हॉरर फिल्मों की वापसी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 सितम्बर 2018
जितेन्द्र की सुपुत्री एकता कपूर ने टेलीविजन पर 'सास भी कभी बहू थी' नामक सोप ऑपेरा के साथ मनोरंजन जगत में लिजलिजी भावुकता का संचार करके महारानी का पद प्राप्त किया था। भारत के परिवारों के जीवन में उन्होंने एक क्रांति कर दी थी। उनके सीरियल अफीम के नशे की तरह अवाम को गुलशन नंदाई भावुकता के भंवर में उलझा गए। एकता कपूर के सीरियल सभी भारतीय भाषाओं में डब करके पूरे देश में दिखाए गए। उनके सीरियल 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' की केंद्रीय भूमिका स्मृति ईरानी ने निभाई थी और इसी लोकप्रियता को भुनाते हुए वे केंद्र सरकार में मंत्री पद पर विराजमान हो गईं। कुछ समय पूर्व ही विवाद में घिर जाने के बाद उनसे सूचना मंत्रालय का कार्यभार वापस लिया गया और कपड़ा मंत्रालय का अधिभार दिया गया है। राजनीति में इसे टीआरपी खो देना कहा जाता है। टीआरपी टेलीविजन संसार की लोकप्रियता का मानदंड माना जाता है। सभी मंत्री पद समान नहीं होते गोयाकि फिल्मों की केंद्रीय भूमिका और चरित्र भूमिका का अंतर यहां भी लागू होता है।
बहरहाल, एकता कपूर आजकल रामसे बंधुआें की बनाई हुई हॉरर फिल्में देख रही हैं, क्योंकि वे स्वंय हॉरर फिल्म बनाना चाहती हैं। ज्ञातव्य है कि एक दौर में रामसे बंधुओं ने सफल हॉरर फिल्में गढ़ी थीं। रामसे सात भाई थे जो फिल्म निर्माण के अलग-अलग पक्षों में माहिर थे। उन्होंने फिल्म निर्माण को पारिवारिक व्यवसाय की तरह किया और अपने कर्म को ही अपना धर्म बना लिया। एकता कपूर उनकी इस परम्परा को पुन: प्रारंभ करना चाहती हैं। सच तो यह है कि हॉरर व हास्य के मिश्रण की 'स्त्री' की विराट सफलता से प्रेरित होकर ही वे इस ओर अग्रसर हो रही हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि इंदौर के प्रतिष्ठित वैद्य राम नारायण शास्त्री के परिवार के एक सदस्य महेश शास्त्री के पास हॉरर गल्प का विपुल भंडार है और इसे किसी वाचनालय में रखा जाना चािहए।
खाकसार फिल्मकार रमेश बहल के साथ किशोर कुमार को मिलने गया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हरफनमौला किशोर कुमार के पास हॉरर फिल्मों के ढेरों कैसेट थे और उन्होंने एक कक्ष में उन्हें संग्रहित किया था। उस कक्ष में लेटकर वे ऊंचाई पर रखे गए टेलीविजन सेट पर हॉरर फिल्में देखना पसंद करते थे। हॉरर के दृश्य जितने भयावह होते जाते हैं उतने उनके ठहाके बढ़ते जाते थे। उन्हें सबसे अधिक आनंद हॉरर फिल्में देखने में ही आता था। यह विचारणीय है कि एक तरफ जो शास्त्री परिवार पीढ़ियाें से आर्युवेद के प्रति समर्पित रहा, उसके एक सदस्य महेश शास्त्री की रुचि हॉरर पढ़ने और संकलित करने में रही है। दूसरी तरफ हरफनमौला किशोर कुमार का भी यही जुनून रहा है। ज्ञातव्य है कि एनए अंसारी नामक फिल्मकार की निर्माण संस्था का नाम बुंदेलखंड था और वे भी हॉरर फिल्में बनाते थे।
हॉलीवुड में हॉरर फिल्में कथा फिल्म निर्माण के पहले दशक से ही बनना प्रारंभ हो गई थी और विज्ञान फंतासी के साथ उन्हें जोड़ दिया गया था। प्रारंभिक दशकाें में इन फिल्मों की संख्या कम थी परंतु टेक्नोलॉजी के विकास के साथ इनकी संख्या बढ़ती ही गई। पीटर निकाेलस नामक शोधकर्ता ने अमेरिकन हॉरर फिल्म पर एक ग्रन्थ लिखा है, जिसे मल्टी मीडिया प्रकाशन ने जारी किया है। गौरतलब यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य तर्कप्रधान होता गया और प्रकृति के रहस्यों को उजागर करता गया। वैसे-वैसे हॉरर किताबों और फिल्मों के प्रति आवाम का रुझान बढ़ता ही गया। क्या तर्क केंद्रित विचार शैली के प्रति विरोध अभिव्यक करने के लिए हॉरर में अवाम की रुचि बढ़ती है। क्या यह अभिव्यक्त किया जा रहा है कि तर्क भी हमें एक अंधी गली में ले जाता है और प्रकृति के रहस्य उजागर हो जाने से जीवन में आनंद कम हो जाता है? क्या यह अज्ञान के प्रति एक रोमांटिक रुझान है?
हॉरर फिल्मों में भय के भाव का विरेचन हो जाता है। वर्तमान विश्व नेतृत्व ने जीवन को हॉरर फिल्म की तरह बना दिया है। मॉब लिंचिंग भी इसी का हिस्सा है। प्राय: हॉरर फिल्मों में एक हिंसक भयावह प्राणी का निर्माण कर दिया जाता है आैर उसके विकराल होते हुए प्रभाव को रोकने के लिए उसे भस्मासुर शैली में समाप्त कर दिया जाता है। भस्मासुर का निर्माण पूजा सामग्री को जुटाने के लिए किया गया परंतु जब उनसे नकारात्मक स्वरूप ग्रहण किया तब उसका विनाश किया गया। शक्ति से मदांध भस्मासुर नियंत्रण के बाहर हो जाता है तो उसका विनाश किया जाता है। वर्तमान नेतृत्व भी इसी तरह नष्ट हो सकता है।
अमेरिका में पहली हॉरर फिल्म 1915 में बनी। उसका नाम था 'गोलेम'। यह भस्मासुर की तरह की कथा थी। इसका आधार एक यहूदी मिथ था कि 'गोलेम' के पास आत्मा नहीं है। आत्मा विहीन शरीर की कल्पना ही भयावह है। वेजेनर नामक अभिनेता और फिल्मकार ने यह फिल्म बनाई थी। फिल्म निर्माण में एक गोथिक परम्परा रही है। गोलेम नामक दैत्य को एक आर्यन कन्या से प्रेम हो जाता है और इसी प्रेम कथा में उसके विनाश का बीज रोपित किया गया है। यह प्रेम भी अजब-गजब है जो मानव, दानव और देवताओं सभी को हो जाता है। 'कैबिनेट ऑफ डॉक्टर कैलिगारी' इस श्रेणी की फिल्मों में मील का पत्थर मानी जाती है, जो 1922 में बनाई गई थी। 'फ्रेंकस्टीन', 'डॉ. जैकाल एंड मिस्टर हाइड' भी महत्वपूर्ण रही है। 'डॉ. जैकाल एंड मिस्टर हाइड' इस मायने में दार्शनिक फिल्म मानी जा सकती है कि कोई भी मनुष्य हमेशा अच्छा या हमेशा बुरा नहीं होता। रात और दिन की तरह यह मनुष्य स्वभाव है। रावण दस विद्याओं का जानकार था, उसके दस सिर इस बात के प्रतीक हैं। हर रावण कथा में एक विभीषण होता है जो उसके विनाश का कारण बनता है। हॉरर और विज्ञान फंतासी फिल्मों में दार्शनिकता का समावेश उन्हें नैतिक कथाओं का स्पर्श प्रदान करती हैं।