हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं / अशोक कुमार शुक्ला
यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिये सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है। एक शताब्दी पूर्व सन् 1900 ई0 के लगभग जापानी साहित्यकार मासाओका शिकि ( 1867-1902) ने विशिष्ट जापानी छंद “होक्कु” को एक नया नाम हाइकु (Haiku) दिया जिसने लोकप्रियता के बडे मानकों को प्राप्त किया ।
विषय सूची
नवीनतम विधा है हाइकु
भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि के लिये कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा जो जापानी तोहफा लाया गया उसी का नाम है हाइकु । आज जापान में लाखों लोग इस छन्द में रचना करते हैं । भारत की अनेक भाषाओं ने भी इस छंद को बडी आत्मीयता के साथ अपनाया है। जापानी और हिन्दी के साथ -साथ हाइकु विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है ।
- लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकु कवि मात्सुओ बाशो की हाइकु कविताओं के बंगला भाषा में अनुवाद के रूप में यह विधा सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुई परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लंबे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी। इस प्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा जापानी हाइकु कविताओं के बंगला भाषा में अनुवाद के माध्यम से भारतीय साहित्य उर्वरा भूमि में हाइकु का बीजारोपण तो हो गया परन्तु इस बीज के अंकुरित होकर विकसित होने के लिये जिस अनुकूल वातावरण की आवश्यकता थी वह श्रदेय अज्ञेय के माध्यम से मिला। हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकू ।
- हिन्दी भाषा में हाइकु की प्रथम चर्चा का श्रेय अज्ञेय को दिया जाता है, उन्होंने छठे दशक (१९६०) में अरी ओ करुणा प्रभामय (१९५९) में अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ लिखी हैं जो हाइकु के बहुत निकट हैं। जिन पर अब भी लगातार शोध जारी है।
- प्रो० डा० सत्यभूषण वर्मा ने हिन्दी साहित्य संसार को सबसे पहले हाइकु से परिचित कराया तथा अन्तर्देशीय पत्र प्रकाशित कर हाइकु को चर्चित किया।
- वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से यह विधा हिन्दुस्तानी कविता जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।
इस विधा का काब्य अनुशासन
इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये डॉ0 जगदीश व्योम ने बताया है:-
- हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
- संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
- अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।
- हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
- इस संबंध में डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गयी पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा क्षणिका ही कहना चाहिये।
- वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गंभीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर संबोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जायेगा।
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।
त्रिवेणी से तुलना
कुछ लोग इस विधा की तुलना हिन्दी काव्य विधा त्रिवेणी से करते हैं। हाइकु और त्रिवेणी में केवल इतनी समानता है कि दोनों में मात्र तीन पंक्तियां होती है इन तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है। यह माना जाता है कि त्रिवेणी विधा को गुलज़ार साहब ने विकसित किया। त्रिवेणी की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापनी काव्य ही कहा जाता है। वैसे गुलज़ार साहब ने इसके संबंध में 2003 में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना के प्रकाशन के अवसर पर त्रिवेणी की परिभाषा इस प्रकार दी थी-
........शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी - त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।1972-73 में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं और अब – त्रिवेणी को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए --गुलज़ार
हाइकु में जहां तीन पंक्तियों में क्रमानुसार 5+7+5 कुल मिलाकर केवल 17 वर्णों में विचार अंकित करने की बाध्यता है वहीं त्रिवेणी विधा में ऐसी कोई बाघ्यता न होकर तीन लयवद्ध पंक्तियों में विचार व्यक्त करने होते हैं इस प्रकार तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है उदाहरण स्वरूप तीन पंक्तियों का एक हाइकु देखे-
ठहर कर
देखी इंसानियत
ठिठुरी हुई
-डॉ0 सुदर्शन प्रियदर्शिनी
और इन्सानियात के इसी ख्याल को व्यक्त करती गुलज़ार साहब की यह त्रिवेणी-
गोले, बारूद, आग, बम, नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है
--गुलज़ार
ताँका
हाइकु के अनुरूप ताँका भी जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली है । इस जापानी विधा को हिन्दी काव्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने बताया है:-
- इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे । हाइकु का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
- एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग 7+7 की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था । फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी ।
- इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी ।
- ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है ।
- इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
- ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत । लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती ।
- साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
चोका
चोका (लम्बी कविता) पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है । इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुए रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने बताया है:-
- मूलत; चोका गाए जाते रहे हैं । चोका का वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है ।यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।
- इसका नियम इस प्रकार है -
5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि समापन करते समय इस क्रम के अन्त में 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।
- इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या [ ODD] यानी 25-27-29-31……इत्यादि ही होता है ।
- डॉ0 डॉ सुधा गुप्ता जी ने स्वतन्त्र रूप से 'ओक भर किरनें ' चोका रचनाओं के द्वारा इस शैली के रचनाकर्म की ओर अनेक कवियों को प्रोत्साहित किया ।
हाइकु का चित्रात्मक निरूपण है हाइगा
हाइगा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हाइ और गा । हाइ शब्द का अर्थ है हाइकु | हाइकु जो जापनी कविता की एक समर्थवान विधा है और गा का तात्पर्य है चित्र । इस प्रकार हाइगा का अर्थ है चित्रों के समायोजन से वर्णित किया गया हाइकु| हाइकु।
- वास्तव में हाइगा जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ ।
- हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला)
- हाइगा की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था |
- फ़िलहाल कविता कोश में रचनाओं को जोडे जाने के संबंध में अपनाये जा रहे मानकों के अनुरूप इस कोश में चित्रात्मक रचनाओं (जैसे कि हाइगा या चित्र पर लिखे शे’र और ग़ज़ल) इत्यादि का संकलन नहीं किया जा रहा है। हिन्दी में सुश्री ऋताशेखर मधु जी हिन्दी हाइगा नामक ब्लाग का संचालन कर रही हैं जिसमें अनेक हाइकुकारों के हाइकु को हाइगा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
पुस्तकें / शोध-कार्य
- हाइकु-१९८९ और हाइकु-१९९९ के बाद कमलेश भट्ट 'कमल' द्वारा संपादित हाइकु का तीसरा संकलन '"हाइकु-2009'" है।
- मूलतः इस जापानी साहित्य की विधा हाइकु पर करुणेश भट्ट ने लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध कार्य भी किया है।
हिन्दी में हाइकु रचने वालों की सूची
- हिन्दी में हाइकु को गम्भीरता के साथ लेने वालों और हाइकुकारों की सूची में- प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा , गोपालदास नीरज, शिव बहादुर सिंह भदौरिया , डॉ० भगवत शरण अग्रवाल, सरस्वती माथुर, सुभाष नीरव , सुधा गुप्ता , डा० शैल रस्तोगी ,कमलेश भट्ट 'कमल, डॉ० जगदीश व्योम, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ , कुँअर बेचैन , अंजली देवधर, रमा द्विवेदी ,डॉ उर्मिला अग्रवाल ,कृष्ण शलभ , ऋतु पल्लवी डॉ० रामनारायण पटेल ‘राम',प्रो० आदित्य प्रताप सिंह ,विद्या बिन्दु सिंह, राजेन जयपुरिया, पवन कुमार, मिथिलेश दीक्षित , भावना कुँअर, , अशोक कुमार शुक्ला, रेखा रोहतगी, कमला निखुर्पा, जेन्नी शबनम, पारस दासोत, सुरेश कुमार, कमल किशोर गोयनका, मोतीलाल जोतवाणी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, नवल किशोर नवल, आदि नाम प्रमुख नाम है। जिसमें से अनेक हाइकुकारों के हाइकु तथा अन्य रचनाऐं कविताकोश में भी उपलब्ध हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइकु
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्टेरनेट के माध्यम से हाइकु लिखने वालों में भावना कुँअर,(आस्ट्रेलिया) सुदर्शन प्रियदर्शिनी, (यू.एस.ए.) , पूर्णिमा वर्मन, (संयुक्त अरब अमीरात) ,अनूप भार्गव (अमेरिका), रचना श्रीवास्तव,डैलस (अमेरिका), सारिका सक्सेना, (यू.एस.ए.) , जैनन प्रसाद, (फिजी) , शकुन्तला तलवार, (यू.एस.ए.) , प्रो० अश्विन गाँधी, (अमेरिका), अमिता कौण्डल, डॉ अनीता कपूर (यू.एस.ए.), हरदीप कौर सन्धु, हरिहर झा (आस्ट्रेलिया), प्रदीप मैथानी (सिंगापुर), स्वाति भालोटिया (इंग्लैण्ड), रजनी भार्गव (अमेरिका) रेखा राजवंशी (आस्ट्रेलिया) आदि नाम प्रमुख नाम है।