हृषीकेश सुलभ / परिचय
हृषीकेश सुलभ (जन्म फ़रवरी १५, १९५५) हिन्दी के शीर्ष लेखक हैं, जो कि कहानी और नाटक-लेखन की विधाओं के लिये जाने जाते हैं। आप ऑल इण्डिया रेडियो में कार्यरत भी हैं।
हाल ही में
सुलभ जी को उनके कहानी संग्रह "वसंत के हत्यारे" के लिये हाल ही में इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान दिया गया है। ये सम्मान उन्हें कथा यूके द्वारा दिया गया है।
जीवन
आपका जन्म फ़रवरी १५, १९५५ को भारत में बिहार के लहेजी नामक एक छोटे से गाँव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव मे ही हुई। लहेजी के माहौल और रंगमंच से जुडाव ने आरंभ से ही रंगमंच की तरफ़ आपका ध्यान आकृष्ट किया।
आपके पिता, स्वतंत्रता सेनानी श्री रमाशंकर श्रीवास्तव, आपकी आगे की शिक्षा हेतु आपको ले कर पटना चले आये। हिन्दी से स्नातक होने के बाद आपने उच्च शिक्षा प्रारंभ की, किन्तु पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी के चलते, आपने एक साल के पढाई के बाद अध्ययन स्थगित कर दिया।
जीविकोपार्जन करते हुये भी रचनात्मकता को जीवित रखने हेतु आपने ऑल इण्डिया रेडियो में 'प्रोग्राम-एक्ज़ीक्यूटिव' का पदभार सम्हाल लिया।
अप्रैल २६, १९८२ को २८ वर्ष की उम्र में अपनी नियमित पाठिका मीनूजी से आपका विवाह संपन्न हुआ। उस समय, मीनूजी अपने गाँव (ग्राम माधवपुर, ज़िला चम्पारन, बिहार, भारत) की इकलौती स्नातक महिला थीं। आप दोनों की तीन बेटियाँ भी हैं - वत्सला, वसुन्धरा, एवं वल्लरी।
आपके जीवन और आपके साहित्य-सृजन पर आपके पिता, जो कि स्वतंत्रता-सेनानी होने के साथ साथ एक होम्योपेथिक डॉक्टर भी थे, का गहरा असर पडा। आपने अक्सर अपने व्यक्तित्व की सहजता और उसमे निहित समानुभूति का श्रेय अपने पिता को दिया है। आपके पिता ने आप पर असाधारण हद तक विश्वास किया और पूरी स्वतंत्रता दी। पिछले तीस वर्षों से सुलभ ने साहित्य-सृजन के अलावा अनेक सांस्कृतिक आंदोलनों में भी भाग लिया है। उनकी कहानियाँ तमाम पत्रिकाओं में छपी हैं, तथा तमाम भाषाओं में उनका अनुवाद भी हो चुका है। रंगमंच से बचपन से जुडे होने के कारण आपने कहानियों और लेखों के साथ साथ नाटक भी लिखे।
आपने नाटक के विधा के अपने सृजन को विशेष रूप से बिहारी ठाकुर द्वारा प्रचलित की गयी शैली 'बिदेशिया' पर केंद्रित किया है। इस शैली को आधुनिक भारतीय रंगमंच में प्रयोग करने के लिये आप जाने जाते हैं। इस शैली के आपके प्रसिद्ध नाटक 'बटोही' का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा हाल ही में किया गया था।
पिछले कुछ वर्षों से आप लगातार हिन्दी साहित्यिक पत्रिका 'कथादेश' में लेख लिख रहे हैं।
""धरती आबा"" आपके द्वारा लिखा गया नवीनतम नाटक है।
पुरस्कार एवं सम्मान
- १६वाँ इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान" २०१० by कथा यूके कहानी-संग्रह 'वसंत के हत्यारे' के लिये
- बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान हिन्दी कहानियों के लिये
- अनिल कुमार मुखर्जी शिखर सम्मान रंगमंच के गतिविधियों एवं नाटक-लेखन के लिये
- रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान for नाटक-लेखन के लिये
- पाटलिपुत्र पुरस्कार" नाटक लेखन एवं रंगमंच की गतिविधियों के लिये
- सिद्धार्थ कुमार स्मृति सम्मान" रंगमंच आलोचना एवं नाटक-लेखन के लिये
साहित्य-सृजन
आपने मुख्यतः तीन विधाओं पर कार्य किया है - नाटक, कहानी एवं रंगमंच-आलोचना
नाटक
- धरती आबा
- अमली प्राप्त करें
- अमली सारांश
- बटोही (ISBN 8126713349)
- माटी गाडी शूद्रक के संस्कृत नाटक मृच्चकटिकम का रूपांतरण,
- मैला आँचल (फणीश्वर नाथ रेणु') के उपन्यास का रूपांतरण
कहानी संग्रह
- पथरकट
- वधस्थल से छ्लाँग
- बँधा है काल
- तूती की आवाज़ (ISBN 8126712910)
- वसंत के हत्यारे
रंगमंच आलोचना
- रंगमंच का जनतंत्र - रंगमंच-आलोचना के विषय पर एक पुस्तक" रंगमंच पर सुलभ के लेखों का संग्रह
- हिन्दी मासिक कथादेश मे रंगमंच से जुडा एक नियमित कॉलम
- हिन्दी समाचार पत्रिका लोकायत मे रंगमंच से जुडा एक नियमित कॉलम
- जागरण, हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय-सहार इत्यादि पत्रों में लेख
पत्रिकाएँ जिनमें सुलभ ने लिखा है:
1. सारिका 2. धर्मयुग 3. लहर 4. साक्षात्कार 5. कथायात्रा 6. रविवार 7. वसुधा 8. साम्य 9. अब कहानी विशेषांक 10. वर्तमान साहित्य 11. हँस 12. कथन 13. सबरंग-जनसत्ता विशेषांक 14. कथादेश 15. इण्डिया टुडे एवं उसका ही साहित्य विशेषांक 16. लोकमत विशेषांक 17. प्रभात खबर विशेषांक 18. संभव कहानी विशेषांक 19. जनपथ 20. समकालीन भारतीय साहित्य
- उनकी कहानी "अष्ठभुजालाल की भुजाएँ" थेरन्जेदुथा हिन्दी कथाकाल' में सम्मिलित की गयी थी। इसका अनुवाद वी. के. रविन्द्रनाथ ने किया था।