हिन्दी! स्लीमिंग सेंटर में / इन्द्रजीत कौर

Gadya Kosh से
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आज मैं अपना मोटापा कम करने के चक्कर में स्लीमिंग सेंटर गयी, वहाँ पहले से मौजूद लोंगों को हाय किया। अचानक मेरी नज़र एक जगह जाकर ठिठक गयी। कुछ जाना- पहचाना चेहरा लग रहा था। वो भी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थी। उसके हाव-भाव कुछ अपने-अपने से लग रहे थे। जब किसी ने आवाज दी कि ‘हिन्दी तुम कैसी हो ?’ तभी मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। यह तो हिन्दी थी। यहाँ? मुझसे रहा नहीं गया। मैं सबको धकियाते हुए उसके पास पहुँची। गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी ,उसने रोक दिया। बोली- ’हाथ मिलाओ तो अच्छा लगेगा। हाँ, दूर से ‘हेलो’ भी तुम कह सकती थी। गले मिलना तो बीती बात हो गयी है।... कहो, कुछ कहना था क्या?’ ऐसा रूखा जबाब सुनकर मुझे धक्का लगा। वह काफी बदल चुकी थी। अपनेपन का भाव ढूंढे नहीं मिल रहा था। मैंने प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘इत्नी पतली? क्यों?...कैसे?’ उसने हाथ चमकाकर जबाब दिया, ‘देखो ,मैने गरिष्ठ भोजन छोड़ दिया है। लोग मुझे लोकप्रिय बनाने के फिराक में थे तो मैं क्या करती? मुझे पतला होना पड़ा। भारी भरकम पहचान से दूरी बनानी पड़ी। हल्के-फुल्के अंदाज में जो सबको पसंद आ जाय, रहना पसंद करती हूँ। ज्यादा गरिष्ठता के घिरे होने के कारण कोर्इ मुझे समझ नहीं पाता था। सिर्फ पुस्तकालय तक ही सीमित थी। अब ऐसा नहीं है। मुक्त अर्थव्यवस्था ने इंडिया को बड़ा बाजार बना दिया है। मुझे हर जगह पहुँचना होता है। मोटापा लेकर कहाँ-कहाँ घूमूँगी? ‘ग्लोबली’ पहचान बढ़ानी है। स्लिम होना जरूरी हो गया है। सुनो, जब से मैने स्लीमिंग सेंटर आना शुरु किया है मेरी लोकप्रियता बढ़ी है। फिल्म, राजनीति, इंटरनेट आदि सब जगह मेरी माँग बढ़ी है।‘‘

उसका जबाब सुनकरं मैं गुस्से से उबली। पूरे बल के साथं बोल पड़ी, ‘काहे की लोकप्रियता? तुम्हारी मौलिकता हटती जा रही है। अपनी जड़ से कटती जा रही हो। होश में आओ। तुम तो हमारी राष्ट्रभाषा हो। पहले वाले रूप में ही तुम लोकप्रिय बनो,... प्लीज़़।’’ मेरी दहाड़ निवेदन मं। तब्दील हो चुकी थी पर उसके सिर पर जूँ तक नहीं रेंगी। उसने फिर मुझे ही समझाने की चेष्टा की, ’आज के दौर में मेरा पहले वाला रूप मान्य नहीं होगा। ऐसा करने पर मुझे ही दौरे पड़ने लगेंगे। फिर से पुस्तकालयों तक ही रहना पड़ेगा। अत: गरिष्ठ शब्दों से दूर ही नहीं, बहुत दूर हो गयी हूँ।...भूल जाइये उस वक्त को..नर्इ हिन्दी अपनायें, आप भी मेरे साथ आइये।...मुझे लोकप्रिय बनाइये।’

उसके इस आधुनिक उत्तर को सुनकर मैं छोटा सा मुँह लेकर वापस आ गयी। हिन्दी अपनी मजबूरी के साथ स्लीमिंग सेन्टर में थी।