हुल्लापुर में हल्ला / पंकज प्रसून

Gadya Kosh से
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हुल्लापुर में बेरोजगारी चरम पर थी। यहाँ पर दो किस्म के नवयुवक पाए जाते हैं-सबल और निर्बल। सबल नवयुवक दौड़ सपाट और दंड बैठक के बल पर फ़ौज में भरती हो जाते थे फिर एक मोटरसाइकिल और एक लाख नगद के रेट से सात फेरे लेकर अपनी योग्यता पर मुहर लगा देते थे। निर्बल नवयुवक वो होते थे जो फ़ौज में भरती नहीं पाते थे। ऐसे युवक रोजी रोटी की तलाश में शहर की ओर पलायन कर जाते थे। हाँ, शादी में इनको एक अदद पत्नी से ही संतोष करना पड़ता था। खेमराज ऐसे ही निर्बल नवयुवकों का प्रतिनिधि था। लेकिन उनसे लीक से हट कर काम किया। कानपुर और दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर बनने के बजाय उसने अयोध्या का रुख किया था। करीब पांच साल अयोध्या के एक नामी अखाड़े में बिताने के बाद वह अव्वल दर्जे का लड़ाकू हो गया था। इतना कि नेता भी पानी मांग जाय। श्री श्री एक हज़ार आठ मौनी बाबा के सानिध्य में रहकर सारी चार सौबीसी होहल्ला करना सीख गया था। प्रवचन कला में निष्णात हो चुका था। धर्म से कुर्सी कैसे पायी जाती है, धार्मिक भावनाएं कैसे भड़काई जाती हैं, मंदिर को मुद्दा कैसे बनाया जाता है, भक्तों के पैसों से स्कार्पियो कैसे खरीदी जाती है और भंडारा कराने के नाम पर पैसे कैसे ऐंठे जाते हैं। इन समस्त ललित कलाओं में उसे सिद्धि प्राप्त हो चुकी थी। अब तो उसका एक ही लक्ष्य था-विधायक का चुनाव लड़ना। और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही वह वापस हुल्लापुर आ गया था।

हुल्लापुर का एकलौता शिवालय। आस्था का केंद्र, जहाँ सुबह भक्त दूध चढाते हैं, और दोपहर को कुछ श्वान आकर भक्ति का अनूठा प्रदर्शन करते हैं फिर दूध और यूरिया की रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप उस तरल पदार्थ का निर्माण होता था जिस पर शोध होना बाकी है। जर्जर अवस्था में था मंदिर। चढ़ावा भी इतना नहीं आता था कि कोई पुजारी बनने की जहमत उठाये। इसलिए यह शिवालय भगवान भरोसे ही था। ऐसे मंदिरों में अमूमन दो तरह के पत्थर स्थापित किये जाते हैं। एक वह पत्थर जिस पर भगवान गुदे हैं या शिवलिंग बनी है और दूसरा वह पत्थर जिस पर बनवाने वाले का नाम गुदा हुआ होता है। जिसने जितना पैसा दिया समझो उसका उतना बड़ा पत्थर। कहा जाता है कि भगवान के दरबार में सब सामान होते हैं पर इन पत्थरों को देख यह भ्रम मिट जाता है। खेमराज ने इस मंदिर की सीढ़ियों में विधान सभा की सीढ़ियों के दर्शन प्राप्त कर लिए थे।

आज सुबह खेमराज अपने सारे गुर्गों के साथ, जिनको धार्मिक भाषा में चेला कहते हैं, मन्दिर में प्रसाद चढाने आया था। मंदिर में उसके जाने से पहले ही चेलों ने एक अस्थायी माइक व गावों की जनता को बुलावा भेज दिया था। शिव स्तुतियों के साथ शिव महाश्रोत का पाठ आदि करते हुए तीन घंटे बीत चुके थे। कुछ लड्डू प्रेमी लोग भक्त इस आस में झूम रहे थे कि कब ये माइक बंद हो और स्कार्पियो में लदा प्रसाद पाकर निहाल हो जाएँ। इक्यावन किलो लड्डू और सौ दर्जन केले पाकर भक्त इतने खुश हो गए हर हर महादेव के साथ ‘खेमराज की जय हो’ का नारा भी लगाने लगे। खेमराज ने माहौल बनता देख माइक को सम्भाला और पूरे आत्म विश्वास से बोला, “प्यारे शंकर के भक्तों, मैं अयोध्या का अखाड़ा छोड़ अपनी जन्मभूमि में आया हूँ। इसके पीछे का कारण यह है कि मुझको स्वप्न आया था। भोले शंकर मेरे स्वप्न में आये थे, बोले, खेमराज तू वापस अपने गाँव जा। वहां मैं संकट में हूँ। वहां मेरे साथ कुछ भी होने की संभावना है। मेरे मंदिर की स्थिति बहुत खराब है। तू जाकर इसको संभाल। मैंने उनसे विनती की थी कि मैं तो यहाँ एक अखाड़ा संभाल रहा हूँ। यहाँ का क्या होगा ?भोले बाबा तो क्रोध में आ गए थे इसके पहले की वो तीसरा नेत्र खोलते मेरी नींद टूट गयी और मैं सीधे हुल्लापुर चल दिया। ” तो भक्तों, मैं चाहता हूँ कि इस मंदिर में नियमित रूप से एक पुजारी की नियुक्ति की जाय। मेरा चेला चरणदास निः स्वार्थ भाव से मंदिर की सेवा करना चाहता है। यदि आप लोग सहमत हों तो मैं चरणदास को मंदिर का पुजारी बनाना चाहता हूँ”सारी जनता ने एक स्वर में सहमती दे दी। खेमराज का पहला दांव सही बैठा था। और उसने प्रसाद में केले की मात्रा बढ़वा दी थी।

शिवालय का पुनरुद्धार करा दिया था उसने। एक बड़ा सा घंटा स्थापित किया गया। मंदिर की छत पर लाउडस्पीकर लगाया गया और शाम सबेरे अनूप जलोटा और गुलशन कुमार बजने लगे। चरण दास पिछले पंद्रह दिनों में सारे हुल्लापुर का चहेता बन चुका था। वो इसलिये कि वो भक्तों के प्रसाद का पूरा भाग भक्तों को वापस कर देता था। भक्ति टैक्स के रूप में एक लड्डू भी अपने पास नहीं रखता था। और यदि कोइ ग्यारह रूपये चढ़ाता था तो वो उसे पचास रूपये मूल्य के लड्डू बतौर प्रसाद दे देता था। भक्ति से राजनीति तक का सफ़र तय करना था इसलिए क्या सवर्ण क्या दलित, हर बिरादरी में सामान भाव से सत्यनारायण कथा का पाठ किया। मंदिर में सारे चेलों ने मिलकर सुन्दरकाण्ड का पाठ शुरू कर दिया था जिसमें जिसमें मलीन बस्ती के लोगों को भी मुंह मारने का का मौक़ा दिया जाता था। ऐसी जाति निरपेक्ष भक्ति के फलस्वरूप मंदिर में तमाम दलितों और हीन भावना से ग्रस्त लोगों का जमावड़ा लगने लगा। ऐसे में सुविधा सम्पन्नों का नाराज़ होना लाजिमी था। पर खेमराज का मैनेजमेंट सिस्टम जोरदार था। इससे पहले की कोई आलोचना करे वह उसके मुंह में पंजीरी भर देता था। मिठाई, फल और चरनामृत से तर बतर कर देता था। यदि आलोचक पक्का शिव भक्त निकला तो उसके लिए भोले बाबा के विशेष प्रसाद का प्रबंध था। वो भी ब्रांडेड अंगरेजी। वैसे ज्यादातर का काम हुक्का चिलम गांजा से भी चल जाता था। कथा भागवत में इकट्ठा हुए पैसों को मंदिर के दानपात्र में पूरी ईमानदारी से रखा जाता था। जब पुजारी ईमानदारी दिखाने लगे तो समझो भक्ति में कुछ गड़बड़ है। कुछ दिनों बाद गाँव के कुछ बेरोजगारों और खेमराज ने मिलकर मंदिर कमेटी भी बना डाली। इस कमेटी में हर उस शख्स को रखा गया था जिसके नाम के पत्थर मंदिर में लगे थे। जिसका जितना बड़ा पत्थर था उसको उसी के आकार का पद मिला। आये दिन भंडारे होने लगे हलवा पूड़ी के लिए आस पास के गावों के लोग भी भक्ति का प्रदर्शन करने के लिए आने लगे। नित्य प्रति भंडारे से लोगों में पूड़ियों की लत लग चुकी थी। बाकी कसर भोले बाबा का प्रसाद पूरा कर देता था। चारों और चरणदास और खेमराज के चर्चे होने लगे थे। अब खेमराज के लिए अगला दांव खेलने का वक्त आ चुका था।

सुबह चार बजे के आसपास का समय। मंदिर मलवे में बदल चुका था। कुछ भक्त अपने नाम के पत्थर उस मलवे में खोज रहे थे। हज़ारों की भीड़ जुट चुकी थी। मंदिर में देर रात विस्फोट हुआ था। महाकाल पर विपदा आयी थी। पुलिस प्रशासन हमेशा की तरह लेट था। भक्तों का रोष चरम पर था। और सांप्रदायिक दंगे की पृष्ठ भूमि खेमराज द्वारा तैयार की जा रही थी। इसके पीछे का कारण थी एक मुस्लिम टोपी। जो मलवे के आस-पास मिली थी। खेमराज इस टोपी को डंडे में लगाकर ग्रामवासियों को आक्रोशित कर रहा था। खेमराज को पता था कि हमारे देश वासियों की धार्मिक भावनाएं बहुत कमजोर होती हैं। इनको आहत करना बहुत आसान काम होता है। फिर खेमराज ने स्क्रिप्ट ही ऐसी लिखी थी कि भावनाएं आहत होने के साथ भड़कें भीं।

फिर वही हुआ जो हमारे देश में होता आया है। हज़ारों की भीड़ हाथों में फावड़े, फरसे, खुरपे, कुदाल लिए हर हर महादेव का जयघोष करते हुए पड़ोसी गाँव अल्लापुर की और कूच कर रही थी। खेमराज के नेतृत्व में भीड़ मुस्लिमों के गेहूं के खेतों को कुचलती हुयी मजबूत व विध्वंशक इरादों के साथ अल्लापुर की मस्जिद की और बढ़ती जा रही थी। जैसे जैसे अल्लापुर पास आता जाता अज़ान और हरहर महादेव की आवाजें एकाकार होने लगतीं। साकार निराकार से भिड़ने वाला था। कुछ ही समय में मस्जिद पुजारियों के कब्जे में थी। हाजी साब को सुरक्षित निकाल दिया गया था। अल्लापुर के कुछ सचेत लोग जो सो कर जगे, हज़ारों की भीड़ देखकर आँखें मूँद लीं। जो सही भी था। शाकिर मियां लाठी लेकर निकले तो रिजवान ने उसे रोक लिया, “चचा, जोश को पी जाओ, मौके की नजाकत को समझो। जब सामने संख्याबल ज्यादा हो तो सब अल्ला के भरोसे ही छोड़ देना चाहिए। अल्ला निपट लेगा। ”इधर मस्जिद को गिराने का कार्य खेमराज के नेतृत्व में आरम्भ हो चुका था। खेमराज चाहता तो मस्जिद को गिराने के लिए विस्फोटक सामग्री का उपयोग कर सकता था पर यहाँ बात समेकित प्रयास की थी। जातीय एकता के प्रदर्शन की थी। कुदाल और फावड़े जिस गति से मस्जिद पर चल रहे थे उस गति से खेतों पर चलते तो ट्रेक्टर के जुताई की आवश्यकता नहीं पड़ती। युवक जिस तरह से मस्जिद की चहारदीवारी से कूद रहे थे उस तरह मैदान में कूद दें तो ओलम्पिक में भारत को निराश न होना पड़े। देखते ही देखते अल्लापुर की मस्जिद का हाल बाबरी मस्जिद सरीखा हो चुका था।

मस्जिद गिरने के तुरंत बाद पुलिस पीएसी ने पुरे अल्लापुर को घेर लिया था। खेमराज के साथ भारी जनाधार था। जेल जाने का उत्साह देखते ही बनता था। हर हर महादेव बोलते हुए लोगों ने क्रांतिकारियों की भांति गिरफ्तारियां दीं। खेमराज हीरो बन चुका था। लाव-लश्कर के साथ उसे जेल ले जाया गया। हुल्लापुर और अल्लापुर सहित आस पास के इलाकों में कर्फ्यू की घोषणा कर दी गयी थी। जो एक सप्ताह बाद समाप्त हो गया था। जाँच कमेटी के गठन का निर्णय भी सरकार ने मजबूरी में लिया। हमारी सरकार प्रायः ठोस कदम मजबूरी में ही उठाती है। उठाती क्या है बल्कि उठवाये जाते हैं। माहौल गर्म होता है तो सरकार पानी की बौछार फेंक उसको ठंडा कर देती है। हमारे देश में दंगों का भी एक स्टेटस होता है। जिन दंगों में हज़ारों शामिल रहते हैं उसके फैसले कुछ एक सालों में नहीं आ जाते।

खेमराज के साथी तो दुसरे ही दिन छुट गए पर खेमराज को जमानत में पंद्रह दिन लगे। इन पंद्रह दिनों में खेमराज के स्वागत की जोरदार तैयारियां की गयीं। मानो वह जेल से नहीं बल्कि लंका जीतकर वापस आ रहा हो। वह क्षेत्रीय स्तर से ऊपर उठ कर जिले स्तर तक तो पहुँच ही गया था। रही सही कसर अखबारों और कुछ चैनलों ने पूरी कर दी थी। एक गुनाहगार कट्टरपंथी हिंदुत्व विचारधारा का वाहक बन चुका था। जेल के सामने खड़ी भीड़ ने उसका स्वागत फूल मालाओं से किया। जब ऐसा होने लगे तो समझना चाहिए राजनीति उसके गले पड़ गयी है चरणदास उनके चरणों में गिर पड़ा और रोने की ऐसी एक्टिंग की कि राजेन्द्र कुमार भी ऊपर से झेंप गए होंगे। जब अचानक से किसी को इतनी प्रसिद्धि मिले, चाहे चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक तो ये मान लेना चाहिए कि वह राजनीति का सफल खिलाड़ी बनेगा ही। खेमराज को अपना उज्जवल भविष्य दिखाई पड़ रहा था। हालांकि सारे मुस्लिम खेमराज के विरोध में लामबंद हो चुके थे पर इससे खेमराज के कैरियर पर कोइ ख़ास असर पड़ने वाला नहीं था। आखिर वो हैं तो अल्पसंख्यक ही। हाँ, वहां से स्थानीय विधायक, व सांसद के अस्तित्व पर अवश्य संकट के बादल मंडरा रहे थे।

और हुआ भी वही। कहने को हम धर्म निरपेक्ष हैं पर जब राजनीति की बात आती है तो हम धर्म सापेक्ष हो जाते हैं। फिर धर्म का रास्ता सत्ता के मंदिर तक पहुँच ही जाता है। जैसा कि होता आया है, मंदिर और मस्जिद दोनों के निर्माण पर हाई कोर्ट से रोक लग गयी। और हिंदूवादी संगठनों के कदम खेमराज की और बढ़ चले थे। एक ऐसी ही पार्टी ने वहां के वर्तमान विधायक जो इस तरह का कृत्य अपने पुरे शासन काल में नहीं करा पाए थे, उनका पत्ता काट दिया गया था। और खेमराज को विधायकी का टिकट मिलने वाला था।

पार्टी से प्रचार के लिए मिले पैसों से खेमराज ने पांच दिवसीय एक सौ एक कुण्डीय यज्ञ का आयोजन करवाया। पम्पलेट के एक और तो वेद मन्त्रों के साथ यज्ञ को सफल बनाने का अनुरोध छपा था तो दूसरी और मंदिर निर्माण के संकल्प के साथ वोट देने की अपील। इसी तरह प्रवचन के आयोजन में अधिकांशतः मंदिर बनवाने के नारे ही होते थे। भगवत कथा में चरणदास के पीछे वही बैनर लगाया जाता था जिस पर हर हर महादेव के साथ मंदिर निर्माण का संकल्प लिखा होता था।

हुल्लापुर के समानांतर अल्लापुर की कहानी भी चल रही थी। अल्लापुर का रिजवान बचपन में खेमराज के साथ क्रिकेट मैच खेला करता था। अल्लापुर बनाम हुल्लापुर। और रिजवान की टीम हमेशा जीतती थी। क्योंकि उस समय तक फिक्सिंग की खोज नहीं हुयी थी। इधर मुस्लिम निराश थे, आक्रोशित भी। ऐसे में उन्हें भी एक तेज-तर्राक नेता की ज़रूरत थी। रिजवान एक ऐसा ही नेता बनकर उभरा। उसने किसी आतंकवादी संगठन की तरह मंदिर में विस्फोट की जिम्मेदारी ले ली। घोषणा कर दी कि मंदिर के पास मिली टोपी उसकी ही थी। इसके पीछे का कारण बताया “आज के तीन सौ साल पहले हुल्लापुर का क्षेत्र भी अल्लापुर का हिस्सा हुआ करता था। पूरी मुस्लिम आबादी थी। ज़मीन अति उपजाऊ थी। सूबे के हिन्दू राजा की नज़र अल्लापुर पर पड़ी। और उसने यहाँ पर हिन्दुओं को बसा दिया था। और हमको अलग कर दिया था। और हिन्दू इलाके को हुल्लापुर नाम दे दिया था। पर उनको हुल्लापुर में बनी मस्ज़िद खटक रही थी। इसलिए उस राजा ने मस्ज़िद तुडवाकर वहां पर मंदिर बनवा दिया। यकीन न हो तो खुदाई कीजिये मंदिर की, मस्जिद होने के सबूत मिलेंगे। जिहाद किया है मैंने। अल्लाह का काम। और मुझे इसका कोइ अफ़सोस नहीं है”

फिर लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुसार उसके साथ भी वही सब हुआ जो खेमराज के साथ हुआ था। गिरफ्तारी, मुकदमा फिर जमानत पर रिहाई। सारे मुस्लिमों का उसे समर्थन भी मिल गया। उसके ऊपर वह सारी धाराएं लगा दी गयीं थीं जो किसी नामी पार्टी का टिकट हासिल करने की वांछनीय योग्यताएं होती हैं। और फिर खेमराज के खिलाफ उससे बढ़िया प्रत्याशी भला कौन हो सकता था। टिकट मिला भी।

चुनाव हुए, अंततः जीत बहुसंख्यक वर्ग की ही हुयी। पर राज्य में रिजवान की पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ था। सरकार रिजवान की पार्टी को ही बनानी थी। एक मुश्त मुस्लिम वोट पाकर रिजवान ज्यादा दुखी नहीं था। अपनी बिरादरी का तो वह स्टार था ही। उसे पूरी उम्मीद थी कि पार्टी उसके खाने कमाने का इंतजाम तो कर ही देगी। दोनों अब राज्य स्तरीय नेता बन चुके थे। एक जीतकर दूसरा हारकर।

जीत के बाद खेमराज अपने पीए चरणदास और ठेकेदारों के साथ (मंदिर का पुजारी चरणदास अब खेमराज का पीए और चेले ठेकेदार बन चुके थे) नैनीताल की वादियों के मजे लेने आया था। एक थ्री स्टार होटल में दस कमरे बुक थे जिनमें एक कमरा रिजवान का भी था। खेमराज थोड़ा पहले पहुँच कर रिजवान का इंतज़ार कर रहा था। और उस सख्स से बात कर रहा था जिसने बम भोले के मंदिर के लिए विशेष बम डिजाइन किया था। तभी सामने से रिजवान आता दिखाई पड़ा। दोनों ऐसे गले मिले कि मानो भरत मिलाप का सीन चल रहा हो।

“वाह, क्या स्क्रिप्ट लिखी मेरे दोस्त।” रिजवान खेमराज के कंधे थप थपाते हुए बोला।

“तेरे जैसे कमीने दोस्त के लिए कुछ तो करना था न। अयोध्या के घाट घाट का पानी पीया है मैंने।” खेमराज उसे होटल के बार की और लेकर चलने लगा।

एक पैग घसीटने के बाद रिजवान बोला- “यार तू क्रिकेट में कभी हरा नहीं पाया मुझे पर इलेक्शन में हरा दिया।”

“देख रिजवान, इस बार फिक्सिंग की थी तूने मुझसे। क्रिकेट मैच में कभी बीस रुपये नहीं लगाए इस बार बीस लाख लगाए मैंने वह भी एडवांस।” खेमराज उसका दूसरा पैग बनाने लगा।

“सच कह रहा है तू, तूने मुझे पैसा नाम शोहरत सब तो दिया है, साथ में एक झूठी कहानी भी। पर तूने जो टोपी पहनाई है, कहीं जेल की रोटियां न तोड़नी पड़ें” उसने मुर्गे की टांग नोच एक पैग और चढ़ाया।

“कुछ नहीं होगा, हमारे देश का कानून तब तक फैसला नहीं सुनाता जब तक कि अपराधी का अपराध साबित नहीं हो जाता, तू कहने भर से अपराधी थोड़े ही बन जाएगा। सरकार जांचेगी परखेगी। कहानी तो सही साबित होगी। भंडारे वाले दिनों में ही चरणदास ने कुरआन की आयत लिखे पुराने पत्थर को शिवलिंग के नीचे ही फिट कर दिया था। गर खुदाई हुयी तो मिल जाएगा।

“मान गए गुरु, पर पत्थर शिवलिंग में इम्प्लांट हुआ कैसे” रिजवान की जुबान में लडखडाहट देख इस बार खेमराज ने उसके पैग में पानी की मात्र बढ़ा दी थी।

“तू भी किस जमाने की बात करता है, यहाँ तो दिल इम्प्लांट कर दिए जाते हैं। फिर तो वह एक पत्थर था। जर्जर शिवलिंग की मरम्मत में काम आ गया था”खेमराज एक पटियाला हलक से नीचे उतारते हुए बोला

“और टोपी का क्या होगा भाई?” सिगरेट का लंबा कश खींच डाला था रिजवान ने

इस बार जोरदार ठहाका लगाया खेमराज ने। ठहाके की तासीर प्रश्नकाल के दौरान संसद में लगने वाले ठहाकों जैसी थी। “तूने कभी उस वह टोपी लगाकर नमाज़ पढ़ी है क्या ?और उस टोपी में तेरा बाल मिलेगा ही नहीं। और जिसका बाल है वो क़ानून की पहुँच से बहुत दूर है।”

सच में क़ानून बाल की खाल निकालने में जुटा है।