हिन्दी दिवस / मधु संधु
पूरे देश से विद्वजन आमंत्रित करके इस वर्ष राजधानी में हिन्दी दिवस का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया गया। राष्ट्र भाषा निदेशक ने लगभग सभी राज्यों से हिन्दी संस्थानों के मुखियाओं, विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागाध्यक्षों को आमंत्रित किया। तीन दिन लगातार समारोह चला। सारी आडियो-वीडियो रेकार्डिंग की गई। समाचार पत्रों ने जमकर कवरेज दी।
पंजाब के प्रतिनिधि ने ठोक-बजाकर कहा–"हिन्दी भाषा तब तक जीवित रहेगी, जब तक रामचरित मानस और गुरु ग्रंथ साहिब हैं। इन अमर कृतियों के कारण हिन्दी भी अमर रहेगी।"
गुजरात के प्रवक्ता बोले-"जिस भाषा में नामदेव और तुलसी की कृतियाँ उपलब्ध हैं, उस पर कभी आंच नहीं आ सकती।"
डी०ए०वी० संस्था के प्राचार्य का मत था- "सत्यार्थ प्रकाश और राम चरित मानस हिन्दी और हिंदुस्तान का सिर सदैव ऊँचा रखेंगे।"
बंगाल के मोशाय ने बुलंद आवाज़ में कहा- "गीतांजलि और रामचरित मानस हिन्दी का पर्याय बन चुके हैं।"
यू०पी० के पंडित जी ने मंच ठोक कर कहा- "गोदान और मानस हिन्दी के प्राण तत्व हैं।"
सरकारी पैसे पर मारिशस का चक्कर लगा चुके एक विद्वान बोले, "लाल पसीना और रामचरित मानस हिन्दी के अमर ग्रंथ हैं।"
राजस्थान के एक विद्वान ने कहा, " हिन्दी के महिला लेखन का सूत्रपात मीराबाई से होता है। मीरा विश्व की प्रथम विद्रोहिणी थी। पहली फेमिनिस्ट थी। उसके कारण यह आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है।
हिमाचल वालों ने यह श्रेय निर्मल वर्मा को दिया। बिहार ने फणीश्वरनाथ रेणु का नाम लिया। और लंबे-चौड़े टी॰ ए॰ –डी॰ ए॰ के साथ हिन्दी दिवस समाप्त हो गया।