शूटिंग के समय समूह के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। पूरी फिल्म भी वे देख चुके हैं। इस असहिष्णुता के दौर में हथियारों का उपलब्ध होना चिंता का विषय है और इसी दौर में भड़काने वाले भाषण भी दिए जा रहे हैं। चुनावों को प्राय: राजनीतिक होली इस मायने में कहा जाता रहा है कि इसमें भाग लेने वाले नेता एक-दूसरे का मुंह काला करने का प्रयास करते रहे हैं, परंतु अब चुनाव में हिंसा बढऩे का खतरा भी पहले से ज्यादा प्रतीत होता है। हालांकि चुनाव आयोग पूरी सावधानी बरतता रहा है।

कोई तीस-बत्तीस वर्ष पूर्व हॉलीवुड में एक फिल्म बनी थी 'क्लास ऑफ ८४'। इसमें एक अत्यंत हिंसामय वातावरण की शिक्षण संस्था का काल्पनिक विवरण था। इस संस्था में मेटल डिटेक्टर लगे थे और हर विद्यार्थी को पूरी तलाशी देना पड़ती थी। इसी फिल्म के क्लाइमैक्स में प्राचार्य की बेटी का अपहरण किया जाता है और एक प्रोफेसर हिंसक विद्यार्थियों के दल से निहत्था ही भिड़ जाता है। इसी फिल्म के क्लाइमैक्स का एक हिस्सा टीनू आनंद ने अपनी फिल्म 'शहंशाह' में नकल किया था, जिसमें अपराधी को नायक अदालत की छत से लटका देता है।

फिल्मकार को जो आशंका थी, वह अब सत्य सिद्ध हो रही है जब अमेरिका की शिक्षण संस्थाओं में अतिरिक्ति सुरक्षा के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और सरकार इसके लिए अनुदान की राशि बढ़ा रही है। भारत के स्कूलों में गोलीबारी की कुछ घटनाएं हुई हैं। इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि भारत की शिक्षण संस्थाएं हिंसा से लगभग मुक्त हैं और रैगिंग पर भी कुछ हद तक लगाम कस दी गई है।

हथियार पर प्रतिबंध लगे या अवैध हथियार मिले, इस मसले पर गौरतलब यह है कि ट्रिगर प्राय: मनुष्य के मस्तिष्क में होता है। प्रचार के जहर में इतनी शक्ति होती है कि वह दिगाम में छुपे ट्रिगर को हमेशा चुस्त-दुरुस्त रखता है। असंतोष, आक्रोश और असुरक्षा के भाव ने हर मनुष्य को चलते-फिरते हथियार में बदलने की प्रक्रिया को गति दे दी है। दुनिया के अधिकांश भागों में हिंसा की लहर चल रही है। कहीं-कहीं यह सतह के नीचे प्रवाहित है। संवेदनाओं के भोथरा होने और मानवीय आचरण में प्रेम की कमी भी इस हिंसा के जन्म के लिए जवाबदार मानी जा सकती है। प्रेम महज रस्मअदयगी बनकर रह सकता है, क्योंकि जिंदगी की भागमभाग ने सारा रस सोख लिया है। प्रेम के अभाव से ही मनुष्य हथियार बनता है और अन्याय आधारित आर्थिक असमानता भी मनुष्य को हथियार में बदलती है।