हुस्न की कदर / मुस्तकीम खान

Gadya Kosh से
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अजय और रीना की शादी हुए एक साल हो गया था। मगर फिर भी घर में ऐसी कोई भी बात नहीं होती थी जो एक आम घर, जिसमे एक नया शादी शुदा जोड़ा रहता हो उसमे होनी चाहिए। न प्यार भरी गुफ्तगू, न तीखी तकरार। न इंतज़ार की बेचैनी, न रूठने मानाने का सिलसिला। हर वक़्त बस एक शुष्क सा उदास माहौल बना रहता था। अजय सुबह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर आता तो नाश्ता उसे टेबल पर जमाया हुआ मिलता, मगर पास वाली कुर्सी में बैठ कर उसका साथ देने वाला कोई न होता। रीना रसोई घर में अपना काम करती रहती।

रीना भी अजय के जाने के बाद सारा दिन तनहाइयों के लम्हे गिनते हुए बसर करती। उसकी कोई एसी सहेली भी न थी जिससे बात करके अपने मन को हल्का कर सके। जब भी कभी कपडे सुखाने के लिए छत पर जाती तो कभी कभी उस दस मंजिल की ऊंचाई से उसे कूद जाने का मन करता। रीना का एक लौता सहारा था ड्रोइंग-रूम में रखा टेलीविज़न। क्यों की दुनिया भर की ग़मगीन खबरें शायद उसके खुद के ग़मों के वज़न को हल्का कर देतीं थी।

फुरसत के वक़्त जब भी कभी वह अपने आप को शीशे में देखती तो अपनी खूबसुरती पर उसे तरस आता कि उसकी कदर करने वाला कोई नहीं। उसकी सुनहरी जुल्फे बिना चमक के सोने जैसी लगती। आँखों का काजल उसे धुंधली सी स्याही सा लगता। कभी कभी वह अकेली होती तो दुल्हन की तरह खुद को सजाती और खुद ही शीशे के आगे अपना हुलिया बिगाड देती। यूँ करने से उसे ना जाने कौन सा सुकून महसूस होता था।

अजय जब भी दफ्तर से वापस आता तो सीधा अपने कमरे में चला जाता और रीना उधर ही बैठे टेलीविज़न देखती रहती। उधर से ही वह खिड़की के उस पार बाल्कनी में खड़े अजय को, जो फ़ोन पर कोई गुफ्तगू में मसरूफ होता था, उसको देखती। उस समय अजय के चेहरे पर फैली रौनक, बात करते वक़्त उसकी हरकतों से छलकता रूमानी अंदाज़ रीना को यकीन दिला चूका था कि उसके पति के किसी गैर औरत के साथ ताल्लुकात है। ऊपर से अजय का तरतीब से हर रोज यूँ करना उस औरत से अजय के रिश्ते की साफ़ गवाही देता था।

रीना ने कई बार उससे इस मामले में पूछताछ करने की कोशिश की पर जब भी वह अजय से कुछ भी पूछती तो अजय का रूखा सूखा जवाब सुन कर उसे आगे और बात करने में बड़ी हिचकिचाहट महसूस होती। आखीर उसने अजय की रोज़ाना जिंदगी के इस पहलू को भी स्वीकार कर लिया। बावजूद इसके कई बार उसे अजय की एसी कुफ्राना हरकत से बड़ी मायूसी होती। वह यह सोच कर अधूरी हुई जाती कि उसमे एसी क्या कमी है? उसके दिमाग में हर वक़्त अपने ऐतबार के कुचले जाने के ख़यालात आते रहते।

एक दिन जब उसने अपने फ्लैट के बाहर कुछ शोर सुना तो तजस्सुस से उसने दरवाज़ा खोला। पडौसी के यहाँ रोज आने वाला बावर्ची जिसका नाम इस्माईल था, फर्श पर घुटनों के बल बैठा हुआ जोर जोर से सांसे ले रहा था। उसने जब रीना की तरफ देखा तो उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी। रीना ने उसकी तरफ न जाने क्यूँ, पर मुस्कुरा दिया। ऐसा करने के बाद उसको खुद को भी बड़ा ताज्जुब हुआ। इस्माईल के चेहरे के बांये हिस्से पर, एक चोट के इर्द गिर्द, साफ़ सूजन दिखाई दे रही थी जैसे कोई भारी चीज़ से उसे मारा गया हो। बड़ी मुशक्कत के बाद वह खड़ा हुआ और वहाँ से जाने लगा। रीना ने धीमी आवाज़ में कहा, ‘”ठहरो””।

वह रुक गया और नज़रे झुकाए उस तरफ मुडा।

“”अंदर आ जाओ”,” रीना ने फिर से कहा।

इस्माईल वहीँ पर नज़रे झुकाए रुका रहा। रीना ने थोड़े दोस्ताना अंदाज़ में कहा, ““देखो, चोट पर मरहम जितना ही जल्दी लगाया जाए उतना बेहतर है।””

यह सुन कर और रीना का सुखा सा मुस्कुराता चेहरा देख कर इस्माईल के दिल में कुछ अजीब सी भावनाएं उठी और उसके कदम मानो अपने आप ही चल पड़े। वह अंदर दाखिल हो गया।

अंदर जा कर वह सोफे पर बैठ गया। रीना एक डिब्बा ले कर आई और वह भी उसके पास बैठ गइ। अब इस्माईल की धडकनों का आलम कुछ ऐसा था जैसे पूनम की रात समंदर में लहरें। रीना की फूँक से उसकी चोट पर जो दर्द जगता जैसे उसे शहद से कई गुना मीठा लग रहा था। रीना ने दवाई लगाते हुए पूछा, “”बात क्या हुई?”” इस्माईल ने कुछ कर के अपने जज्बातों को संभाला और जवाब दिया, ““मैंने चोरी की थी जो पकड़ी गयी।”” रीना के हाथ दवाई लगाते हुए रुक गए। उसने बड़ी ही हैरतअंगेज नज़रों से इस्माईल की तरफ देखा। फिर दवाई का सामान वापस रखा और अपने कमरे की तरफ चली गयी। वापस आ कर देखा तो इस्माईल वहां मौजूद न था और दरवाज़ा आधा खुला हुआ था।

शाम को जब अजय दफ्तर से लौटा तो रोज के मुताबिक रीना सोफे पर बैठे टेलीविज़न देख रही थी। बिना कुछ कहे वह अंदर चला गया। रीना को अजय के फोन के बजने की आवाज़ सुनाइ दी। उसने मुड कर देखा तो उसी तरह अजय बाल्कनी में खड़े, वही अंदाज़ में फोन पर बातें कर रहा था। अचानक उसकी नज़र भी रीना से जा मिली तो एक पल के लिए वह रुका फिर वापस अपनी बात में मसरूफ हो गया। रीना ने भी न कुछ कहा न कुछ किया। यूँ नज़रों का मिलना पहले भी अक्सर हो चूका था।

रात को अजय के साथ सोते वक़्त रीना को उसका बिस्तर अंगारों से भरी सेज सा लगता था। कई देर तक वह आंसुओं के सूखने का इन्तज़ार करती और सो जाती।

अगले दिन घर का सारा काम खत्म करके वह शीशे के सामने बैठी हुई अपनी मायूस ख़ूबसूरती पर गौर कर रही थी। वह अपनी किस्मत को कोस कोस कर भी तंग आ चुकी थी। भगवान में तो पहले से ही विश्वास न था और होता भी क्यूँ। उसी वक़्त उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। दरवाज़ा खोला तो वही इस्माईल था। दोनों एक दुसरे को थोड़ी देर तक घूरते रहे फिर रीना ने उसे अंदर बुला लिया।

सोफे पर भी दोनों काफी देर तक चुप बैठे रहे। रीना ने आखिर उससे पूछा, “”क्या तुम मुझसे कुछ न कहोगे?”” यह सुनते ही इस्माईल के होठों पर एक मुस्कान चमक उठी। उसने अपना हाथ उठा कर रीना की जुल्फों को सहलाया। वे जुल्फें भी जिनकों सिर्फ हैर ब्रश के छूने की आदत सी हो गयी थी, आज किसी मर्द के छूने से शरमा ने लगीं। इस्माईल ने अपनी टूटी सी आवाज़ में कहा, “”आप के दीदार से मेरी रूह को एसे शांति मिलती है जैसे रेगिस्तान की रेत को बारिश की बूंदों से। फिर डर लगता है, दोबारा शायद नसीब हो ना हो।”” रीना के दिलो दिमाग पर जैसे ज़लज़ला बरपा हो। इक तरफ उसे डर था की कहीं कुछ ऐसा न कर बैठे की उसे पछताना पड़े और दूसरी तरफ उस सुख को पाने का मौका था जिसे वह कई अरसे से मानने लगी थी की उसकी तकदीर में ही नहीं। जब इस्माईल ने अपनी उँगलियों से रीना के पतले लबों को छुआ तो रीना के दिल में भावनाओं का एक सैलाब उठा और वह कुछ न सोच सकी और झट से इस्माईल को अपनी बाँहों में जकड लिया। फिर मानो जैसे हर सरहदें, हर रिवाज़ और रस्मे नाजुक से धागें बन गए थे जो बस बारी बारी टूटते जा रहे थे।

जाते वक़्त इस्माईल ने जेब में से एक छोटा सा मिटटी का खिलौना निकाला। उसे रीना को देते हुए कहा, ““मैं खिलोने बना कर उन्हें बेचता हूँ, जिससे मुझे रोज़ी मिलती है। कभी न सोचा था कि ऐसा ही खिलौना एक दिन मेरा दिल बन जायेगा। तोहफे के तौर पर तुम्हे दे रहा हूँ।” इतना कह कर वह चला गया। रीना ने खिलौने को गौर से देखा तो हू-ब-हु उससे मिलता जुलता था। बस फर्क इतना था कि उसकी खूबसूरती मुरझाई हुई न थी। उसने संभाल कर उसे अपने पास रख लिया।

शाम को अजय लौटा तो देखा की रीना आज टीवी के सामने नहीं बैठी है। कमरे में गया तो रीना शीशे के सामने बैठे हुए खुद को सजा रही थी। उसके पीछे टेबल पर रखे रेडियो पर फ़िल्मी गाने बज रहे थे जो रीना साथ में गुनगुना रही थी। अजय को एक पल के लिए यह बदलाव अजीब लगा पर फिर ध्यान न देते हुए बाथरूम में घुस गया। जैसे ही वह बाहर आया तो उसका फोन बजने लगा और फिर वही हर रोज़ वाली बात। बावजूद इसके उस रात रीना को न बिस्तर के अंगारे महसूस हुए न उसकी आँखें गीली हुई।

घर में अजय की गैर मौजूदगी में इस्माईल और रीना के मिलने का सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। रीना को बचपन से ही नाचना बहुत पसंद था। वह कभी कभी कोई फ़िल्मी गाने पर इस्माईल के सामने नाचती तो इस्माईल बड़ी तबियत से ताली बजाता। इस तरह घर के शुष्क से माहौल में अब कभी कभी खुशियों की तालियाँ गूंजने लगी थी। रीना को अब छत पर से कूदने का मन भी नहीं करता था बल्कि उसे वहां से खुले आसमान में उड़ते पंछिओं को देख कर बड़ी खुशी मिलती। उसकी सुनहरी जुल्फों की चमक लौट आई थी, उसके होटों की सुर्खी अब पहले जैसे फैली हुई न थी बल्कि बड़ी नफासत से लगाई हुई रहती थी। उसकी आँखों के काजल में मायूसी का एक कतरा भी न था और वह रीना के चेहरे की मासूमियत को जम के बढ़ावा देता था। अजय को रीना का यह बदला हुआ रूप देख कर पहले तो हँसी आई फिर बड़ी हैरानी भी हुई मगर उसने कोई खास तवज्जो न दी।

एक दिन दोपहर के वक़्त जब इस्माईल और रीना एक दुसरे की आगोश में लेटे हुए थे तो रीना ने उसे अपने बचपन के कुछ किस्से सूनाने शुरू किए, ”जब भी मैं ज़िद करके मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने जाती तो सब मेरा मज़ाक उड़ाते थे। लिहाज़ा मुझे अपने हम उम्र बच्चों से बहुत चिड होती थी। एक वक़्त था जब घर के ड्राइवर के लड़के के साथ मेरी अच्छी भली दोस्ती हो गयी थी। हम दोनों घर के किसी कोने में खेला करते थे। कभी कभी वह मुझे खच्चर पर बिठा कर खेतों की सेर कराने ले जाता या फिर मैं उसको घर में बनायीं हुई बिरयानी चुपके से बड़े डिब्बे में भर के दे देती। मेरे माँ बाप को मेरा उस लड़के से इस कदर मिलना ज़रा भी अच्छा न लगता था। फिर पापा का तबादला कोई बड़े शहर में हो गया जिसकी वजह से मुझे मेरे एक लौते साथी से हमेशा के लिए बिछडना पड़ा।”” बोलते बोलते रीना ने एक गहरी सांस ली और इस्माईल के हाथ को कस के पकड़ लिया। इस्माईल ने उसकी आँखों से अपनी आँखें मिलाई। थोडा रुकने के बाद रीना ने फिर बोलना शुरू किया, ”कुछ साल घर की चार दीवारों के अंदर अकेले ही गुज़ारे। तभी एक प्लेन क्रेश में मेरे माँ बाप की मौत हो गइ। इतनी सारी जायदात होने के बावजूद मुझे फकीरों सी गरीब होने का एहसास होता। रिश्तेदार और जान पहचान वाले लोग मुझे दिलासा देने आया करते थे जो मेरे गम को और मुश्किल बना देता था। उन दिनों मेरी मुलाकात अजय से हुई। उसके पापा मेरे पापा के बहुत अछे दोस्त थे। अजय की हमदर्दी और खुशमिजाज़ बातें मुझे बड़ी अच्छी लगती। पता ही नहीं चला कि कब वह मेरा सहारा बन गया जो मुझे उस बचपन के दोस्त को खोने के बाद कभी महसूस ही नहीं हुआ था।”” यह बोलते बोलते उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे। मगर बोलती रही, ““ज्यादा से ज्यादा वक़्त उसके साथ बिताने लगी। उसकी मोहब्बत में मैं खुशी से गिरफ्तार हुई।”” रीना ने फिर एक गहरी सांस ले कर कहा, “”उसके बाद वक़्त की ऐसी आंधी आई जिसने हर रिश्ते की शक्लो सूरत बदल कर रख दी। कई बार तो विश्वास ही नहीं होता की यह वही शख्स है जो...”” रीना आगे नहीं बोल पाई। इस्माईल जो इत्मीनान से उसकी बातें सुन रहा था, उसने अपने हाथों से रीना के आंसू पौंछे। दोनों काफी देर तक एक दुसरे को लिपटे हुए लेटे रहे और फिर इस्माईल वहां से चला गया।

शाम को अजय लौटा तो आज वह थोडा बेचैन सा लग रहा था। उसकी चाल हर रोज से कुछ बदली हुई लग रही थी। जब कि रीना आज भी शीशे के सामने बैठी हुई अपने आप को देख रही थी। रेडियो पर रंगीन मिजाज़ के गाने बज रहे थे। अजय ने रेडियो का स्विच बंद किया और शीशे में रीना को घूरते हुए कहा, “”यह मैं क्या सुन रहा हूँ?”” रीना चुप रही। अजय कमरे में चक्कर लगाने लगा। उसने अचानक रीना के करीब आ कर उसे टटोला और कहा, “”मैं मानता हूँ की मैंने तुम्हारे साथ नाइंसाफी की है मगर... मगर उसका बदला तुम मुझसे ऐसे लोगी?... एक दो कौड़ी के नौकर के साथ यह सब जो एक ....?”” रीना ने पलट कर उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में न तो अजय के लिए नफरत थी न तो किसी किस्म का अफ़सोस। अजय उधर ही बैठ गया। उसने रीना का हाथ अपने हाथों में लिया और कहा, “”मैं तुमसे वादा करता हूँ की आइन्दा तुम्हारे सिवा किसी गैर औरत से ऐसा कोई रिश्ता न रखूंगा जिससे तुम्हारे दिल को ठेस पहोंचे, मुझे माफ कर दो।”” उसने अपना सर झुका लिया। रीना अब भी चुप रही। तभी अजय का फोन बजने लगा। अजय ने खौफ भरी नज़रों से रीना की तरफ देखा। कमरे के सन्नाटे में फोन की घंटी थोड़ी देर गूंजती रही। अजय ने होश संभाला और रीना से कहा, “”मैं अभी के अभी सारे गीले शिकवे मिटा देना चाहता हूँ।”” उसने फोन कान पर लगा कर कहा, ““देखो, मुझसे गलती हुई। आज के बाद रहम करके मुझे फोन मत करना। मैं तुमसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता।”” वह थोड़ी देर तक दुसरे सिरे से आ रही आवाज़ सुनता रहा। सुनते वक़्त उसके चेहरे से यूँ मालूम होता था जैसे कोई उसे बड़े ही गंदे लफ़्ज़ों में कोस रहा हो। थोड़ी देर सुनने के बाद अजय से रहा न गया तो वह भी चिल्लाया, ““बोल दिया न मुझसे गलती हुई, अब दोबारा फोन करने की जुर्रत मत करना।”” उसने जोर से फोन नीचे पटक दिया तो वह टुकड़े टुकड़े हो कर बिखर गया। अजय गुस्से से लाल हो चूका था, उसकी सांस फूली जा रही थी। वह झट से खड़ा हुआ और फिर से अपना सर पकड़ कर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद उसके सर पर एक प्यार भरा स्पर्श महसूस हुआ। वह खुश हो गया कि आखिर रीना ने उसे माफ कर दिया। उसने आंसू भरी आँखों के साथ सर उठा कर रीना की तरफ देखा और उसके हाथ को चूमा. मगर अगले ही पल रीना ने अपना हाथ धीरे से वापस खींच कर बिस्तर पर दूसरी तरफ का रुख करके सो गई। अजय को समझ नहीं आ रहा था की क्या करे। बड़ी देर तक वह उधर ही बुत की तरह बैठा रहा।

सुबह बड़ी देर से उसकी आँख खुली। उठ कर देखा तो रीना को पास में न पाया। पुरे घर में जा कर देखा पर रीना न थी। गम और अफ़सोस के मारे उसका सर चकरा रहा था। उसे अचानक खयाल आया कि शायद छत पर हो। वह भागता हुआ सीडीयाँ चढा और उपर जा कर उसने देखा कि कुछ कपडे रस्सी पर सुख रहे हैं। तभी रीना का एक कुर्ता हवा के कारण रस्सी से छूट कर उड़ने लगा। अजय ने भाग कर उस कुर्ते को पकड़ ने की कोशिश की मगर तब तक वह उसकी पहोंच से बहुत दूर जा चूका था। अजय वहीँ खड़े रह कर उस कुर्ते को हवा में लहराते हुए, दसवीं मंजिल से नीचे तक गिरता देखता रहा। फिर जब उसने ऊपर देखा तो कुछ परिंदे भी आसमान में इस कदर मंडरा रहे थे जैसे उन्हें अजय से कुछ शिकायत थी। यह सब देख कर अजय के दिल में जल रही बेचैनी की आग और भड़क गयी और वह वापस घर में चला गया।

सोफे पर जा कर बैठ गया। तभी उसकी नज़र टेबल पर पड़े एक खिलोने पर पड़ी जो हुबहू रीना से मिलता जुलता था। उसने उसे उठाया और नीचे दबा खत खोल कर पढ़ने लगा: ““प्यारे शोहर, मैं वाकई तुमसे किसी किस्म के पछतावे की ख्वाहिश नहीं रखती। सच, बदला लेने की आरज़ू में अगर मुझसे ज्यादा बेरहमी हुई हो तो माफ करना। कल इस्माईल के जाने के बाद उसकी की बीवी मुझसे मिलने आई थी। यूँ कहिये की कुछ दरख्वास्त ले कर आई थी। उसके आंसुओ और दर्द से मैं इतनी अच्छी तरह से वाकिफ हूँ कि उन्हें बर्दाश्त करने की मुझमे ताकत ही नहीं। बस इतना ही। एक बेवफा को दुसरे बेवफा का प्यार भरा सलाम।””

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई. अजय ने दरवाज़ा खोला तो वही इस्माईल सामने खड़ा था। अजय को देख कर थोडा सा हैरान रह गया। मगर अजय ने उसे अंदर बुला लिया और दोनों ने बैठ कर एक दुसरे से घंटो तक बातें की।

रीना अब एसी जगह जिंदगी बसर कर रही है जहाँ उसके हुस्न की कदर करने वालों की कोई कमी नहीं। जो उसे उसकी अच्छी खासी कीमत भी अदा करते है।