हिम मानव / हैंज़ क्रिश्चियन एंडरसन / द्विजेन्द्र द्विज

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हैंज़ क्रिश्चियन एंडरसन »

अनुवाद: द्विजेन्द्र द्विज

"सर्दी इतनी आनन्दमयी है,” हिम मानव ने कहा, "कि इससे मेरा सम्पूर्ण शरीर चटचटा रहा है । यह वही हवा है जो किसी में भी प्राण फूँकती है। वह बड़ी-सी लाल चीज़ मुझे कैसे घूर रही है!” उसका अभिप्राय सूर्य से था, जो अभी उदय हो रहा था। यह मुझे पलक भी झपकने नहीं देगा। मैं अपने टुकड़े ही बचा पाउँगा।” उसके सिर में आँखों के स्थान पर टाइल के दो तिकोने टुकड़े थे; उसका मुँह एक पुराने टूटे हुए पाँचे का बना था और नि:सन्देह यह दाँतों से भी सुसज्जित था।इसे बालकों के आनंदमय कोलाहल , स्लेज की घंटियों के संगीत और कोड़ों की फटकार के बीच अस्तित्व में लाया गया था। सूरज डूबा, पूरा चाँद उग आया,बड़ा, गोल, एकदम स्पष्ट, नीले आसमान में चमकता हुआ।

“ ये लो, अब वह चीज़ दूसरी ओर से चली आई है,” हिम-मानव ने कहा, उसे लगा कि सूरज फिर लौट आया है। ” हाय! इसके घूरने का इलाज तो मैं कर चुका हूँ, अब यह वहाँ लटकता रहे और चमकता रहे, ताकि मैं स्वयं को भी देख सकूँ। काश मैं इस स्थान से हिलना जानता, कितना मन करता है मेरा यहाँ से हिलने को। अगर मैं भी चल पाता तो मैं वहाँ सामने बर्फ पर फिसलने का आनंद ले रहा होता, जैसे मैं देखता हूँ बालकों को फिसलने का आनंद लेते हुए ; परन्तु मुझे यह सब आता ही नहीं, मुझे तो भागना भी नहीं आता।” “दूर -दूर”, आँगन का कुत्ता भौंका। उसका गला काफ़ी बैठ गया था, और वह ”भौं-भौं ” का ठीक उच्चारण नहीं कर पा रहा था। वह कभी घर के भीतर का कुत्ता हुआ करता था, और आग के समीप लेटा करता था, और तबसे ही उसका गला ऐसे ही बैठ चुका था। “एक दिन सूरज तुम्हें भगा देगा, मैंने देखा था उसे पिछली सर्दियों में, तुम्हारे पूर्वज को भगाते हुए, और उससे पूर्व के पूर्वज को भी । दूर-दूर, सबको जाना पड़ता है।” "तुम्हारी बात मुझे समझ नहीं आई, मित्र,” हिम मानव ने कहा, ” क्या वह चीज़ मुझे भागना सिखाएगी? अभी थोड़ी देर पहले तो मैंने उसे स्वयं भागते हुए देखा है अर अब यह दूसरी ओर से रेंगता हुआ फिर आ गया है।” “तुम कुछ भी नहीं जानते हो, आँगन के कुत्ते ने उत्तर दिया,“परन्तु फिर अभी-अभी तो तुम्हें बनाया गया है। जो तुम उधर देख रहे हो,वह चाँद है, इससे पहले तुमने सूरज को देखा था। वह कल फिर आएगा, और संभवत: तुम्हें कुएँ के पास वाली नाली में बहना सिखा देगा ; क्योंकि मुझे लगता है कि अब मौसम बदलने ही वाला है, मैं अपनी बायीं टाँग में सूइयों और छुरियों की चुभन अनुभव कर पा रहा हूँ;मुझे विश्वास है मौसम बदलने वाला है।” “मुझे तो इसकी बात समझ नहीं आ रही,” हिम मानव ने स्वयं से कहा; ”परन्तु मुझे आभास हो रहा है कि वह किसी अप्रिय वस्तु के बारे में बात कर रहा है। जो अभी कुछ देर पहले मुझे इस तरह घूर रहा था,जिसे यह सूरज कह रहा है, मेरा मित्र तो नहीं है, यह तो मैं भी महसूस कर पा रहा हूँ।”

"दूर-दूर,” आँगन का कुत्ता भौंका, और फिर तीन चक्कर लगाकर , अपने कठघरे में सोने चला गया।

मौसम सचमुच बदल गया था। सुबह तक, घने कुहासे ने आसपास के पूरे गाँव को ढाँप लिया था। तीखी हवा चली, यूँ लगा सर्दी हड्डियाँ भी जमा देगी; परन्तु सूर्योदय होते ही दृश्य भव्य था । धवल तुषार से ढँके झाड़ और पेड़ श्वेत-प्रवाल का जंगल दिखाई दे रहे थे , जबकि हर टहनी पर जमी हुई ओस की बूँदें चमक रही थीं। गर्मियों में प्रचुर पर्णावली में छिपी हुई बहुत -सी कोमल आकृतियाँ अब स्पष्ट रूप से परिभाषित हो चकी थीं और गुथी हुई किनारियों-सी झिलमिला रही थीं। प्रत्येक टहनी से श्वेत कांति झिलमिला रही थी। हवा में लहराता भूर्ज, गर्मियों में पेड़ों की भाँति जीवन से भरपूर था ; और उसकी उपस्थिति आश्चर्यजनक ढंग से सुन्दर थी। और चमकती धूप में हर चीज़ ऐसे चमक और झिलमिला रही थी मानो आसपास हीरे का चूरा बिखरा दिया गया हो ;जबकि धरती का बर्फीला गलीचा हीरों से जड़ा हुआ प्रतीत हो रहा था, जिससे झलकते हुए असंख्य प्रकाश बर्फ से भी अधिक श्वेत थे।

“यह सचमुच बहुत सुन्दर है,” एक युवक के साथ उद्यान में आई हुई युवती ने कहा; और वे दोनों हिममानव के समीप स्थिर खड़े होकर झिलमिलाते हुए दृश्य पर मनन कर रहे थे। ग्रीष्म भी इससे अधिक भव्य दृश्य प्रस्तुत नहीं कर सकती,” युवती आनन्द में चिल्लाई, और उसकी आँखें चमक उठीं।“ और हमें ऐसा मित्र भी गर्मियों में नहीं मिल सकता ,” युवक ने हिम मानव की ओर संकेत करते हुए कहा; “वह उत्कृष्ट है।” युवती हँसी,उसने हिममानव को देख कर स्वीकृति में सिर हिलाया और अपने साथी के साथ फुदकती हुई चली गई। उसके पैरों के नीचे की बर्फ चरचराई और चटचटाई , मानो वह स्टार्च पर चल रही हो।

“वे दोनों कौन हैं? हिम मानव ने आँगन के कुत्ते से पूछा।“ तुम तो यहाँ मुझसे भी बहुत पहले से रहते आए हो ; क्या तुम उन्हें जानते हो?”

“बेशक मैं उन्हें जानता हूँ,”आँगन के कुत्ते ने कहा;”कितनी ही बार इस युवती ने मेरी पीठ सहलाई है और युवक ने मुझे हड्डी डाली है। मैं इन दोनों को कभी भी नहीं काटता ।” “परन्तु वे हैं क्या?” हिम मानव ने पूछा “वे प्रेमी हैं,”उसने उत्तर दिया, “ वे भी धीरे-धीरे जाकर उसी कठघरे में रहेंगे और फिर एक ही हड्डी कुतरते रहेंगे। दूर-दूर!” “तो क्या वे तुम्हारी और मेरी तरह प्राणी हैं ?” हिम मानव ने पूछा।

“हाँ, वे एक ही स्वामी से सम्बधित हैं, आँगन के कुत्ते ने उत्तर दिया। “निश्चित रूप से नवजातों के पास ज्ञान तो होता ही नहीं । मुझे यही बात तुममें भी दिखाई देती है। मेरे पास आयु है, अनुभव है। मैं यहाँ घर के प्रत्येक सदस्य को जानता हूँ, और यह भी जानता हूँ कि एक समय वह भी था जब मैं यहाँ बाहर ज़ंजीर में बँधा नहीं पड़ा रहता था । दूर,दूर !” “सर्दी आनन्दमयी है,” हिम मानव ने कहा,” परन्तु मुझे अवश्य बताओ; और अपनी ज़ंजीर को इस तरह मत खनखनाओ; क्योंकि जब तुम इसे खनखनाते हो तो मैं पूरा खनखना उठता हूँ।

“दूर-दूर! “आँगन का कुत्ता भौंका; ”मैं बताता हूँ तुम्हें। लोग कहते हैं कि मैं कभी छोटा-सा, बहुत प्यारा-सा था; तब मैं मखमल से ढँकी कुर्सी पर लेटता था, ऊपर, अपने स्वामी के घर के भीतर, स्वामिनी की गोदी में। वे लोग मुझे मेरी नाक पर चूम लेते थे, और एक कढ़ाईदार रुमाल के साथ मेरे पंजों को पोंछते थे और मुझे ‘ऐमी,’ ‘प्यारा ऐमी‘, ’मधुर ऐमी’ कह कर पुकारते थे।’ परन्तु बहुत जल्दी ही उन्हें मैं बहुत बड़ा लगने लगा, फिर उन्होंने मुझे घरेलू नौकर के कमरे में भेज दिया; इस तरह मैं नीचे की मंज़िल में आकर रहने लगा। जहाँ तुम खड़े हो वहाँ से तुम उस कमरे के भीतर झाँक सकते हो, और वहाँ देख सकते हो जहाँ मैं कभी स्वामी था, क्योंकि मैं वास्तव में ही इस घर के नौकर का स्वामी था। ये सीढ़ियों के ऊपर वाला कमरे से छोटा अवश्य था; परन्तु मैं वहाँ अधिक आराम में था क्योंकि वहाँ मुझे लगातार बाँध कर नहीं रख जाता था अथवा मुझे बच्चे इधर उधर नहीं खींचते थे जैसा कि मेरे साथ पहले होता था।मुझे खाना भी अच्छा मिलता था, बल्कि और भी अच्छा था। मेरा अपना एक गद्दा था, और वहाँ अँगीठी भी थी- वर्ष के इस मौसम में यह सबसे उत्तम वस्तु है। मैं अँगीठी के नीचे चला जाता था और इसके बहुत निकट जा कर सो जाता था। हाय, मैं उस अँगीठी को अभी भी अपने सपनों में देखता हूँ। दूर-दूर!”

“क्या यह अँगीठी इतनी सुन्दर दिखाई देती है? हिम मानव ने पूछा, “क्या यह बिल्कुल मुझ जैसी दिखाई देती है?” यह तो तुमसे बिल्कुल उलट होती है।” कुत्ते ने कहा,” यह कौए जैसी काली होती है, और इसका गला लम्बा होता है और इसका दस्ता पीतल का बना होता है; यह लकड़ी खाती है ताकि इसके मुँह से आग की लपटे निकलती रहें। आराम के लिए हमें इसके एक ओर बैठना चाहिए, या इसके नीचे बैठना चाहिए। तुम खिड़की में से देख सकते हो वहीं से, जहाँ तुम खड़े हो।”

हिम मानव ने देखा, और उसे देखी एक चमकदार, पॉलिश की हुई पीतल के दस्ते वाली चीज़ दिखाई दी और उसके निचले भाग में आग चमकती हुई दिखाई दे रही थी । हिम मानव को बड़ी विचित्र -सी सनसनी अनुभव हुई; यह सनसनी अद्भुत थी, वह समझ नहीं पा रह था कि यह क्या था , वह बता नहीं पा रहा था। परन्तु ऐसे लोग भी तो होते हैं जो हिम मानव नहीं होते, जो यह सब समझते हैं। “और तुमने उसे छोड़ दिया?” हिम मानव ने पूछा, क्योंकि उसे लगा कि अँगीठी अवश्य ही मादा रही होगी। ” तुमने इतना सुखद, इतना आरामदेह स्थान छोड़ कैसे दिया?”

"मैं विवश था,” आँगन के कुत्ते ने कहा,” घर से निकाल कर उन लोगों ने मुझे यहाँ ज़ंजीर से बाँध दिया। मैंने अपने सबसे छोटे स्वामी की टाँग पर दाँत गड़ा दिए थे, क्योंकि उसने उस हड्डी को लात मार कर दूर फेंक दिया था, जिसे अपने दाँतो दे कुरेद रहा था। ‘हड्डी के बदले हड्डी’, मैंने सोचा; परन्त वे लोग इतने क्रुद्ध हो गए कि तब से उन्होंने मुझे ज़ंजीर में जकड़ दिया है, और अब मैं अपनी हड्डी गँवा चुका हूँ। तुम सुनते नहीं हो कि मेरा गला कितना अधिक बैठ गया है ! दूर, दूर! अब मैं अन्य कुत्तों की तरह बातचीत भी नहीं कर पाता, दूर-दूर, बस यही है सारी कहानी।”

परन्तु अब हिम मानव उसकी बात नहीं सुन रहा था। वह घर की निचली मंज़िल में नौकर के कमरे के भीतर देख रहा था; जहाँ हिम मानव के अपने ही आकार की अँगीठी अपनी चार टाँगों पर खड़ी थी, “ मैं अपने भीतर कैसी चटचटाहट अनुभव कर पा रहा हूँ!” उसने कहा ,” क्या मैं कभी भीतर भी जा पाऊँगा! यह एक निष्कपट मनोकामना है, और निष्कपट मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। मुझे भीतर जाकर उससे लिपट जाना चाहिए, मुझे भले ही खिड़की को तोड़ देना पड़े।” “तुम भूल कर भी भीतर मत जाना; आँगन के कुत्ते ने कहा,”पिघल कर बह जाओगे अगर तुम वहाँ गए तो! दूर-दूर।”

“मैं जा भी सकता हूँ, ” हिममानव ने कहा, ” क्योंकि मुझे लगता है मैं ऐसे भी टूट ही रहा हूँ।”

सारा दिन हिममानव खिड़की के भीतर झाँकता खड़ा रहा, और गोधूलि बेला में तो अँगीठी और भी अधिक आकर्षक हो गई थी , क्योंकि अब उसमें और भी सौम्य प्रकाश आ रहा था, सूरज अथवा चाँद के जैसा नहीं; नहीं, केवल एक दीप्त प्रकाश जो एक पेट-भरी तृप्त अँगीठी से आता है। जब अँगीठी का द्वार खोला गया तो उसके मुँह से आग की लपटें लपलपाने लगीं, सभी अँगीठियों के यहाँ यही प्रथा है। ज्वालाओं के प्रकाश ने सीधे हिम मानव के चेहरे और सीने पर गुलाबी चमक बिखेरने दी।”अब मुझसे नहीं रहा जा रहा, अपनी जीह्वा लपलपाती हुई यह कितनी भव्य लगती है!” हिम मानव ने कहा।

रात लम्बी थी, परन्तु हिम मानव के लिए नहीं, क्योंकि वह तो अपने ही विचारों के आनंद में मग्न , सर्दी में चटचटाता हुआ खड़ा था। सुबह नौकर के कमरे की खिड़कियों के काँच बर्फ से ढक गए थे। वे किसी भी हिम मानव के लिए मनचाहे अत्यन्त सुन्दर हिम-पुष्प थे, परन्तु उन्होंने अँगीठी को छिपा लिया था। खिड़कियों के ये काँच पिघलने वाले नहीं थे, और वह अँगीठी को नहीं देख पा रहा था ,जो उसकी कल्पना में एक सुन्दर मानवी थी। उसके आस-पास बर्फ चटक रही थी, हवा सीटियाँ बजा रही थी; यह वैसा ही धुँधला मौसम था जिसका सबसे अधिक आनन्द हिम मानव ही ले सकता था; परन्तु वह भी यह आनन्द नहीं ले पाया; लेता भी कैसे जब उसे अँगीठी की याद सता रही थी?”

“यह हिम मानव के लिए सबसे भयंकर रोग है,” आँगन के कुत्ते ने कहा ,”इस रोग का शिकार मैं स्वयं भी हुआ हूँ, पर अब मैं इससे मुक्त हूँ। दूर-दूर” उसने भौंक कर कहा,“मौसम बदलने वाला है।” और मौसम बदल गया; बर्फ पिघलने लगी। गर्माहट बढ़ने लगी हिम मानव घटने लगा। उसने कुछ भी नहीं कहा। उसे कोई शिकायत नहीं थी, यह विश्वस्त होने का संकेत था। एक सुबह वह टूट गया और समूचा बह गया; और उसके स्थान पर झाडू़ के डण्डे जैसा कुछ खड़ा था। यह वह खम्भा था जिसपर बालकों ने हिम मानव को निर्मित किया था। “हाय, अब मैं समझा , वह अँगीठी के लिए क्यों मरे जा रहा था,”आँगन के कुत्ते ने कहा। ”अँगीठी को साफ़ करने वाला बेलचा भी तो वहीं है। अँगीठी को साफ़ करने वाली वस्तु तो हिम मानव के भीतर लगी हुई थी, यही उसकी प्रेरणा भी रही होगी। परन्तु अब तो कुछ बचा ही नहीं। दूर-दूर।” और जल्दी ही सर्दियाँ बीत गईं।“दूर-दूर,” फटे स्वर वाला आँगन का कुत्ता भौंका। परन्तु घर के भीतर लड़कियाँ गा रही थीं:


“आओ निकलकर अपने सुगंधित घर से , हरे बनजवाइन आओ हरे ब्यूँस तुम अपनी कोमल बाहें फैलाओ ; लौट आए हैं मास मधुर वसंत लिए , आकाश में आनंदित हो गाता है लार्क सौम्य सूर्य आओ, जब गाता है कुक्कू मैं अपने भटकाव में गाऊँगी उसी की तरह।”

और फिर किसी को हिम मानव की याद नहीं आई। </poem>