हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास / भाग 3 / प्रकाश मनु

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31 जनवरी 1986 को मैं हिंदुस्तान टाइम्स की प्रतिष्ठित बाल पत्रिका ‘नंदन’ के संपादकीय विभाग से जुड़ा और सन् 2010 में ‘नंदन’ पत्रिका के सहायक संपादक के कार्यभार से मुक्त हुआ। ये पच्चीस बरस मेरे जीवन के ऐसे आवेग भरे उत्फुल्ल सृजन-वर्ष हैं, जिनमें बड़ों के लिए बहुत कुछ लिखने के साथ ही बाल साहित्य के अगाध सिंधु में भी मैंने बहुत गहरी डुबकियाँ लगाईं। न सिर्फ़ बच्चों के लिए लीक से हटकर कविता, कहानियाँ, उपन्यास, नाटक, जीवनियाँ और किस्से-कहानियों वाले अंदाज़ में बहुत रोचक और रसपूर्ण ज्ञान-विज्ञान साहित्य लिखा, बल्कि साथ ही साथ बाल साहित्य पर आलोचनात्मक और इतिहासपरक नजरिए से भी बहुत कुछ लिखा गया। कहना न होगा कि समूचे बाल साहित्य जगत ने बड़े उत्साह से इनका स्वागत किया। जयप्रकाश भारती, हरिकृष्ण देवसरे, डा. श्रीप्रसाद, दामोदर अग्रवाल, डा. शेरजंग गर्ग और बालस्वरूप राही समेत बाल साहित्य के दिग्गज रचनाकारों ने अपनी उत्साहपूर्ण प्रतिक्रियाओं से मेरा मनोबल बढ़ाया। यह सब मेरे लिए बहुत मूल्यवान था।

ये ऐसे उत्साही क्षण थे, जब पहलेपहल हिन्दी बाल कविता का इतिहास लिखने का विचार मन में आया। हिन्दी बाल कविता पर केंद्रित मेरे बहुत सारे विस्तीर्ण लेख थे, जिनसे बहुत मदद मिली। खासकर साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में हिन्दी बाल कविता पर केंद्रित मेरा लंबा लेख छपा, तो उस पर चिट्ठियों की लगभग बारिश ही हो गई। एक से एक शीर्षस्थ साहित्यकारों के सराहना भरे पत्र मुझे मिले। इनमें द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी और डा. श्रीप्रसाद के लिखे बधाई पत्र भी शामिल हैं। जाहिर है, इसने मुझे बहुत उत्साहित भी किया और मैं जी-जान से अपने काम में जुट गया।

सन् 2003 में मेरा लिखा ‘हिंदी बाल कविता का इतिहास’ मेधा प्रकाशन से छपकर आया, जिसकी चतुर्दिक प्रशंसा हुई। लगभग हर पत्र-पत्रिका में इस पर समीक्षात्मक लेख छपे। रेडियो और दूरदर्शन के विशेष कार्यक्रम हुए। बाल साहित्यकारों ने बड़े मुक्त मन से इसका स्वागत किया। तभी मैंने मन ही मन पक्का संकल्प कर लिया था कि अब समूचे हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास लिखना है। हालाँकि तब नहीं जानता था कि यह काम इतना बड़ा है कि सिर पर पूरा एक पहाड़ उठा लेने से कम नहीं है।

यों एक राहत की बात यह थी कि हिन्दी बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं पर मेरे लंबे शोधपूर्ण इतिहासपरक लेख बहुत छपे थे। तो यह आत्मविश्वास तो मन में था ही कि बहुत सारी आधार सामग्री मेरे पास पहले से ही मौजूद है। बस, उसे एक नई व्यवस्था देनी थी तथा उसकी लक्ष्य परिधियों को कुछ और विस्तार देते हुए, व्यापक बनाना था। अलबत्ता सन् 2003 में ही ‘हिंदी बाल कविता का इतिहास’ ग्रंथ के आते ही मैंने समूचे हिन्दी बाल साहित्य के इतिहास पर काम करना शुरू कर दिया।

हिंदी बाल कविता के इतिहास पर तो मैं विधिवत काम कर ही चुका था। लिहाज़ ा इसके बाद बाल कहानी, बाल उपन्यास, बाल नाटक, बाल ज्ञान-विज्ञान सहित्य, बाल जीवनियाँ और बाल पत्रिकाएँ—इन पर व्यापक रूप से काम शुरू हुआ। इसके बाद तो प्रकाशन विभाग की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘आजकल’ समेत अपने जानी-मानी पत्रिकाओं में मेरे दर्जनों लेख छपे। साथ ही इतिहास लेखन का कार्य भी निरंतर चलता रहा। सन् 2018 में प्रभात पकाशन से बड़े खूबसूरत कलेवर में हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास छपकर आया।

कहना न होगा कि यह हिन्दी बाल साहित्य का विधागत इतिहास है। यानी हर अध्याय अपने में एक विधा का समूचा इतिहास है। अगर किसी की बाल कहानी में रुचि है तो उसे हिन्दी बाल कहानी की पूरी विकास-यात्रा और बाल कहानी का मुकम्मल इतिहास उसी एक अध्याय में मिल जाएगा। यही बात बाल कविता, बाल नाटक, बाल उपन्यास आदि अध्यायों के बारे में कही जा सकती है। इतिहास-ग्रंथ के प्रारंभ में काल-विभाजन तथा उसके पीछे अंतर्हित साहित्यिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों की बहुत विस्तार से चर्चा है, जिससे इस काल-विभाजन का आधार पुष्ट होता है। साथ ही, अपने इतिहास के लिए यह काल-विभाजन क्यों मुझे सुसंगत और मौजूँ लगा, इस पर भी मैंने प्रकाश डाला है।