हैवानियत / प्रमोद यादव

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‘ममता, अब रोना-धोना बंद भी करो...कब तक यूं रोती रहोगी ? जो होना था सो हो गया..इसे नियति मानकर चलो..मैंने तो पहले ही और उसी दिन तुम्हें सावधान किया था जिस दिन पप्पी मिली..तुम्हें बार-बार समझाया था कि आगे जाकर कहीं ये हमारे लिए दुखदाई ना बन जाये..कोई मुसीबत ना बन जाए..पर तुम्हारे ह्रदय में तो उस वक्त कुछ जरुरत से ज्यादा ही ममत्व हिलोरें मार रहा था..तुम ममता में अंधी हो गयी थी..ऐसा नहीं कि उस खौफनाक दृश्य से मैं विचलित न हुआ..मैं भी सिहर गया था..पर एकाएक तुमने उसे साथ ले चलने का जो फैसला लिया, वो मुझे कतई पसंद नहीं था..लेकिन ‘इंसानियत के नाते’ कहकर तुमने मुझे निरुत्तर कर दिया..’कुछ दिनों के लिए’ कहकर मुझे चुप करा दिया..पर आज तुमने देख ली ना.’.इंसान की इंसानियत..’

‘हाँ..अजीत...अब इंसानियत दफ्न हो गया है...केवल हैवानियत रह गया है..कभी सपने में भी न सोची थी कि आदमी इस कदर भी गिर सकता है. हैवान हो सकता है.. .’

‘छोडो ममता...जो होना था सो हो गया..अब नीटू पर ध्यान दो..बार-बार वो पप्पी के बारे में पूछ रहा है..उसे समझाओ..’

अपनी आँखों के गीले कोरों को उँगलियों से समेटती ममता नीटू को बांहों में भरकर बोली -‘वो रूठकर चली गई नीटू..तू उसे तंग करता था ना..इसलिए..’

‘ सारी मम्मी..अब नहीं करूँगा..उसे बुला लो ना ..’ वह सुबकने लगा था.

डेढ़-वर्षीय पप्पी साल भर पहले गोंदिया स्टेशन के पास ममता को लावारिश मिली थी.पुणे से एक शादी अटेंड कर अपने पति अजीत और दो-वर्षीय पुत्र नीटू के साथ स्टेशन से ऑटो कर दो फर्लांग ही बाहर वीरान रास्ते पर पहुंची थी तो देखी कि दो छोटे-छोटे कुत्ते किसी गठरीनुमा चीज को मुंह में दबाये आपस में खींच रहे थे तभी किसी बच्चे की चीख ने उसे चौंकाया.उसने तुरंत ऑटो रुकवाया. दौड़कर कुत्तों को भगाया. एक पांच-छः माह की दुधमुंही बच्ची थोड़ी घायल-सी थी और लगातार चीखे जा रही थी.तब तक अजीत भी वहां पहुँच गया. बच्ची को हाथों में थामे वह आसपास देखने लगी कि शायद कोई इसका अभिभावक दिख जाए पर दूर-दूर तक वहां कोई न था. अजीत किंकर्तव्य मूढ़ खड़ा रहा. ममता उस बच्ची को गोद में ले ऑटो में बैठी. बैग से एक तौलिया निकाल उसमे लपेटी और ऑटो वाले को तुरंत ही किसी पास के डिस्पेंसरी में चलने कहा डाक्टर ने बताया कि मामूली खरोंच है, इंजेक्शन नहीं लगेंगे.. मलहम से ठीक हो जायेगी..पर इसे पर्याप्त मात्रा में माँ का दूध मिले तो जल्दी रिकव्हर कर लेगी. बच्ची का भूख से बुरा हाल था.

ऑटो में बैठते ही ममता ने बच्ची को अपनी आँचल के नीचे छुपाया तो अजीत चीख-सा पड़ा-‘ये क्या कर रही हो ममता ? ना जाने किसकी है..कौन से मजहब की है लावारिश है या किसी के पाप की गठरी है..बिना कुछ जाने इसे दूध पिलाने जा रही हो ?’

‘ चुप रहो अजीत..चाहे कोई भी हो ..है तो एक नन्ही जान ना..और इसकी जान बचाना ही इंसानियत का धर्म है..फिलहाल इस विषय में मुझसे और बातें न करो..सारी बातें घर चलकर करें तो अच्छा होगा...’

घर पहुँचते तक बच्ची गहरी नींद के आगोश में चली गयी थी. नन्हा नीटू उस नवांगतुक को आश्चर्य भरी नज़रों से घूर रहा था.अजीत ने सवाल किया कि अब इस बच्ची का क्या करें ? ममता ने साफ-साफ कहा कि इसके माता-पिता को ढूढेंगे..पुलिस से सहायता मांगेंगे जैसे ही मिलेंगे ..उन्हें सौंप देंगे...तब तक यह यहीं रहेगी ...इसी घर में.

ममता की जिद पर वह वहीँ पलने लगी.उसने उसे ‘पप्पी’ नाम दिया ममता और अजीत ने महीनों कोशिश की ..पुरजोर कोशिश की , उसके माता-पिता को खोजने की और आखिर मेहनत रंग लाई...उन्हें उस गाँव का पता मिल ही गया , जहाँ उसके माता-पिता रहते थे.उन्हें यह भी पता चला कि बहुत गरीब लोग हैं..मेहनत-मजदूरी कर पेट पालते हैं. जिस दिन पप्पी स्टेशन के पास मिली, उसके एक दिन पूर्व हादसा ये हुआ था कि दोनों पति-पत्नी अपनी इस दुधमुंही बच्ची के साथ बीती रात कमाने-खाने के लिए कोलकाता जाने ट्रेन के इन्तजार में स्टेशन पर सोये थे.एकाएक बच्ची कब और कैसे गायब हुई, वे जान ना सके.सुबह उन्होंने काफी खोजबीन की, लोगों से पूछताछ की, रेलवे पुलिस से मदद के लिए गिडगिडाया पर गरीब मजदूर की भला कौन सुनता ? दोनों रोते-बिलखते अपने जिगर के टुकड़े के बिना कमाने-खाने कोलकाता चले गए.

पता मिलते ही ममता और अजीत पप्पी को ले अविलम्ब गाँव पहुंचे पर वहां वे हताश हुए..दो दिन पूर्व ही वे कमाने-खाने किसी और शहर को रवाना हो गए थे.इस बार वे किसी को कुछ बताकर नहीं गए. दोनों वापस घर लौट आये पर उन्हें भरोसा था कि एक न एक दिन वे जरुर मिल जायेंगे. दिन बीतते गए ... बीतते गए..पूरा साल निकल गया पर कोई न मिला. पप्पी नीटू के साथ खूब घुलमिल गयी..ममता भी दोनों बच्चों के प्यार में रम गयी..अजीत भी लगभग सब कुछ भूल गया. तभी एक दिन एक ऐसा हादसा हुआ कि ममता पर वज्रपात – सा हो गया. अजीत भी परेशान हो गया. स्थानीय पुलिस-स्टेशन से सन्देश आया कि लापता बच्ची का पिता स्टेशन में मौजूद है... कृपया उसे लाकर इन्हें सौंप दें. ममता पप्पी के प्यार में इस कदर डूबी थी कि उससे बिछोह की सोचते ही दुखी हो गयी.बड़ी मुश्किल से दिल पर पत्थर रख फैसला किया कि पप्पी गैर की अमानत है..सौंपनी तो होगी ही.

ममता बहुत ही बुझे मन से अजीत के साथ थाने पहुंची तो एक बहुत ही गरीब, कृशकाय ग्रामीण को वहां बैठा पाया. उसने पप्पी की माँ के विषय में पूछा तो बताया कि छः महीने पहले बच्ची के बिछोह में चल बसी.अब वह निपट अकेला है ..और उसके पास अब कोई काम-धाम भी नहीं है..ममता यह सोच बहुत दुखी हुयी कि पप्पी को यह पालेगा कैसे..क्या खिलायेगा उसे..कैसे जियेगी ये बच्ची..क्या भविष्य होगा इसका...?

ममता हैरान थी कि कैसा बाप है ?ना उसने पप्पी को छुआ , ना ही पुचकारा उसे देख उसके चहरे पर कोई भाव भी न उभरा.वह हतप्रभ थी कि कैसे पलेगी बच्ची उसके पास ? उसने इन्स्पेक्टर को एक कोने में ले जाकर अपने मन की बात कही.

इन्स्पेक्टर ने ग्रामीण मजदूर से कहा- ‘ चैतू...तुम्हारी तो अब पत्नी भी नहीं रही ..और तुम्हारे पास कोई काम-धाम भी नहीं है ..तो भला इस बच्ची को पालोगे कैसे ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम्हारी बेटी इन्हीं के घर पले..बढे..और पढ़े..इन्हें इसे रखने-पालने में कोई ऐतराज नहीं है..’

ग्रामीण मजदूर चुप्पी साधे रहा. इधर ममता , अजीत और इन्स्पेक्टर उसकी खामोशी टूटने के इंतज़ार में थे. दो मिनट की चुप्पी के बाद वह फूटा- ‘ ठीक है साहब..ये चाहें, तो रख सकते हैं...पर..’

‘ पर क्या ? ‘ इन्स्पेक्टर चौंका.

‘ पर साहबजी..इसके एवज में मुझे इनसे एक लाख रुपये दिला दीजिये...’

ममता-अजीत यह सुन अवाक रह गए. इतने रुपये देने की उनकी कूवत न थी. पप्पी को थाने में छोड़ रोते-बिलखते ममता घर वापस आ गयी...पप्पी की रोने की आवाज अब भी कानों में गूँज रही थी ’ मम्मी..मम्मी. मम्मी...’


(यह कहानी एक सत्य घटना है जो पिछले दिनों अखबार में छपी थी.पात्रों के नाम भर काल्पनिक है)