हिफाजत का व्यवसाय और व्यवसाय की हिफाजत / जयप्रकाश चौकसे

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हिफाजत का व्यवसाय और व्यवसाय की हिफाजत
प्रकाशन तिथि : 28 दिसम्बर 2018


सेंसर ने बाल ठाकरे की बायोपिक पर आपत्ति दर्ज की है परंतु प्रकरण मात्र दो संवाद का है। अत: नए साल में 25 जनवरी को फिल्म का प्रदर्शन संभव है। 'ठाकरे' नामक इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने मुख्य पात्र अभिनीत किया है। कुछ वर्ष पूर्व राम गोपाल वर्मा ने अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय तथा अमिताभ बच्चन अभिनीत 'सरकार' बनाई थी। ऐश्वर्या का आरंभिक दौर था। अमिताभ बच्चन ने बाल ठाकरे का पात्र परदे पर इस विश्वसनीयता से प्रस्तुत किया था कि स्वयं ठाकरे आश्चर्यचकित रह गए थे। अपने उस गेटअप में अमिताभ बच्चन शिवसेना के मुख्यालय में बैठते तो शिव सैनिक उन्हें अपना नेता ही समझते। नवाजुद्दीन के सामने बड़ी चुनौती है।

दक्षिण भारत में क्षेत्रीयता के आधार पर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की स्थापना हुई। इसी से प्रेरित बाल ठाकरे ने शिव सेना का गठन किया। प्रारंभिक काल में यह संस्था मुंबई में रोजी-रोटी कमाने वाले दक्षिण भारतीय लोगों के खिलाफ थी परंतु बाल ठाकरे ने अपने संगठन को व्यापक बनाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से आए लोगों के विरोध को मुद्दा बनाया। भारत में संकीर्ण क्षेत्रीयता की समस्या हमेशा ही रही है परंतु जवाहरलाल नेहरू ने 17 वर्ष तक इन ताकतों को दबाए रखा और भारत की अखंडता को कायम रखा।

गौरतलब यह है कि समस्याओं की जड़ बेरोजगारी और असमानता आधारित समाज की रचना है। क्षेत्रीयता और गरीबी असमानता आधारित व्यवस्था का बॉय प्रॉडक्ट है। हमारे भीतरी बंटवारे के कारण ही बाहरी आक्रमणकर्ता सफल हुए हैं। मौजूदा हुक्मरान ने इस बंटवारे को नई धार दी है और अब तो उनके समर्थक का कहना है कि मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन पर अपव्यय नहीं करके मौजूदा रेल व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करना चाहिए। विदेश की सड़कें और चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था से चकाचौंध होकर दावा किया जाता है कि भारत को अमेरिका जैसा बना देंगे परंतु भारत को भारत ही रहने देना चाहिए।

मारिया पुजो के उपन्यास 'गॉडफादर' से प्रेरित फिल्में अनेक देशों में बनी हैं। राम गोपाल वर्मा की सरकार भी गॉडफादर ही थी। आगामी 'ठाकरे' का फिल्म गोत्र भी 'गॉडफादर' ही है। फिरोज खान पहले फिल्मकार थे जिन्होंने 'गॉडफादर' से प्रेरित धर्मात्मा बनाई और वे इस विषय से इतना मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने दक्षिण भारत की फिल्म 'नायकन' के अधिकार खरीद कर 'दयावान' बनाई। गोयाकि उन्होंने अपने ही माल पर 'मेड इन चेन्नई' का ठप्पा देखकर उसे खरीद लिया। 'गॉडफादर' को हम पूंजीवाद की महाभारत भी कह सकते हैं परंतु महाभारत की तरह अनेक सतहें 'गॉडफादर' में नहीं हैं। यह एक दोयम दर्जे के लेखक द्वारा रचा डिज़ाइनर बेस्ट सेलर है। डिज़ाइनर वस्तुएं बाजार द्वारा छोड़ा गया शिगूफा होती हैं। इस मामले को समझने में शैलेंद्र हमारी मदद कर सकते हैं- 'जो दिन के उजाले में न मिले, दिल ढूंढ़े ऐसे सपनों को/ इस रात की जगमग में डूबी मैं खोज रही हूं अपने को'। ज्ञातव्य है कि बाल ठाकरे ने अपना कॅरिअर कार्टूनिस्ट की तरह प्रारंभ किया था। मुंबई से प्रकाशित अखबार के लिए वे प्रतिदिन कार्टून बनाते थे। इस कार्य में उन्हें यथेष्ट सफलता मिली परंतु वे संतुष्ट नहीं थे। महत्वाकांक्षा के सफेद घोड़े पर सवार होकर उन्होंने शिव सेना का गठन किया। हाजी मस्तान एक तस्कर था और उसका ही एक साथी दाऊद इब्राहिम था। दाऊद दुकानदारों से उनकी हिफाजत करने के नाम पर प्रतिमाह धन वसूल करता था। बाल ठाकरे ने भी 'हिफाजत' का कारोबार अपना लिया। दोनों व्यक्ति अलग-अलग धर्म के अनुयायी थे, अतः सुरक्षा देने का व्यवसाय भी धर्म से जुड़ गया। धार्मिकता के तड़के ने इसे हिंसा की धार प्रदान की। हाजी मस्तान के सहयोगी रहे दाऊद कैसे अपने उस्ताद से ऊपर चला गया इसका विवरण फिल्म 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई' में बड़े प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया गया था।

दरअसल यह हिफाजत और सुरक्षा देने के नाम पर जजिया वसूल करना इस तथ्य को रेखांकित करता है कि हमने कितना असुरक्षित समाज रचा है। इसका एक पक्ष यह भी है कि पहले सुरक्षा भंग करते हैं और असुरक्षा को रचते हैं। फिर उससे बचाने का ठेका लिया जाता है। इसी बात को एक सदी पहले चार्ली चैप्लिन की फिल्म में हम देखते हैं कि बेटा पत्थर फेंककर शीशा तोड़ता है और पिता नया शीशा लगाकर धन कमाता है। इसी तरह हमने बेरोजगारी गढ़ी है। शीशे पर पत्थर फेंकना एक विरोध है। श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' में बच्चा सामंतवादी की हवेली पर पत्थर फेंकता है। दुष्यंत कुमार ने इसे यूं बयान किया है- 'कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो जरा तबीयत से उछालो यारो'।

यह गॉडफादर अवधारणा उस समय अत्यंत भयावह हो जाती है, जब इस प्रणाली पर कार्य करते हुए लोग हुक्मरान बन जाते हैं और देश को अपराध जगत की तरह संचालित करने लगते हैं। बहरहाल, हुक्मरान का विरोध भीतर से वैसा ही उभर रहा है जैसे हाजी मस्तान का विरोध किया उनके गुलाम दाऊद ने।