हिन्दी ब्लॉगिंग और हिंग्लिश / संतलाल करुण

Gadya Kosh से
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हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास महज़ दस वर्षों का है, जबकि हिंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने और भारत-वासियों के उसके सम्पर्क में आने से लगभग 300 वर्षों पूर्व से चलन में आई। हिंग्लिश की तरह मिश्रभाषा का रूपण-विरूपण केवल हिन्दी में ही नहीं, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं और कमोबेश दुनिया की अनेक भाषाओं में पाया जाता है। भाषा का ऐसा मिश्रित रूप-स्वरूप पारिस्थितिक प्रभाव के कारण निर्मित होता है। अंग्रेज़ों और हिन्दी-भाषियों के परस्पर भौतिक-सांस्कृतिक संघर्ष और आदान-प्रदान से पनपी हिंग्लिश अब इस देश में अधिकतर फैशनपरस्तता तथा बोल-चाल की अतिरंजना और दबंग भाषिक भंगिमा का चालू सिक्का बनती जा रही है।

हिन्दी अपनी लचीली ग्रहणशीलता के चलते अनेक भारतीय-अभारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करती रही है। पर इधर अत्याधुनिक सोशल नेट्वर्किंग, अंग्रेज़ी के प्रति अधिक आकर्षण और फ़ैशनपरस्त मानसिकता के कारण हिंग्लिश के दो रूप सामने आ रहे हैं — पहला, अपेक्षित और उपयुक्त रूप तथा दूसरा, अनपेक्षित और विकृत रूप। पहला रूप स्वीकार्य है और उसके कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं, जैसे — आज स्कूल बंद है। गाड़ी का टाइम हो गया है। मुझे ट्रेन पकड़नी है। बार-बार फ़ोन आ रहा है। बेटी कॉलेज जाने लगी है। यह रोड कहाँ तक जाती है ? पेन्सिल ले आओ। पेन कहाँ रख दी ? टीवी ऑन करो। सारे डकोमेण्ट डेस्कटॉप पर फोल्डर में हैं। …इत्यादि ।

भाषा-प्रयोग में किसी भी प्रकार के अति का होना हानिकारक है। आज-कल अतिरिक्त दबाव से उत्पन्न हिंग्लिश के विकृत और अस्वीकार्य रूप हिन्दी का गठन बड़ी तेजी से बिगाड़ रहें हैं। विगत दो दशकों से यह प्रवृत्ति और अधिक बढ़ गई है। कुछ उदाहरण तो देखिए — दीदी कितनी शाई है न ! नाउ डेज़ मेरे डैड हांगकांग की जर्नी पर हैं। देखो माम, ये डॉग्ज़ कितने डर्टी हैं ! बट मैं क्या करूँ ? मैं एक्च्युली मार्निंग वाक के लिए निकला था। मेरे भी बुक्स बैग में डाल लो। आज-कल मुझे घर में बहुत वर्क करना पड़ता है। एक गिलास वाटर देना यार ! … इत्यादि।

हिंग्लिश के अपेक्षित और उपयुक्त रूप से हिन्दी की व्यापकता बढ़ती है, वह समृद्ध होती है और राष्ट्रीयता-अंतर्राष्ट्रीयता के शिखर पर प्रतिष्ठापित होती है। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में अमिताभ बच्चन द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी और प्रयोग किए गए उनके हिंग्लिश-रूप हिन्दी के स्तर को किस तरह भाषागत ऊँचाई प्रदान करते हैं, यह पूरी दुनिया देख-सुन रही है, कहने की आवश्यकता नहीं। वे राष्ट्रभाषा की गरिमा के अनुरूप अपने अनोखे लहज़े, आवाज और अंदाज़ में अत्यंत लोकप्रिय, मानक, कभी संस्कृतनिष्ठ, कभी हिन्दुस्तानी हिन्दी बोलते हैं; कभी अच्छी, अपेक्षित हिंग्लिश और कभी ज़रुरत पड़ते ही फर्राटेदार सुग्राह्य अंग्रेज़ी। ऐसी हिन्दी, हिंग्लिश और अंग्रेज़ी से, ऐसी भाषा और ऐसे भाषा-रूप से किसे गुरेज़ हो सकता है। भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज, आज तक के पुण्य प्रसून बाजपेयी और इंडिया टीवी के रजत शर्मा की हिन्दी–हिंग्लिश स्वरूपों को भी अनुकरणीय बानगी के तौर पर लिया जा सकता है। ये लोग प्राय: अच्छी हिन्दी का प्रयोग करते हैं और अत्यंत अपेक्षित अंग्रेज़ी शब्दों का संतुलन साधते हुए प्रासंगिक हिंग्लिश का व्यवहार करते हैं।

पर आज-कल अभिव्यक्ति में अक्षम और अंग्रेज़ी के दबाव से पस्त लोग जिस तरह बार-बार बट, एक्चुअली आदि लगाकर हिंग्लिश का जैसा विकृत प्रयोग कर रहे हैं, उसे हिन्दी की पाचक-क्षमता कैसे स्वीकार कर सकती है ? भाषा का ऐसा प्रयोग हिन्दी के रूप को तो बिगाड़ता ही है, साथ ही बलात् हिंग्लिश से उनके अतिवादी होने के दुराग्रह को भी प्रकट करता है। कदाचित् ऐसे लोगों के अतिवाद के कारण ही ‘अंग्रेज़ चले गए, औलाद छोड़ गए’-जैसा मुहावरा प्रचलित हुआ होगा।

और हिंग्लिश के जो तथ्य-कथ्य हिन्दी से जुड़े हैं और हिन्दी के लाभ-हानि को प्रभावित करते हैं; वही हिन्दी-ब्लॉगिंग के साथ भी लागू होते हैं। यदि हिन्दी ब्लॉगिंग को विश्व-वांड्मय में सम्मिलित होना है, आगे बढ़ना है, विश्व-स्तर पर नाम कमाना है, तो हिंग्लिश के अतिवाद और कृत्रिमता से बचना होगा। उसे मानक हिन्दी में अर्जुन के तीर छोड़ने होंगे। हलधर की भाँति सहज, सुन्दर, प्राकृत हिंग्लिश का हल कुरुक्षेत्र में चलाना होगा। यदा-कदा अंग्रेज़ी-उद्धरणों के खातिर रोमन लिपि का युधिष्ठिर-भाला प्रक्षेपण की साधना के साथ फेंकना होगा।

अंतत: हिन्दी-ब्लॉगिंग का कुरुक्षेत्र अर्जुनों, भीमों और युधिष्ठिरों की प्रतीक्षा कर रहा है, हिंग्लिश उसके लिए कोई समस्या नहीं बन सकती। समस्या तो झाड़-झंखाड़ काटकर मरुभूमि को तोड़ने की है, उसे उपजाऊ बनाने की है, उमड़ते-घुमड़ते बादलों को धरती पर उतारने की है। इस प्रकार इंग्लिश-हिंग्लिश, उर्दू-बँगला सब के साथ तालमेल बिठाती ब्लॉगिंग के पाण्डव-ब्लॉगर चातक की नाईं स्वाती की हवा में धीरे-धीरे कोटर से चोंच काढ़ रहे हैं और हिन्दी अपने वेब-पट के मेघाच्छादित आसमान में आँचल लहराने लगी है।