हितोपदेश (परिचय) / नारायण पण्डित

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंचतन्त्र व अन्य नीति ग्रंथों से सृजित कथाएँ
आलेख संकलन: अशोक कुमार शुक्ला

हितोपदेश बेहद प्राचीन ग्रन्थ है । हितोपदेश भारतीय जन- मानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं।

वर्तमान संस्करण का मुखपृष्ठ

हितोपदेश की कथाएँ अत्यंत सरल व सुग्राह्य हैं। विभिन्न पशु- पक्षियों पर आधारित कहानियाँ इसकी खास-विशेषता हैं। रचयिता ने इन पशु-पक्षियों के माध्यम से कथाशिल्प की रचना की है। जिसकी समाप्ति किसी शिक्षापद बात से ही हुई है। पशुओं को नीति की बातें करते हुए दिखाया गया है। सभी कथाएँ एक- दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।

ग्रंथ का सृजन

हितोपदेश के रचयिता नारायण पण्डित हैं। पुस्तक के अंतिम पद्यों के आधार पर इसके रचयिता का नाम "नारायण" ज्ञात होता है।

नारायणेन प्रचरतु रचितः संग्रहोsयं कथानाम्

पण्डित नारायण ने पंचतन्त्र तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से हितोपदेश नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। स्वयं पं. नारायण जी ने स्वीकार किया है--

पंचतन्त्रान्तथाडन्यस्माद् ग्रंथादाकृष्य लिख्यते।

इसके आश्रयदाता का नाम धवलचंद्रजी है। धवलचंद्रजी बंगाल के माण्डलिक राजा थे तथा नारायण पण्डित राजा धवलचंद्रजी के राजकवि थे। मंगलाचरण तथा समाप्ति श्लोक से नारायण की शिव में विशेष आस्था प्रकट होती है।

रचना का आधार पंचतन्त्र

पंचतत्र के संस्कृत कृति की प्रति

नीतिकथाओं में पंचतन्त्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। हितोपदेश की रचना का आधार पंचतन्त्र ही है।

कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डा. फ्लीट कर मानना है कि इसकी रचना काल 11 वीं शताब्दी के आस- पास होना चाहिये। हितोपदेश का नेपाली हस्तलेख 1373 ई. का प्राप्त होता है। गढवाल विश्व विद्यालय के श्री वाचस्पति गैरोला जी ने इसका रचनाकाल 14 वीं शती के आसपास निर्धारित किया है।

हितोपदेश की कथाओं में अर्बुदाचल (आबू) पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, मालवा, हस्तिनापुर, कान्यकुब्ज (कन्नौज), वाराणसी, मगधदेश, कलिंगदेश आदि स्थानों का उल्लेख है, जिसमें रचयिता तथा रचना की उद्गमभूमि इन्हीं स्थानों से प्रभावित है।

हितोपदेश के अनुभाग

मूल संस्कृत हितोपदेश सुह्दभेद के अंग्रेजी अनुवाद का ऐक पृष्ठ

हितोपदेश में कुल 41 कथाएँ और 679 नीतिविषयक पद्य हैं। उदाहरणार्थ हितोपदेश में सम्मिलित नीतिविषयक पद्य देखें:-

मर्कटस्य सुरापानं ततो वृश्चिकदंशनम्।
तन्मध्ये भूत संचारो यद्वा तद्वा भविष्यति॥
(नारायण पण्डित रचित हितोपदेश से)

अर्थात् बंदर ने शराब पी, (तदनंतर) उसे बिच्छु ने काटा, ऊपर से उस में भूत प्रविष्ट हो गया, फिर तो सर्वथा अनिष्ट ही होना है

(यानि कि ऐसा होने में रत्ती भर भी संदेह की गुंजाइश नहीं है)।

तात्पर्य यह है कि जिस प्राणी को यौवन, धन-दौलत, सत्ता तथा महानता में से कोई भी एक चीज मिल जाए तो वह अंहकार में अंधा होकर बड़े से बड़ा पाप भी कर सकता है, और यदि किसी को ये चारों एक साथ मिल जाएं उस प्राणी का क्या हाल होगा?

हितोपदेश में यह पद्य महाभारत, धर्मशास्त्र, पुराण, चाणक्य नीति, शुक्र नीति और कामन्दक नीति से लिए गए हैं।

हितोपदेश की कथाओं को इन चार प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है --

1- मित्रलाभ

2- सुह्दभेद

3- विग्रह

4- संधि


हितोपदेश का अनुभाग मित्रलाभ गढवाल विश्व विद्यालय सहित भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तकों के रूप में शामिल किया गया है

पुस्तक पढें >>