हेली का पुच्छल तारा / रामचन्द्र शुक्ल

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1910, अप्रैल और मई महीनों में जिस पुच्छल तारे के दिखाई देने की विलायती ज्योतिषियों ने भविष्यद्वाणी की है उसे हेली का पुच्छल तारा कहते हैं। लोग जानते हैं कि पुच्छल तारों की सामयिक गति आदि का कुछ ठीक नहीं रहता। हेली नामक एक अंगरेज ज्योतिषी ने पहिले पहिल उस तारे की गति और उसके दृश्यकाल आदि को निश्चित किया। इसी से इसका नाम 'हेली का पुच्छल तारा' पड़ गया।

एडमंड हेली का जन्म लंडन नगर में हुआ था। उसका बाप एक धनी साबुन बनाने वाला था। हेली की गणित और ज्योतिष की ओर आरम्भ ही से रुचि थी। उसने अपने पिता की आर्थिक सहायता से इन विद्याओं में अच्छा अभ्यास किया और ग्रह मार्गों के निर्णय का एक नया ढंग निकाला। उन्हीं दिनों में न्यूटन ने अपने प्रसिध्द आकर्षण सिध्दान्त से योरप के लोगों में खलबली डाल रक्खीे थी। हेली ने यही देखने के लिए कि सब ग्रह्रूपडों के विषय में न्यूटन का सिध्दान्त ठीक उतरता है कि नहीं 24 पुच्छल तारों की गति आदि की जाँच कर डाली। इन्हींल 24 में से वे तीन तारे थे जो 24 अगस्त 1531, 16 अक्टूबर 1607 और 24 सितम्बर 1682 को दिखाई पड़े थे। इन तारों में परस्पर कई बातों में समानता देखकर हेली ने निश्चित कर लिया कि हो न हो ये तीनों तारे एक ही हैं। इस प्रकार स्थूल रूप से इनके दृश्यकाल का अन्तर निकल आया। हेली ने समझ लिया कि कालक्रम में जो थोड़ा सा फर्क पड़ जाता है वह मंगल और बृहस्पति आदि ग्रहों के गड़बड़ डालने से होता है। मंगल और बृहस्पति स्वयं एक दूसरे की गति में गड़बड़ डाल देते हैं जिससे उनका उदयकाल ठीक नियमित नहीं रहने पाता। दो-एक दिन का गड़बड़ पड़ ही जाता है। बहुत मन्द गति से गमन करने वाले पिंडों (जैसे-पुच्छल तारे) पर तो इस गड़बड़ का और भी अधिक असर पड़ता है। इन सब बातों को विचार कर हेली ने अपनी प्रसिध्द भविष्यद्वाणी की कि वह पुच्छलतारा 1758 में फिर दिखाई पडेग़ा। हेली तो अपनी इस भविष्यद्वाणी के पूरा होने के पहिले ही मर गया पर क्लिमाट आदि फरासीसी ज्योतिषियों ने नक्षत्रों की बाधा आदि का पूरा हिसाब करके बताया कि वह पुच्छल तारा सन् 1759 में 13 अप्रैल के इधर-उधर रवि नीच में अर्थात सूर्य के निकट आवेगा। सचमुच उसी साल 12 मार्च को वह तारा दिखाई पड़ा। इसके उपरान्त फिर अपने 75-76 वर्ष के नियमित क्रम के अनुसार यह सन् 1835 में 23 सितम्बर को खाली आँखों से देखा गया और 24 सितम्बर को उसकी पूँछ दिखाई पड़ी।

1864 ई. में पाण्टी कोलेण्ट ने सूचित किया कि यह तारा 24 मई सन् 1910 में फिर सूर्यमण्डल के निकट आवेगा। क्रामलिन और कावेल नामक विद्वानों ने इसका समर्थन किया और बड़े परिश्रम से इस विषय की छानबीन की जिसका विवरण अस्ट्रानामिकल सोसाइटी की नोटिसों में मिलेगा। इन महाशयों ने हाईड के मत को भी पुष्ट किया जिसने ऐतिहासिक आधारों पर 11 ई. पू. उसका उदय होना बतलाया था। ये लोग अपनी छानबीन को और भी प्राचीन काल तक ले गए और इन्होंने बतलाया कि यह तारा अपने नियमित क्रम के अनुसार ईसा से 87 वर्ष पूर्व भी दिखाई पड़ा था जिसकी चर्चा चीनी इतिहासों में इस प्रकार है-”हाडयून के (राजत्व काल के) दूसरे वर्ष, सातवें महीने में एक पुच्छल तारा पूर्व दिशा में दिखाई पड़ा।” इन दोनों ज्योतिषियों ने 1910 के विषय में कहा है कि यह तारा वर्ष के आरम्भ में सन्ध्याा के समय साधारण तारे के समान दिखाई पड़ेगा। मार्च में वह फिर गायब हो जायगा। 12 मई को वह हमारे और सूर्य के बीच से होकर 7005000 मील की दूरी पर से गमन करेगा और दो-एक सप्ताह तक चमकता हुआ दिखाई देगा।

(नागरीप्रचारिणी पत्रिका, अक्टूबर, 1909)