हॉलैंड को नीदरलैंड भी कहते हैं - हॉलैंड / संतोष श्रीवास्तव
हॉलैंड की सीमा में प्रवेश करते ही रंग बिरंगे ट्यूलिप के फूलों से भरी हवा ने मुझे छुआ और मैं सिहर उठी। हॉलैंड कई कारणों से मेरे जेहन में अटका था। आईफा अवार्ड, विश्व हिन्दी सम्मेलन और यहाँ निवास करने वाले काफ़ी संख्या में भारतीय। उन्होंने भारतीय संस्कृति को यहाँ जीवित रखा है। उनके घरों की पहचान गेट पर ही बने हनुमानजी के छोटे से मंदिर से होती है और मंदिर पर लहराती नारंगी पताका से। भारतीय त्योहारों, उत्सवों को वे मिल जुलकर बड़े उत्साह से मनाते हैं। हॉलैंडवासी भारतीय परम्पराओं, भोजन और वेशभूषा को बहुत पसंद करते हैं। भारतीय फ़िल्मी गीत यहाँ युवा पीढ़ी की ख़ास पसंद है और इसे वे पब्लिक प्लेस में गाते गुनगुनाते रहते हैं।
हॉलैंड नीदरलैंड दोनों नाम वैसे ही हैं जैसे हमारा भारत और हिन्दुस्तान। हॉलैंड की पहचान 'कंट्री ऑफ बिलो द-सी लेवल' यानी समुद्र सतह से नीचे बसा देश। 15750 स्क्वेयर माइल एरिया में बसे इस देश की जनसंख्या मात्र 15 मिलियन है। भाषा डच है और करेंसी यूरो। पूरे यूरोप में कहीं भी अमेरिकन डॉलर नहीं चलते। इंग्लैंड, स्कॉटलैंड में पौंड चलते हैं। 45भारतीयरुपियोंकाएक यूरो। 80रुपियोंका एक पौंड। हमारे साथी पर्यटक केले खरीदते और हिसाब लगाते एक यूरो का एक केला यानी 45 रुपियों का एक केला। बाप रे, फिर केले को ऐसे एहतियात से खाते जैसे राजभोग खारहे हों। हनीमून कपल तो ऑस्ट्रिया के बाद हमारे साथ था ही नहीं। अब जो पर्यटक बचे थे उनमें अनिल ही चुहलबाज़ था। अजय ने बताया–
"हॉलैंड की राजधानी एम्स्टरडम है लेकिन नाम के लिए। सारा सरकारी काम हेग में होता है जो हॉलैंड का एक खूबसूरत शहर है। हॉलैंड रंग बिरंगे ट्यूलिप के फूलों के लिए प्रसिद्ध है। विश्व भर में ट्यूलिप के फूल निर्यात किए जाते हैं। यहाँ क्यूकेनहॉफ गार्डन में यदि हम 15 मई के पहले आते तो ट्यूलिप के फूलों को देख पाते। 80 एकड़ से ज़्यादा वाले इस बाग़ में 70 लाख से अधिक ट्यूलिप, डेफोडिल्स, नारकीसी जैसे सुन्दर फूलों की खेती होती है।" 15 मई के बाद यह बाग़ पर्यटकों के लिए बंद कर दिया जाता है और सारे फूल तोड़कर निर्यात कर दिये जाते हैं। यही वह बगीचा है जहाँ अमिताभ बच्चन और रेखा पर वह गीत फ़िल्माया गया था–" देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए, लेकिनअफसोस बगीचे के गेट पर 'प्रवेश बंद' का बोर्ड लगा था। ट्यूलिप के अलावा हॉलैंड चीज़ और डेरी प्रॉडक्ट्स का भी निर्यात करता है। यहाँ का राष्ट्रीय रंग नारंगी है। पवन चक्की को हॉलैंड का प्रतीक मानते हैं। पहले इस देश में दस हज़ार पवन चक्कियाँ थीं। लेकिन आधुनिक तकनीक के कारण अब एक हज़ार ही रह गई हैं। समुद्र सतह से नीचे होने के कारण यहाँ हवाएँ बहुत तेज चलती हैं। बर्गे नाम की नदी बहती है जो काफ़ी चौड़ी है। जो समुद्र यहाँ बहता है उसका नाम है ब्लैक सी। पुल ऐसे बने हैं जो यदि बड़े क्रूज़ (जहाज) आते हैं तो पूरे के पूरे पुल बीच में से दो भागों में बँटकर क्रूज़ को रास्ता देते हैं और क्रूज़ के निकल जाने पर वापिस सड़क बन जाते हैं। जिन पर से गाड़ियाँगुज़रने लगती हैं। अद्भुतपुल हैं यहाँ के। ऐसे कई पुल हैं ब्लैक-सी पर। एम्स्टरडममें बहुत अधिक नहरें बनाई गई हैं। इसलिए इसे 'सिटी ऑफ कनाल' भी कहते हैं। बड़ी-बड़ी नहरों, सागर के जल पर हाउस बोट... अपार जलराशि से छलकता हॉलैंड... इसकेसौन्दर्य के क्या कहने। हाउस बोट में होटल भी हैं जहाँ विदेशी पर्यटक अपनी छुट्टियाँ बिताते हैं और आवास भी जिसमें हॉलैंडवासी रहते हैं फूलों से भरी बाल्कनी वाले हाउसबोट सागर लहरों पर कुछ ऐसे दिखते हैं जैसे रंग बिरंगे पंखों वाली चिड़ियों का झुंड।
हम एम्स्टरडम शहर से गुज़र रहे थे। देख रही हूँ छोटे-छोटे दरवाज़ों वाले रंगबिरंगे खूबसूरत मकान जिनकी खिड़कियाँ बड़ी-बड़ी हैं। खिड़कियों पर बड़े-बड़े हुक लगे हैं। हुक में रस्सी बाँधकर खिड़कियों के रास्ते घरों में सामान पहुँचाया जाता है। सामान दरवाजे से नहीं जाता। यह बड़ा आश्चर्य जनक लगा मुझे। फिर भी हॉलैंड रंगीन फूलों, खिलखिलाती वादियों, खिलौने जैसे खूबसूरत मकानों, पैंग्विन जैसी ईंटों की टाइल्स वाली पवन चक्कियोंके लिए मेरी यादों में अरसे तक ताज़ा रहेगा। ठंडबढ़ने लगी थी। कोच ने हमें एक जगह उतार दिया। वहाँ से हम डिनर के लिए पैदल चल पड़े। इतनाच्छा लग रहा था चलना... सुंदरसड़कें... भीड़भाड़ न के बराबर... एक नहर पर बने पुल से दो तीन सड़कें निकलती हैं जहाँ लाइन से सड़कों के दोनों ओर रेस्टॉरेंट बने हैं। फुटपाथ पर ही लगी टेबल कुर्सियों पर बैठे तरह-तरह का खाना खाते, ड्रिंक करते जोड़े... सड़क के किनारे गमलों में संतरे, अनार के बोन्साई पेड़... साईकलों पर हँसती मुस्कुराती युवा पीढ़ी... एक शांत लेकिन रंगीन माहौल। हम लोगों ने एक भारतीय रेस्तरां में खाना खाया। दरवाज़े पर स्वागत करती दो औरतें जो साड़ी पहने थीं को देखकर मनखुश हो गया। वे विदाई के समय हाथ जोड़कर नमस्ते भी कर रही थीं।
रात हमने होटल कैम्पेनिल में बिताई। इसी होटल में कल रात भी रुकना है इसलिए पैकिंग वगैरह की झंझट से मुक्त हो मैं आराम से बिस्तर पर जाकर लेट गई। थकान के बावजूद देर तक नींद नहीं आई।
31 मई... हमारी यात्रा का कुल एक सप्ताह बचा है। सुबह नाश्ते के बाद हम एम्स्टरडम सिटी टूर पर निकल पड़े। रास्ते में अजयजीने बताया कि 'हॉलैंड में अभी भी राजशाही ही है। रानी क्वीन वेक्ट्रिट वर्तमान रानी हैं। पहले हम मदुरोदम जाएँगे फिर रानी का महल देखेंगे।' मदुरोदम को मदुरौडेम भी कहते हैं। 2 जुलाई 1952 में मदुरोदम का निर्माण हुआ। जॉर्ज मदुरौ नामक युवक 1945 के वर्ल्ड वॉर में कुल 21 वर्ष की उम्र में मारा गया। जॉर्ज मदुरौ लॉ पास था और बहुत ही प्रतिभाषाली युवक था। वह अपने अमीर माँ बाप की इकलौती संतान था जो कि कराकरौ शहर में रहते थे। माता पिता ने अपने बेटे की स्मृति में ही यह डैम बनवाया। डैम के प्रवेश शुल्क से जो आय होती है वह गरीब विद्यार्थियों के फंड में जाती है और डच विद्यार्थियों के सेनेटोरियम में भी मदद के लिए दी जाती है। मदुरौदम मिनिएचर सिटी के रूप में हॉलैंड की झाँकी प्रस्तुत करता है। जब मैंने मदुरौ डैम में प्रवेश किया तो लगा अचानक मेरी ऊँचाई बढ़ गई है और हॉलैंड छोटा हो गया है। छोटे-छोटे महल घर, इमारतें, एयरपोर्ट, बंदरगाह, पवन चक्की के मॉडल एक जीवंत शहर दिख रहे थे। सबसे पहला मॉडल जॉर्ज मदुरौ की जन्म भूमि कराकरौ का था। फिर सेंट जॉन्सबसीलिका, केथेड्रलटॉवर–सिटी हॉल, डच म्यूज़ियम ऑफ टैक्सटाइल्स, मिडेलबर्ग, डेल्फलैंड हाउस डच पार्लियामेंट बिल्डिंग, लीडेन यूनिवर्सिटी जहाँ से जॉर्ज मदुरौ ने लॉ पास किया था। टाउन हॉल, ऐतिहासिक, म्यूज़ियम और भी तमाम इमारतें, सड़कें, बगीचे, जानवर, औरत, मर्द, बच्चे... पूरा हॉलैंड देखकर मैं दंग रह गई। जहाँ समुद्र बनाया गया था। मेरे देखते ही देखते उस पर बना पुल ऊपर उठ गया और नीचे से क्रूज़ गुज़र गया। पुल नीचे लेवल पर आ गया और एक मिनिट में उस पर से सीटी बजाती ट्रेन गुज़र गई। जो पेड़ थे वे जापानी बोन्साई कला के सचमुच के पेड़ थे। वाकई में पूरी मिनिएचर सिटी माँ बाप के प्रेम का अद्भुत नमूना थी। ब्रिज चढ़कर ऊपर शॉपिंग के लिए सोविनियर शॉप, कॉफ़ी आइस्क्रीम वगैरह की शॉप थी। ठंड के कारण धूप अच्छी लग रही थी। मैं शॉप के बाहर पड़े बेंच पर बैठी रही।
थोड़ी देर बाद हम स्वेनिंगन की ओर बढ़ रहे थे जहाँ क्रूर पैलेस है जो अब होटल में कन्वर्ट कर दिया गया है। पैलेस बहुत ही शानदार है। नीले काँच जड़े हैं दरवाज़ों खिड़कियों पर और पीले और ब्राउन रंगों का अद्भुत मेल है। पीछे सागर तट है। हमने होटल के बाजू में इंडियन पैलेस रेस्तरां में लंच लिया और सागर तट पर आ गये। दूर-दूर तक फैली सफेद बालू... बालू पर ईजी चेयर पर लेटे नंगे अधनंगे स्त्री, पुरुष... स्त्रियाँ केवल कमर ढके थीं। देखकर आदिम सभ्यता याद आ गई। वह युग जब मनुष्य कपड़े बनाना नहीं जानता था तब ऐसे ही रहता होगा। बिल्कुल निर्वस्त्र... कोई अपने शरीर पर लोशन लगा रहा था तो कोई अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड के शरीर पर सब अपने में ही डूबे थे। उन्हें बाहरी दुनिया का होश नहीं था। कोई फ्रिज़बी खेल रहा था तो कोई बॉलीबॉल... खेल के दौरान एक दूसरे को बाहों में भरते हुए चूमना तो आम दृश्य बन गया था। कुछ ही पलों में मेरा मन ऊब गया। सामने सागर की ऊँची-ऊँची लहरों पर स्पीड बोट चल रही थी। मुझे एक लड़के और लड़की का खेल बहुत अच्छा लगा। लड़के के हाथ में कैमरा था। लड़की आइस्क्रीम खा रही थी। लड़का उसके हाथ से आइस्क्रीम ले उसकी नाक पर लगाकर फोटो खींच रहा था। खिलखिलाती हुई लड़की बड़ी प्यारी लगी।
बस पार्किंग की जगह न होने की वज़ह से हमें हॉलैंड कसीनो के सामने बैठकर बस का इंतज़ार करना पड़ा, बस आकर केवल हमारे चढ़ने तक रुकी। आगे बढ़ने पर शीपॉल एयरपोर्ट आया। छोटा सा। रनवे के नीचे से हमारीकोच गुज़री। वहीँ ढेरों कारें खड़ी थीं। हॉलैंड में एक शहर से दूसरे शहर नौकरी, बिज़नेस के सिलसिले में लोग हर दिन अप डाउन करते हैं हवाई जहाज़ से और फिर अपनी-अपनी कारों से वे घर चले जाते हैं। ... हम एम्स्टनबिन सिटी में आ गये हैं। यहाँ लकड़ी के जूते बनाने की रैटरमैन्सज़ फैक्ट्री है। प्रवेश द्वार पर ही पीले रंग के लकड़ी के बड़े-बड़े जूते रखे हैं। फैक्ट्री में कारीगर ने पॉपुलर पेड़ की लकड़ी से जूता बनाकर दिखाया। शादी के समय पहनने वाले जूते अलग क़िस्म के होते हैं। दीवारों पर, शो रैक पर जूते ही जूते रखे थे। इसकेअलावा लकड़ी से बने ट्यूलिप के फूल, की चैन, गुल्लक, सजावटी सामान आदि भी लकड़ी से ही बने रखे थे लेकिन सब कुछ बहुत महँगा था।
वहाँ से हम 150 किलोमीटर लम्बी नहर के तट पर क्रूज़ की सैर के लिए आये। यह नहर आम्स्टर्न नदी से बनी है। क्रूज़ से एम्स्टरडैम शहर की चार सौ साल पुरानी इमारतें चायनीज़ स्थापत्य का रेस्तरां और ऐतिहासिक इमारतें, चर्च, कैथेड्रल गुज़रे हुए वक़्त की कहानी कह रहे थे। नदी पर कश्मीर के हाउसबोट की तरह लोगों के रहने के लकड़ी के खूबसूरत मकान थे। एक डच दम्पत्ति अपने हाउस बोट की बाल्कनी पर धूप का आनंद ले रहे थे। एक जगह आकर नदी और नगर आपस में मिल जाते हैं। लहरें बड़ी-बड़ी उठ गिर रही थीं। दूर घास के ढलानों पर ट्यूलिप के लाल सफेद फूल खिले थे। लौटेतो फिर कल वाली जगह पर ही डिनर के लिए गये। मैं सड़क पर धीरे-धीरे चल रही थी कि अचानक दो डच युवक मेरे सामने आकर रुक गये। उनमें से एक ने अंग्रेज़ी में मुझसे पूछा–"आर यू इंडियन" मेरे हाँ कहने पर वह बोला–"आई लव योर ड्रेस, वेरी ब्यूटीफुल ड्रेस।" उनके चले जाने पर मेरे साथ चल रही जींस टी शर्ट पहने सरदार महिला ने शायद अपनी शर्म मिटाने के लिहाज़ से कहा कि "ये लोग इंडियन ड्रेस बहुत पसंद करते हैं।"
और हम? पश्चिम की ओर भाग रहे हैं अपनी संस्कृति को भूलकर-मैंने मन में सोचा। पाश्चात्यअंधानुकरण की दौड़ में क्या हम अपनी संस्कृति की पहचान नहीं खो रहे?
सुबह भी वही आलम था। आज चूँकि हॉलैंड में हमाराखिरी दिन था इसलिए सामान पैक कर सभी नाश्ते के लिए धीरे-धीरे डाइनिंग रूम में इकट्ठा हो रहे थे। मैंथोड़ा पहले आ गई। होटल के चारों ओर का चक्कर लगाकर मैं होटल के लाउंज में पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गई। मोटे गदबदे हँसमुख वेटर ने दौड़कर मेरे लिए ताज़ा मोसम्बी जूस निकाला और मुझे देते हुए बोला–"लवली ड्रेस।" अरे ये क्या हो रहा है। हॉलैंड में मेरे पहनावे की इतनी प्रशंसा क्यों? मैंने ग़ौर से अपने पूरी बाँह के सिल्क के क्रीम कलर पर हरी बूटियों वाले चूड़ीदार कुरते को देखा। कुरता घेरदार था और कमर पर से तंग। वह मेरी बिंदी की भी तारीफ़ करने लगा। फिर एक ग्लास अनन्नास का जूस ले आया। मैंने मुस्कुराकर अपनी इस स्पेशल आवभगत पर 'थैंक्स' कहते हुए जूस पीने से मना कर दिया। वह उदास हो गया। जाने क्यों उसकी उदासी मुझे अच्छी नहीं लगी।
आज की हमारी पहली मंज़िल थी डायमंड फैक्ट्री, गाइड ने कोच में बताया था कि वह डायमंड की कटिंग, फिनिशिंग आदि का डिमांस्ट्रेशन भी दिखायेगा पर वहाँ हमें केवल हीरे देखने मिले और एक सिंगापुर की लड़कीका लम्बा भाषण जो डायमंड फैक्ट्री में ही नौकरी करती थी और अपने हाव भाव से ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करती थी। फैक्ट्री का शो रूम दो मंज़िला था जहाँ छोटे बड़े सब प्रकार के हीरे, हीरा जड़ी घड़ियाँ आदि थीं। हमारे ग्रुप के लोग खरीद फरोख्त में लगे थे पर मेरे लिए यह काम बड़ा उबाऊ था। लिहाज़ा उतना समय काटना मुश्किल हो गया।
लंच के बाद हम सीधे इजमुद्दीन बंदरगाह आ गये। स्कॉटलैंड के लिए हमें यहीं से क्रूज़ लेना था और एयरपोर्ट जैसी ही औपचारिक्ताओंसे गुज़ारना था। इमीग्रेशन काउंटर पर बैठी डच महिला ने मेरे पासपोर्ट पर राइटर-जर्नलिस्ट लिखा देख मुझे ग़ौर से देखा–"आर यू ए राइटर?"
मैंने हाँ में सिर हिलाया। फिर वह देर तक पासपोर्ट के पेज पर लगी मेरी तस्वीर और मेरे चेहरे को देखते रही। उसे लगा उसने अधिक समय ले लिया है, झेंप मिटाते हुए बोली–"ब्यूटीफुल स्नैप।"
धन्यवाद कहकर और पासपोर्ट लेकर मैंने सिक्यूरिटी गेट से अंदर प्रवेश किया।