हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास / भाग 5 / प्रकाश मनु

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यहाँ यह स्पष्ट कर दूँ कि मेरा लिखा ‘हिंदी बाल साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ समूचे हिन्दी बाल साहित्य का पहला इतिहास है। हाँ, इससे पहले सेवक जी ने हिन्दी बाल कविता का इतिहास लिखा था, ‘बालगीत साहित्य : इतिहास एवं समीक्षा’ शीर्षक से। इसके बाद सन् 2003 में मेधा बुक्स से ख़ुद मेरा इतिहास-ग्रंथ आया था, ‘हिंदी बाल कविता का इतिहास’। यों मेरे लिखे बाल साहित्य के इस बृहत् इतिहास-ग्रंथ से पहले अभी तक कुल ये दो ही इतिहास छपे थे, पर ये दोनों केवल बाल कविता तक सीमित थे। हिन्दी बाल साहित्य का पहला इतिहास-ग्रंथ तो यही है, जो सन् 2018 में प्रभात प्रकाशन से बड़े खूबसूरत कलेवर में छपकर आया है। इसे लिखने में मैंने लगभग अपना पूरा जीवन खपा दिया।

यों इस इतिहास-ग्रंथ से पहले मेरी एक पुस्तक ‘हिंदी बाल साहित्य : नई चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ आ चुकी थी, जिसमें अलग-अलग विधाओं में बाल साहित्य की विकास-यात्रा को दरशाया गया था। काफ़ी लंबे-लंबे इतिहासपरक लेख इसमें हैं। यह पुस्तक सन् 2014 में आई थी। इसी तरह शकुंतला कालरा जी की एक संपादित पुस्तक ‘बाल साहित्य : विधा विवेचन’ भी आ चुकी थी, जिनमें बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं पर अलग-अलग साहित्यकारों ने लिखा। पर बाल साहित्य का कोई विधिवत और संपूर्ण इतिहास अब तक नहीं आया था। इसलिए मेरे ग्रंथ ‘हिंदी बाल साहित्य का इतिहास’ ने एक बड़े अभाव की पूर्ति ही नहीं की, बल्कि एक तरह की पहलकदमी भी की। मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना तो यह था ही कि मैं हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास लिखूँ। पर मेरे साथ-साथ यह बाल साहित्य के सैकड़ों लेखकों का भी सपना था कि ऐसा इतिहास-ग्रंथ सामने आए।

तो मैं समझता हूँ, इस इतिहास गंथ के जरिए, मैंने केवल अपना ही नहीं, सैकड़ों बाल साहित्यकारों का सपना भी पूरा किया है और यह काम हो सका, इसका श्रेय मैं अपने मित्रों, शुभचिंतकों और उन सैकड़ों बाल साहित्यकारों को देता हूँ जिनकी शुभकामनाएँ मेरे साथ थीं और उसी से मुझे इतनी हिम्मत, इतनी शक्ति मिली कि यह काम पूरा हो सका। सच पूछिए तो मुझे लगता है कि यह काम करने की प्रेरणा मुझे ईश्वर ने दी और उसी ने मुझसे यह काम पूरा भी करा लिया। मैं तो बस एक निमित्त ही था। इतनी सारी सद्प्रेरणाएँ मेरे साथ न होतीं तो मैं भला क्या कर सकता था? एक पुरानी कविता का सहारा लेकर कहूँ तो—‘कहा बापुरो चंद्र...!!’