हिन्दी की प्राचीन और नवीन काव्यधारा का 'परिचय' / रामचन्द्र शुक्ल
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'हिन्दी की प्राचीन और नवीन काव्यधारा' में श्री सूर्यबली सिंहजी, एम. ए. ने दोनों धाराओं की विभिन्नता प्रकट करनेवाली बहुत सी विशेषताओं का अच्छा उद्धाटन किया है। इन विशेषताओं की ओर ध्यान देने से दोनों प्रकार की कविताओं के स्वरूप का परिचय और वर्तमान कविता की भिन्न भिन्न शाखाओं का आभास मिल जाता है। हमारे काव्य क्षेत्र में ज्यों ज्यों अनेकरूपता का विकास होता जायगा त्यों त्यों ऐसी पुस्तक की आवश्यकता बढ़ती जायगी। अत: हमें पूरी आशा है कि यह पुस्तक उपयोगी सिध्द होगी और सूर्यबली सिंहजी बराबर अपने साहित्य की गतिविधि इसी प्रकार परखते रहेंगे।
(1939 ई.)
[ चिन्तामणि: भाग ]
('हिन्दी की प्राचीन और नवीन काव्यधारा' रीवाँ निवासी श्री सूर्यबली सिंह की समीक्षा पुस्तक है। सूर्यबली सिंह शुक्लजी के शिष्य थे-संपादक)