हिमाचल प्रदेश की लोकनाट्य शैली: करयाला / कुँवर दिनेश

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देवभूमि हिमाचल प्रदेश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की लोक कलाएँ और नाट्य परंपराएँ इस सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं। इन्हीं में से एक महत्त्वपूर्ण लोक नाट्य विधा है - ‘करयाला’। यह एक पारंपरिक मनोरंजन का माध्यम होने के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक संदेशों को प्रसारित करने का भी सशक्त मंच है। सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने में भी इसकी भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।

करयाला, हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है; लेकिन इसका मूल स्वरूप और उद्देश्य लगभग समान ही होता है। यह एक प्रकार का स्वांग या अभिनय है, जिसमें हास्य और व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों पर प्रकाश डाला जाता है। करयाला में आमतौर पर पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओं और समकालीन सामाजिक मुद्दों को दर्शाया जाता है। इस नाट्य में संवादों, गीतों और नृत्यों का मिश्रण होता है, जो दर्शकों को बांधे रखता है।

‘करयाला’ शब्द का अर्थ है खेल या लीला। यह हिमाचल प्रदेश के शिमला, सोलन, सिरमौर और आसपास के ज़िलों में व्यापक रूप से प्रचलित है। इसकी उत्पत्ति सदियों पहले हुई मानी जाती है, जब संचार के सीमित साधन थे और मनोरंजन के लिए लोग सामूहिक रूप से इकट्ठा होते थे। करयाला में गाने, नृत्य, संवाद और अभिनय का मिश्रण होता है, जो इसे एक आकर्षक प्रदर्शन बनाता है। करयाला की उत्पत्ति के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है; परन्तु माना जाता है कि यह सदियों पहले शुरू हुआ था। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह नाट्य शैली प्राचीन काल में मनोरंजन और धार्मिक अनुष्ठानों का भाग थी। समय के साथ, यह सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के अनुरूप विकसित होता गया। नि:सन्देह यह लोकनाट्य शैली हिमाचल प्रदेश की पहचान है।

करयाला लोगों के मनोरंजन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। यह लोगों को हँसाता है और उन्हें तनाव से मुक्त करता है। करयाला सामाजिक शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह लोगों को सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों के बारे में जागरूक करता है और उन्हें बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करता है। करयाला हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों को बनाए रखने में मदद करता है। सामुदायिक एकता को बढ़ावा देने में भी करयाला महत्त्वपूर्ण नाट्य-विधा है। यह लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें मिलकर कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

करयाला की कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं: (1) स्थानीय भाषा का प्रयोग: करयाला में स्थानीय बोलियों और भाषाओं का प्रयोग किया जाता है, जिससे यह दर्शकों के लिए अधिक सुलभ और मनोरंजक बन जाता है; (2) सरल और सहज अभिनय: करयाला में अभिनेताओं का अभिनय सरल और सहज होता है, जो दर्शकों को आसानी से समझ में आ जाता है; (3) हास्य और व्यंग्य का प्रयोग: करयाला में हास्य और व्यंग्य का भरपूर प्रयोग किया जाता है, जो सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों पर कटाक्ष करने का एक प्रभावी तरीका है; (4) सामूहिक भागीदारी: करयाला में स्थानीय समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, जिससे यह एक सामाजिक आयोजन बन जाता है (परम्परागत रूप से प्रस्तुति देने वाले समस्त पात्र/अभिनेता केवल पुरुष ही होते हैं; स्त्री-पात्र की भूमिका में भी पुरुष ही रहते हैं); तथा (5) खुले मंच पर प्रदर्शन: करयाला आमतौर पर खुले मंच पर प्रदर्शित किया जाता है, जैसे गाँव का चौपाल या कोई मेला।

करयाला की कहानियाँ अक्सर पौराणिक, ऐतिहासिक या सामाजिक विषयों पर आधारित होती हैं। इन कहानियों में धर्म, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को दर्शाया जाता है। कथानक का चुनाव क्षेत्र, भाषा, और अवसर के अनुसार किया जाता है। करयाला में विभिन्न प्रकार के पात्र होते हैं, जैसे कि देवता, दानव, राजा, रानी, और समाज के विशिष्ट और साधारण जन। इन पात्रों के माध्यम से दर्शकों को विभिन्न दृष्टिकोणों और भावनाओं को समझने का अवसर मिलता है। पात्रों का चयन कहानी की आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। करयाला में संगीत और नृत्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संगीत और नृत्य के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त किया जाता है और दर्शकों को मनोरंजन प्रदान किया जाता है। संगीत और नृत्य के पारंपरिक रूप क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। करयाला में पात्रों की वेशभूषा और श्रृंगार कहानी और पात्र के चरित्र के अनुसार होते हैं। वेशभूषा और शृंगार दर्शकों को कहानी के वातावरण में ले जाते हैं और उन्हें पात्रों से जोड़ते हैं। करयाला में संवादों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्थानीय बोली में संवादों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाया जाता है और पात्रों के विचारों और भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। संवादों में हास्य और व्यंग्य का भरपूर उपयोग किया जाता है।

करयाला का धार्मिक महत्त्व व्यापक और गहरा है। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि देवताओं और स्थानीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने का एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान भी है। करयाला का आयोजन अक्सर किसी विशेष देवता या देवी के सम्मान में किया जाता है। नाट्य की शुरुआत देवताओं के आह्वान से होती है, जिसमें प्रार्थनाएँ और स्तुतियाँ शामिल होती हैं। यह स्तुति नृत्य की प्रस्तुति के साथ की जाती है, जैसे कि चन्द्रावली नृत्य। माना जाता है कि इससे देवता प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। करयाला में अक्सर रामायण, महाभारत और पुराणों से ली गई कहानियों अथवा उनके प्रकरणों का मंचन भी किया जाता है। इन कहानियों के माध्यम से दर्शकों को धर्म, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के बारे में शिक्षा दी जाती है। यह न केवल ज्ञान प्रदान करता है; बल्कि लोगों को धार्मिक मान्यताओं के प्रति जागरूक भी करता है। करयाला कई धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग है। यह अक्सर मंदिरों, मेलों और त्योहारों के दौरान आयोजित किया जाता है। माना जाता है कि करयाला के प्रदर्शन से वातावरण एवं परिवेश शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

हिमाचल प्रदेश में स्थानीय एवं लोक देवी-देवताओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। करयाला के माध्यम से इनकी आराधना की जाती है और उनसे आशीर्वाद माँगा जाता है। हर क्षेत्र के अपने विशिष्ट देवी-देवता होते हैं, और करयाला के प्रदर्शन में उनकी महिमा और शक्ति का वर्णन किया जाता है। इससे स्थानीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं को बढ़ावा मिलता है। करयाला में अक्सर ऐसी कहानियों या प्रकरणों का मंचन किया जाता है< जो बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाती हैं। यह दर्शकों को यह संदेश देता है कि धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। यह सकारात्मक सोच और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हिमाचल प्रदेश में मुख्यतया शिमला, सोलन और सिरमौर ज़िलों में करयाला के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। शिमला और आसपास के क्षेत्रों में करयाला बहुत लोकप्रिय है। यहाँ के करयाला में साधु का स्वांग, लंबरदार का स्वांग, और अन्य सामाजिक पात्रों का स्वांग किया जाता है। इन स्वांगों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और भ्रष्टाचार पर कटाक्ष किया जाता है। ज़िला शिमला में करयाला का आयोजन गांवों में अधिक प्रचलित है। यहां, यह अक्सर फसल कटाई के बाद या किसी विशेष अवसर जैसे दीपावली पर आयोजित किया जाता है। शिमला के करयाला में नृत्य और संगीत का महत्त्वपूर्ण स्थान है, और दर्शक इसमें सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। सोलन क्षेत्र में करयाला में धार्मिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाया जाता है। ज़िला सोलन में करयाला का आयोजन मंदिरों और मेलों में अधिक होता है। यहां, यह अक्सर लोक-देवता बिजेश्वर के लिए समर्पित किया जाता है। ग्रामीण लोग विशिष्ट अवसरों जैसे विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, कामनापूर्त्ति इत्यादि पर इसका आयोजन करते हैं। सोलन के करयाला में हास्य का पुट अधिक होता है और सामाजिक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह मनोरंजन के साथ-साथ जागरूकता फैलाने का भी माध्यम है। सिरमौर क्षेत्र में करयाला में सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय लोककथाओं और किंवदंतियों को भी दर्शाया जाता है। यहाँ के करयाला में वीर नायकों और नायिकाओं की कहानियों का अभिनय भी शामिल है। ज़िला सिरमौर में करयाला का आयोजन दिवाली और दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। सिरमौर के करयाला में पारंपरिक वेशभूषा और संगीत का उपयोग किया जाता है, जो इसे एक अनूठा अनुभव बनाता है।

करयाला के विविध रूपों में स्वांग एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जो लोगों को अनायास बाँध लेने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए साधु के स्वांग में एक व्यक्ति साधु का वेश धारण करता है और गाँव-गाँव घूमकर लोगों को उपदेश देता है। वह अपने उपदेशों के माध्यम से सामाजिक बुराइयों और पाखंड पर कटाक्ष करता है। इसी प्रकार, लंबरदार के स्वांग में एक व्यक्ति गाँव के मुखिया (लंबरदार) का वेश धारण करता है और गाँव के लोगों से मनमाने ढंग से कर वसूलता है। इस स्वांग के माध्यम से भ्रष्टाचार और अन्याय पर कटाक्ष किया जाता है। राजा के स्वांग में एक व्यक्ति राजा का वेश धारण करता है और गाँव के लोगों पर अत्याचार करता है। इस स्वांग के माध्यम से सत्ता के दुरुपयोग पर कटाक्ष किया जाता है। स्वांगों में देवी-देवताओं का स्वांग भी सम्मिलित रहता है, जिसमें अभिनेता देवी-देवताओं का रूप धारण करके उनके जीवन की घटनाओं का अभिनय करते हैं। यह स्वांग धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व का प्रतीक है।

करयाला की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक इसकी तात्कालिकता है। करयाला में कलाकार पहले से तय संवादों पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि वे मौके पर ही संवादों का निर्माण करते हैं। यह कला मंच पर मौजूद दर्शकों और वातावरण के अनुसार बदलती रहती है। तात्कालिकता कलाकारों को रचनात्मक और लचीला बनाती है, जिससे वे दर्शकों की प्रतिक्रियाओं के अनुसार अपने प्रदर्शन को ढाल सकते हैं। उदाहरण के लिए शिमला जिले में आयोजित होने वाले करयाला में, अक्सर देखा जाता है कि कलाकार समसामयिक मुद्दों पर तात्कालिक संवाद करते हैं। जैसे, यदि कोई राजनीतिक घटना घटी है, तो कलाकार अपने प्रदर्शन में उसे हास्य और व्यंग्य के माध्यम से उठाते हैं। यह तात्कालिकता दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि उन्हें सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए भी प्रेरित करती है। कलाकारों को स्थानीय बोली और मुहावरों का उपयोग करते हुए देखा जा सकता है। वे मौके पर ही ऐसे हास्यपूर्ण संवाद बनाते हैं जो दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देते हैं।

करयाला एक गतिशील कला रूप है जो समय के साथ विकसित होता रहता है। कलाकार नए विचारों, तकनीकों और विषयों के साथ प्रयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह प्रायोगिकता करयाला को नीरस होने से बचाती है और इसे समकालीन प्रासंगिकता बनाए रखने में मदद करती है। सिरमौर में, कुछ करयाला मण्डलियाँ आधुनिक संगीत और नृत्य शैलियों को अपने प्रदर्शन में शामिल कर रही हैं। वे पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ-साथ कीबोर्ड और गिटार जैसे आधुनिक उपकरणों का भी उपयोग करते हैं। यह प्रायोगिकता युवा दर्शकों को आकर्षित करने और करयाला को अधिक लोकप्रिय बनाने में मदद कर रही है। कुछ करयाला समूह सामाजिक संदेशों को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने के लिए कठपुतली कला और मुखौटा कला जैसी अन्य कला रूपों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। यह प्रायोगिकता करयाला को अधिक बहुमुखी और आकर्षक बनाती है।

करयाला एक संवादात्मक कला रूप है जिसमें दर्शकों की सक्रिय भागीदारी होती है। कलाकार अक्सर दर्शकों के साथ संवाद करते हैं, उनसे प्रश्न पूछते हैं, और उन्हें अपने प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह संवादात्मकता दर्शकों को प्रदर्शन से जुड़ा हुआ महसूस कराती है और उन्हें एक सक्रिय भागीदार बनाती है। करयाला में, कलाकार अक्सर दर्शकों से उनकी राय पूछते हैं कि कहानी को किस दिशा में ले जाना चाहिए। वे दर्शकों से सुझाव माँगते हैं और उनके सुझावों को अपने प्रदर्शन में शामिल करते हैं। यह संवादात्मकता दर्शकों को यह महसूस कराती है कि वे प्रदर्शन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। कुछ करयाला समूह दर्शकों को गाने और नृत्य में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह संवादात्मकता दर्शकों और कलाकारों के बीच एक मजबूत संबंध बनाती है और उन्हें एक साथ मनोरंजन का आनंद लेने का अवसर प्रदान करती है।

शिमला में करयाला अक्सर ग्रामीण मेलों और त्योहारों में आयोजित किए जाते हैं। इन प्रदर्शनों में, कलाकार स्थानीय देवताओं और नायकों की कहानियों को नाटकीय रूप से प्रस्तुत करते हैं। वे अक्सर स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं को अपने प्रदर्शन में शामिल करते हैं, जिससे दर्शकों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का अवसर मिलता है। सोलन जिले में करयाला अपनी हास्यपूर्ण प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है। कलाकार अक्सर स्थानीय राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य करते हैं, जिससे दर्शकों को हँसी और मनोरंजन का अवसर मिलता है। वे स्थानीय बोली और मुहावरों का उपयोग करके अपने प्रदर्शन को और अधिक आकर्षक बनाते हैं। सिरमौर जिले में करयाला अपनी संगीतमय प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है। कलाकार पारंपरिक लोक गीतों और नृत्यों का उपयोग करके अपने प्रदर्शन को जीवंत बनाते हैं। वे अक्सर दर्शकों को गाने और नृत्य में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं, जिससे एक उत्सव का माहौल बनता है।

आज के आधुनिक युग में, करयाला को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। टेलीविजन, सिनेमा और अन्य आधुनिक मनोरंजन के साधनों के कारण लोगों का करयाला के प्रति आकर्षण कम हो रहा है। इसके अलावा, युवा पीढ़ी पारंपरिक कला रूपों के प्रति कम रुचि दिखा रही है। लोक-भाषा अथवा बोली का प्रयोग भी नई पीढ़ी में कम देखने को मिल रहा है, जिसके कारण करयाला जैसे ठेठ स्थानीय बोली के हास्य-व्यंग्य वाले नाट्य रूप का न तो आस्वाद व आनन्द लिया जा सकता है और न ही इसका सही मूल्यांकन किया जा सकता है। हालांकि, करयाला को बचाने और बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार और गैर-सरकारी संगठन मिलकर करयाला को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इसके अलावा, कुछ युवा कलाकार भी करयाला को आधुनिक रूप देने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि यह आज की पीढ़ी के लिए अधिक प्रासंगिक बन सके।

निष्कर्षत: करयाला हिमाचल प्रदेश की एक महत्त्वपूर्ण लोक नाट्य शैली है जो हास्य-व्यंग्य एवं स्वांग सहित तात्कालिकता, प्रायोगिकता और संवादात्मकता के सिद्धांतों पर आधारित है। यह कला रूप न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है। करयाला हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्त्वपूर्ण रूप है और इसके संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता है। तात्कालिकता, प्रायोगिकता और संवादात्मकता के माध्यम से करयाला कलाकारों ने इस कला रूप को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखा है, जिससे यह हिमाचल प्रदेश की लोकसंस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गया है। यह ना केवल मनोरंजन का स्रोत है; बल्कि स्थानीय लोगों के लिए सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने और अपनी संस्कृति को मनाने का एक मंच भी है।

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