हिरोइन / सुषमा गुप्ता
“अरे सुम्मी) ओ हिरोईन! रुको तो यार।” सिद्धार्थ ने पीछे से पुकारा,पर सुम्मी के पलटते ही सिद्धार्थ के तेज कदमों में ब्रेक लग गया। सुम्मी गर्भवती थी और ये उसकी काया से साफ जाहिर था।
“कैसे हो सिद्धार्थ? ”
“मै तो ठीक हूँ पर तुम तीन महीनों से कॉलेज नहीं आई, तो फिक्र हो रही थी। अब तुम्हारे ससुराल वाले इतने रूढिवादी हैं कि फोन करते भी डर लगता है।”
“हा हा !! अरे ऐसा भी कुछ नही है। हाँ,थोडे पुराने विचारों के हैं पर अच्छे हैं।” सुम्मी ने परीक्षा भवन की तरफ बढ़ते हुए कहा ।
“वैसे शीना से पूछा था तुम्हारे बारे में। उसने बोला था तुम्हारी तबीयत कुछ खराब है, पर वजह नहीं बताई। वो तो अब तुम्हें देखकर समझ आ रहा है। ”
“और सुनाओ? तुम ठीक हो?”
“म्मम्म। ठीक हूँ।” सिद्धार्थ कुछ असहज सा हो रहा था सुम्मी के साथ चलते। सिद्धार्थ और सुम्मी वकालत की पढ़ाई कर रहे थे। आखिरी साल था। सरकारी स्कूल में परीक्षा सेंटर पड़ा था। बहुत ही ऊबड़-खाबड़ मैदान था। सुम्मी बहुत सँभल-सँभलकर चल रही थी। आगे बड़ा-सा गड्ढा देख जैसे ही सुम्मी ने सिद्धार्थ की तरफ हाथ बढाया-“हाँ रोहित आ रहा हूँ। सुम्मी रोहित बुला रहा है, चलता हूँ यार।”-कहकर सिद्धार्थ तेजी से चला गया।
सुम्मी उसके बर्ताव से एक पल ठगी-सी रह गई। पर अगले ही पल मुस्कुरा दी।
सुम्मी की स्मृति में कॉलेज का पहला साल कौंध गया, जब सिद्धार्थ उसके साथ चलने के बहाने ढूँढता था। सुम्मी शादीशुदा थी, फिर भी। शुरू में सुम्मी को वजह नहीं समझ आई थी। पर बाद में वो समझ गई थी सिद्धार्थ की मानसिकता। वो इतनी सुंदर थी कि सिद्धार्थ उसके साथ चलकर लोगों को यह जताता था, जैसे सुम्मी उसी की हो। जरूरत हो न हो, सीढ़ियों पर भी ऐसे हाथ देता था, जैसे उसका परम धर्म हो सुम्मी का ख्याल रखना। पर सुम्मी हमेशा उसका हाथ अनदेखा कर देती थी। और आज जब सुम्मी का हाथ गड्ढे से बचने के लिए अचानक उसकी तरफ बढ़ गया, तो वह नजर चुराकर चल दिया।
सुम्मी के चेहरे पर एक व्यंग्य-भरी मुस्कान तैर रही थी। उसने प्यार से अपने पेट पर हाथ लगाया और धीरे से कदम बढ़ाने लगी।
“ओ.... हिरोइन गड़्ढा है आगे।” कहते हुए शीना ने सुम्मी का हाथ थाम लिया ओर दोनों सहेलियाँ खिलखिलाती हुई आगे बढ़ गईं। -0-