हैप्पी बर्थ डे टू पी.एम. / प्रमोद यादव

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‘गुरूजी...प्रणाम..’

‘अरे नब्बू... तुम? बड़े दिनों बाद दिखे.... क्या बात है..आओ..अन्दर आओ..’ गुरूजी ने अपने अस्त-व्यस्त बाथरूमनुमा छोटे से धूल-भरे कमरे में चटाई बिछाते कहा.

‘वो क्या है गुरूजी कि आजकल आफिस में ज्यादा काम रहता है..लौटते-लौटते आठ बज जाते हैं..आज छुट्टी थी..श्रीमती बोली कि मटन बनाई हूँ तो सोचा आपके लिए ले जाऊं..आपको बेहद पसंद है न? ‘

गुरूजी घाघ थे..समझ गए – चारा डाल रहा है..बोले- ‘मुद्दे की बात पर आ यार. बता क्या चाहिए?’

नब्बू एक पल के लिए झेंप सा गया..फिर डीढ़ता से बोला- ‘गुरूजी..वैसे तो हम जानते हैं कि हमारा लिखा आपको पसंद नहीं आएगा फिर भी गुजारिश है –एक बार पढ़कर देख लें..और कहीं कोई “ग्रेमीटिकल मिस्टेक” हो तो अविलम्ब सुधार दें..हमें सोलह तारीख को एक बहुत ही भव्य कवि -सम्मलेन के लिए सूरत जाना पड़ सकता है..’

गुरूजी एकबारगी हैरान हुए कि अभी तो दुर्गा-पूजा काफी दूर है..पित्री -पक्ष चल रहा है ऐसे समय में कौन सम्मलेन करवा रहा है..और वो भी “भव्य”?

वे बोले - ‘लाओ दिखाओ .. क्या लिखा है तुमने भला..’

नब्बू ने कमीज के उपरी जेब से एक तुड़ा-मुड़ा बड़ा सा कागज का पन्ना निकालते कहा- ‘गुरूजी..पहले मटन खा लीजिये..ठंडा हो जाएगा..मेरी रचना तो काफी गरम है ..अभी-अभी ही लिखी है..बाद में पढेंगे तब भी वैसा ही रहेगा.. लेकिन मटन ठंडा हो जाएगा..खा लीजिये..’

गुरूजी तो भुक्कड़ थे ही ..नब्बू की बातों पर गौर करते तुरंत एक थालीनुमा आदिकालीन प्लेट कहीं से निकाल लाये..और नब्बू प्रेम से टिफिन खोल उसमें परोसने लगा..पूरे खाते तक गुरूजी स्वादिष्ट मटन की,उसकी पत्नी की तारीफ़ करते रहे और नब्बू उनकी लिखी कविताओं की ..खाना समाप्त होते ही गुरूजी जोर से डकारते बोले- ‘मजा आ गया नब्बू..बड़े अरसे बाद खाया..हर हफ्ते आया करो यार.. ( मटन लाया करो यार ) तुम आते हो तो मेरी सेहत बनने लगती है..हाँ..दिखाओ..क्या लिखा है? ‘

नब्बू ने प्रेम से खोलकर कागज का पन्ना उन्हें थमा दिया..पढ़ते ही गुरूजी तमक गए- ‘नब्बू..ये क्या है? पहली ही लाईन अंग्रेजी में? तुम लोग हिंदी का मजाक बनाने लगे हो यार..’

नब्बू डर गया..तुरंत सफाई दी- ‘नहीं गुरूजी..ऐसा नहीं है..दरअसल जन्मदिन की कविता है इसलिए हमने पहली लाईन “ हैप्पी बर्थ डे टू पी.एम “ लिख दिया है.. वो क्या है कि हिंदी में मुबारकबाद देने में ज्यादा अपनेपन का एहसास नहीं होता..जितने कि अंग्रेजी में होता है..इसलिए..’

गुरूजी डांटते हुए बोले- ‘अरे यार..ऐसा नहीं है..हिंदी के साथ अंग्रेजी को जोड़ तुम जोड़-तोड़ की कविता मत किया करो..जोड़-तोड़ की पार्टी चल सकती है- कविता नहीं..समझे? ‘

नब्बू सांसत में कि गुरूजी इसे हमेशा की तरह फाड़कर फेंक न दे..पर आगे उन्हें और पढ़ते देखा तो चैन की सांस ली...

‘अरे नब्बू..ये तुमने किस पर कविता लिखी है? पी.एम. पर? हमारे देश के प्रधान-मंत्री पर? ‘

नब्बू को लगा कि अब वे इसे फाड़ कर फेंक देंगे..

उसने जवाब दिया – ‘हाँ गुरूजी..उन्हीं पर लिखा है..सत्रह तारीख को उनका जन्मदिन है..’

‘अरे वाह..पी.एम. साहब के लिए लिखा है..लेकिन लेवल के हिसाब से तो ये एकदम बकवास कविता है नब्बू..किसी ऐरे-गिरे नत्थू-खेरे को यह खप जाएगा पर पी.एम. को कतई नहीं.. वी.आई.पी. के लेवल की यह कविता नहीं है..वहां पढोगे तो हूट हो जाओगे..’ गुरूजी ने डरा दिया.

नब्बू एकाएक उदास हो गया..बोला- ‘गुरूजी.. तो बताईये क्या करूँ? दिन करीब हैं..मेरे तो पसीने छूट रहे..’

‘अच्छा..एक काम करो...कल शाम तुम चिकन बिरयानी लेकर आना और परसों हैदराबादी मुगलई कबाब..’ नब्बू बीच में बात काटते बोला - ‘पर गुरूजी..मेरी श्रीमती को ये बनाना नहीं आता ..’

गुरूजी तपाक से बोले- ‘कैफे-नूरी वालों को आता है..वहां से ले आना..नरसों तुम्हे पी.एम. लेवल की जन्मदिन वाली कविता मिल जायेगी..जाओ..अब मुझे लिखने दो..इस लेवल का लिखने के लिए मुझे तन्हाई चाहिए..’ और नब्बू के लिखे पन्ने को उसने वापस लौटा दिया.

नब्बू टिफिन लेकर चलता बना ..खुश था कि बात बन गई..पर बिरयानी और कबाब की सोच थोडा परेशान हुआ..ये dishडिश तो कभी उसके बाप ने भी नहीं खाया..आखिरकार मन को समझाया कि पी.एम. के जन्मदिन के लिए कोई पार्टी छोड़ने तैयार है तो दो दिन टिफिन छोड़ने में क्या बुराई..किसी तरह खुद को संयत करने की कोशिश करता रहा . दो दिनों तक बिला नागा सुबह-शाम गुरूजी को लजीज टिफिन पहुंचाता रहा ..कुछ पूछने को करता तो इशारे से गुरूजी कहते- “अभी चिंतन की प्रक्रिया में हूँ..प्लीज ..डू नाट डिस्टर्ब..”

आखिर इन्तजार की घड़ियाँ समाप्त हुई..नब्बू पुलकते हुए तीसरे दिन गुरूजी के द्वार जन्मदिन की कविता लेने गया तो गुरूजी कविता सौंपते बोले - ‘यार नब्बू..एक बात बता..तू तो वी.आई.पी लेवल का आदमी नहीं..तेरा लेवल तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ..फिर कैसे जुगाड़ किया? कैसे आयोजकों ने तुम्हें पी.एम. के जन्मदिन की पार्टी में कविता सुनाने बुला लिया? ‘

‘बुलाया नहीं गुरूजी पर बुला सकते हैं ..देश के बड़े-बड़े कवि मेरी तरह जाने को तैयार बैठे हैं..सबको बुलावे का इंतज़ार है..सबको उम्मीद है कि बच्चों की क्लास की तरह इस बार वे देश के कवियों की क्लास लेंगे ..उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करेगे .. पूरे देश में इसका “लाईव कास्ट” होगा..’

‘अच्छा..तभी तो सोचूँ..ये मुंह और मसूर की दाल...तो तुमने सम्भावनाओं में ये महल खड़ा किया है..’

‘ऐसा है गुरूजी..संभावना से ही तो संसार है..तैयारी करके रखने में क्या बुराई?..बुलावा नहीं आया तो किसी और के जन्मदिन में पढ़ देंगे.. ‘

‘पर यार नब्बू..मैंने बहुत ही मशक्कत से यह कविता लिखी है..इसे किसी ऐरे-गैरे पर मत वारना..नहीं तो मेरी आत्मा दुखेगी ..’

‘नहीं गुरूजी..ख्याल रखूँगा..आप निश्चिन्त रहे..चलता हूँ..हो सकता है कल तक आमंत्रण भी मिल जाए.. वैसे सूरत से आपके लिए क्या लाऊंगा?’ चलते-चलते उसने पूछा.

‘ढोकला ले आना यार..गुजरात में भला और क्या मिलेगा?’

नब्बू पी.एम. के जन्मदिन की कविता ले चला गया लेकिन शाम को फिर धडधडाते आ गया..गुरूजी परेशान कि अब क्या हो गया? कहीं फिर से कांट-छांट करने तो नहीं कहेगा..

‘अब कैसे नब्बू..काम तो हो गया न?’ गुरूजी ने पूछा.

‘गुरूजी.. क्या आप एकाध कविता या मुक्तक चीनी भाषा में लिख देंगे? ‘

‘क्यों..? हिंदी-अंग्रेजी की तो तुम्हें समझ नहीं..अब चाईनीज में किसे कविता सुनाओगे? ‘गुरूजी गुस्से से बोले.

‘गुरूजी ..दरअसल पी.एम .साहब अपना जन्मदिन चीनी राष्ट्रपति के साथ मना रहे हैं..अब अगर पी.एम.पर कविता करूँ और राष्ट्रपति पर नहीं तो उन्हें बुरा लगेगा..’ नब्बू ने सफाई दी.

‘अरे पागल..जिसका जन्मदिन है,उसी पर कविता करो..वैसे भी राष्ट्रपतिजी को सुनाने से कोई फायदा नहीं..नेहरूजी ने चाऊ एन लाई को काफी सुनाये थे तब फर्क नहीं पड़ा तो तुम्हारे सुनाने से कौन सा “ हिंदी-चीनी- भाई-भाई ” हो जायेंगे? खैर..तुम ये फितूर छोडो और अपना काम करो.. जाकर पता करो.. देखो.. आमंत्रण आया कि नहीं..’

‘अच्छा गुरूजी..’ कहते नब्बू चला गया.

एक हप्ते बाद नब्बू आया तो काफी उदास और बदहवाश सा दिखा..खिचड़ी जैसे दाढ़ी बढ़ी थी..बाल बेतरतीब थे..वह कुछ बताता इसके पहले ही गुरूजी शुरू हो गए- ‘तो जनाब आ गए पी.एम. का जन्मदिन मनाके..बेवक़ूफ़..जब निमंत्रण नहीं था तो गए क्यों? ‘

‘वो क्या है गुरूजी कि हम काफी लोगों को बता चुके थे...नहीं जाते तो लोग हमारी खिल्ली उड़ाते..’

‘खिल्ली तो अब भी उड़ायेंगे जिन्होंने तुम्हें टी.वी. चैनल्स में देखा होगा...क्या ही मनोरम दृश्य था...पुलिसवाले तुम्हारी कालर पकड़ घसीटते हुए तुम्हें बाहर फेंक रहे थे..वो तो अचानक मैं चंदू के यहाँ टी.वी. में तुम्हें देख लिया..पहचान लिया..’

‘और कई कवि थे गुरूजी..उनके साथ भी यही हुआ..’ नब्बू बोला.

‘बिना पास के ..बिना आमंत्रण के घुसोगे तो ये तो होना ही है..यार..कितनी अच्छी कविता लिखी थी पर बैरंग ही वापस आ गया..ला..वो कविता वापस कर...किसी और भलेमानस के काम आ जाएगा..’ इतना कहते गुरूजी ने उसकी उपरी जेब से कविता निकाल ली.

नब्बू हतप्रभ कि क्या करे..अब हप्ते भर पहले का बिरियानी-कबाब तो वापस मांग नहीं सकता..सोच ही रहा था कि गुरूजी फिर बोले- ‘नब्बू..ढोकला लाया क्या?’

नब्बू अब लगभग रोने को हो गया..बोला- ‘गुरूजी..दो दिन पुलिसवालों ने थाने में भूखा-प्यासा रखा और आपको ढोकला सूझ रहा है..’

गुरूजी उसकी हालत देख पिघल गए, बोले- ‘अच्छा ले..ये कविता रख ले..अपनी पत्नी के जन्मदिन में सुना देना..खुश हो जायेगी..पर याद रखना-जिस दिन भी मनाना..मेरे लिए ढोकला जरुर लेकर लाना..’

‘अवश्य गुरूजी..’ कहते नब्बू चला गया.