हिन्दुस्तान से मैं कहाँ जाऊँ? / अफ़नासी निकीतिन
अफ़नासी निकीतिन भारत पहुँचने वाला प्रथम रूसी था। यह सन् 1466 से 1472 तक यात्राएँ करता रहा। अपना वृत्तान्त इसने ‘तीन समुन्दर पार’ के विवरण के रूप में लिखा है। निकीतिन एक सौदागर के रूप में अपने जन्म स्थान त्वेर से चला। बाकू पहुँचा। वहाँ से फारस घूमता हुआ होरमूज बन्दरगाह। होरमूज में उसने सुना कि हिन्दुस्तान में घोड़े नहीं होते, इसलिए निकीतिन ने वहाँ से एक घोड़ा खरीदा ताकि घोड़े के बदले में वह हिन्दुस्तान से कीमती माल ले सके। जिस समय निकीतिन ने हिन्दुस्तान की धरती पर पैर रखा, उस समय मुस्लिम शासकों का दबदबा था। दक्षिण में बहामनियों का राज्य सबसे शक्तिशाली था। गुजरात से होता हुआ निकीतिन दक्षिण में एक मुस्लिम राज्य में पहुँचा।
“और वहाँ जुन्नर में खान ने मेरा घोड़ा छीन लिया। जब उसे पता लगा कि मैं मुसलमान नहीं बल्कि रूसी (ईसाई) हूँ तो वह बोला - अगर तुम हमारा मुहम्मदी मजहब कबूल करो तो तुम्हारा घोड़ा भी लौटा दूँगा और एक हजार अशर्फियाँ भी दूँगा। अगर तुम हमारा मजहब कबूल नहीं करोगे तो घोड़ा हम रख ही लेंगे, अलावा इसके तुमसे एक हजार अशर्फियाँ जुर्माने के रूप में वसूल की जाएँगी। और उसने मुझे परम पवित्र भगवज्जनी के व्रत के दौरान हमारे मोक्षदाता के दिन तक चार दिन की अवधि दी। और प्रभु ईसामसीह ने अपने पवित्र दिवस पर मुझ पर दया की, उसने मुझे जुन्नर में नास्तिकों के बीच नष्ट न होने दिया। एक खोजा मुहम्मद खोरासानी हमारे मोक्षदाता के दिन की पूर्व सन्ध्या को आ पहुँचा और मैंने उससे अनुरोध किया कि वह मेरे लिए वकालत करे। वह खान के पास गया और उससे अनुनय की कि वह मेरा धर्म-परिवर्तन न करे, साथ ही वह मेरा घोड़ा भी वापस लाया। प्रभु ने यह चमत्कार दिखाया। अतः मेरे रूसवासी ईसाई भाइयो! अगर आपको हिन्दुस्तान जाना हो तो आपको अपना धर्म रूस में ही रख देना चाहिए और हिन्दुस्तान देश के लिए रवाना होने से पहले मुहम्मद को मनाना चाहिए।
“मुसलमानों ने मुझसे माल की समृद्धि की बात की थी, लेकिन मैंने देखा कि वहाँ हमारे देश के लिए कुछ नहीं है। सारा चुंगी-माफ माल इस्लामी मुल्कों के लिए है। हमें बिना चुंगी अदा किये माल ले जाने की इजाजत नहीं, और चुंगी बहुत भारी है। अलावा इसके समुद्री डाकू भी बहुत हैं। और सभी समुद्री डाकू मूर्तिपूजक हैं, वे न ईसाई हैं न मुसलमान। वे पत्थर की मूर्तियों की पूजा करते हैं और ईसा को जानते तक नहीं।
“आलन्द (गुलबर्गा के पास एक कस्बा) में एक जगह है शेख अलाउद्दीन का मकबरा, जहाँ साल में एक बार मेला लगता है... आलन्दा में घुग्घू नाम का एक पक्षी होता है; यह रात में ‘घुग्घू-घुग्घू’ चिल्लाता है। वे जंगलों में रहते हैं। बन्दरों का एक राजा होता है, जब कोई उन्हें सताता है तो वे अपने राजा के पास शिकायत ले जाते हैं और राजा अपनी सेना के साथ धावा बोल देता है। बन्दर कस्बे पर टूट पड़ते हैं, घरों को तहस-नहस कर देते हैं और आदमियों को मार डालते हैं। कहा जाता है कि उनके पास एक बहुत बड़ी सेना है और उनकी अपनी एक जबान भी है।
“...और मैं ईस्टर के उपवास तक बीदर में रहा। वहाँ मैं कई हिन्दुओं से परिचित हुआ और उनसे मैंने कहा कि मैं ईसाई हूँ, मुसलमान नहीं, और मेरा नाम अफ़नासी निकीतिन या मुसलमानी जबान में खोजा यूसुफ़ खोरासानी है। वे खाना खाते, व्यापार करते, प्रार्थना करते या अन्य कोई काम करते समय मुझसे दूर नहीं रहे और उन्होंने अपनी पत्नियों को भी छुपाकर नहीं रखा।
“...मैंने बीदर में चार महीने बिताये और कुछ हिन्दुस्तानियों (हिन्दुओं) के साथ पर्वत (कृष्णानदी के दक्षिणी तट पर हैदराबाद के पास एक तीर्थ) जाना स्वीकार किया। यह उनका यरुशलेम या मुसलमानी जबान में मक्का है, जहाँ उनका मुख्य बुतखाना (मन्दिर) है... बुत के चमत्कार देखने के लिए सारे हिन्दुस्तान देश से लोग आते हैं। बुतखाने के पास औरतें सर मुड़वा लेती हैं, पुरुष सिर और दाढ़ी मुड़वा लेते हैं... बुतखाने में बुत पत्थर का बना हुआ है और सचमुच बहुत ही बड़ा है, उसकी पूँछ उसके एक कन्धे पर से लटकती है... बायें हाथ में वह माला पकड़े हुए है। सिवा लँगोटे के और कोई वस्त्र उसके शरीर पर नहीं है। उसका चेहरा वनमानुष का-सा है। बुत के सामने एक भीमकाय बैल है जो काले पत्थर का बना है... (निकीतिन यहाँ पर शिव प्रतिमा का वर्णन कर रहा है) लोग इस बैल के खुरों का चुम्बन करते हैं और फूल चढ़ाते हैं। बुत पर भी फूल चढ़ाये जाते हैं... हिन्दू बैल को पिता और गाय को माता कहते हैं। गोबर का उपयोग वे रोटी सेंकने के लिए करते हैं और राख अपने चेहरों, माथों और शरीरों पर मलते हैं... गुलाम सस्ते हैं। एक अच्छी काली गुलाम लड़की की कीमत चार या पाँच फ़नाम है!
“...हे भगवान, मैं तुम पर भरोसा करता हूँ। हे प्रभु, मुझे बचा लो। हिन्दुस्तान से मैं कहाँ जाऊँ? यदि होरमूज जाऊँ तो होरमूज से खोरासान, जगताई, बहरीन या येज़्द जाने का रास्ता नहीं है। हर जगह कलह चल रहा है। हर जगह राजाओं को उखाड़ फेंका गया है... और कोई रास्ता है ही नहीं। और मक्का से होकर जाने का मतलब होगा मुसलमानी मजहब अपना लेना; उनके मजहब ही की वजह से ईसाई मक्का नहीं जाते क्योंकि वहाँ धर्म-परिवर्तन करके उन्हें मुसलमान बनाया जाएगा। और हिन्दुस्तान में रहने का मतलब होगा, मेरे पास जो कुछ है, वह सबका सब खर्च कर डालना। यहाँ हर चीज महँगी है।”