होगी मनचाही बारिश / मनोहर चमोली 'मनु'
महान वैज्ञानिक साइनाथ ने आत्महत्या की। सब इस समाचार से हतप्रभ थे। आज की सुबह टेलीफोन हो या मोबाइल। टी.वी-चैनल में ही नहीं बस-रेलगाड़ी में यात्रा करने वालों के मध्य भी यही समाचार बातचीत का केन्द्र बिंदु था। हर किसी के माथे पर शिकन थी। आम आदमी भी दूसरे से यही पूछ रहा था-”ये साइनाथ मुखर्जी कौन थे?” हॉकर भी और दिनों की अपेक्षा आज चिल्लाते हुए अखबार बेच रहे थे। एक ही खबर की पुकार लग रही थी-”आज की ताजा खबर। महान वैज्ञानिक साइनाथ ने आत्महत्या की।”
विदेश संचार विभाग के ऑपरेटरों को बहुत देर में समझ आया कि आखिर क्यों आज की सुबह दुनिया भर से आ-जा रही अधिकतर कॉल अमेरिका, भारत और उसके पड़ोसी देश पर ही केंद्रित हैं? घनघनाते फोन और मोबाइल के साथ-साथ आपसी चर्चा बेहद तीव्र थीं। धीरे-धीरे हर कोई जान गया कि भारत के महान अंतरिक्ष विशेषज्ञ और वैज्ञानिक प्रो. साइनाथ मुखर्जी ने आत्महत्या कर ली।
विज्ञान, अनुसंधान, अंतरिक्ष और प्रकृति के रहस्यों पर नजर रखने वाले साइनाथ मुखर्जी को साइन्टिस्ट साईनाथ की जगह ‘एस.एस.’ के नाम से जानते थे। वे दुनिया के नामचीन वैज्ञानिक थे। अमेरिका अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान ने उन्हें तेजी से बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष निमंत्रण भेजा। एक साल के अनुबंध पर वे अमेरिका रवाना हुए थे। आम आदमी ने उन्हें तब जाना, जब उन्होंने दावा किया था कि वे भारत लौटकर अपने एक महत्वपूर्ण अनुसंधान का खुलासा ही नहीं प्रदर्शन भी करेंगे। अमेरिका में रहते ही उन्होंने एक वक्तव्य दिया था-”दुनिया वालों। अब राहत की सांस लीजिए। अब आप मनचाही बारिश पाएंगे। यही नहीं। जहां अत्यधिक बारिश हो रही है, वहां बारिश रोकी जा सकेगी। बस थोड़ा सा इंतजार कीजिए। पहला प्रयोग में अपनी सरजमीं में करना चाहता हूं। मैं शीघ्र ही अपने हिंदुस्तान लौट रहा हूं।”
बस फिर क्या था। आए दिन ‘एस.एस.’ दुनिया भर के टी.वी. चैनलों में दिखाई पड़ते। एक दिन उन्होंने फिर कहा-”बस अब में आगामी तीस दिनों के बीच ही भारत जाने वाला हूं। मेरे भारत पहंुचते ही समूची दुनिया मनचाही बारिश देखेगी। यही नहीं मूसलाधार बारिश को रोका जाना भी देखा जा सकेगा।” एक बार फिर एस.एस. दुनिया भर के अग्रणी अखबारों और चैनलों में सुर्खियों पर थे।
एक पखवाड़ा ही बीता था कि अचानक सब कुछ बदल गया। ‘एस.एस.’ रहस्मय ढंग से गायब हो गए। आखिरी बार वे अमेरिका में उन्हें दी गई व्यक्तिगत प्रयोगशाला में प्रवेश करते देखे गए थे। अमेरिका, भारत सहित कई देश इस बात से चिंतित थे कि आखिर एस.एस. गए कहां! अटकलों का बाजार गर्म होना स्वाभाविक ही था। अपहरण, हत्या जैसी बातें भी उठीं। लेकिन किसी ने सोचा भी न था कि वे आत्महत्या करेंगे। अमेरिका मेहमान वैज्ञानिक की मौत से दुखी था और भारत इस बात से कि यदि एस.एस. को अमेरिका न भेजा जाता तो ये नौबत ही न आती। ये रहस्मय ही बना रहा कि आखिर ‘एस.एस.’ ने आत्महत्या क्यों की। नामचीन इंटेलिजेंस भी थक गई लेकिन उनके अचानक बारिश करवाने और अचानक बारिश रोकने के फार्मूले का भी कोई सुराग नहीं मिल सका।
महीने भर तो हर तरफ ‘एस.एस.’ की मौत पर अटकलें लगती रहीं। फिर धीरे-धीरे बातचीत-चर्चा और अटकलों का बाजार मंद पड़ता चला गया। फिर अचानक जोबाश उर्र कतई का मुठभेड़ में मारे जाने की घटना ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। दुनिया के लिए सर दर्द बन चुका आतंकवादी जोबाश उर्र कतई को विश्व गुप्तचर सेवा और विश्व स्तरीय टॉस्क फोर्स ने एशिया के बीहड़ जंगल में जमींदोज कर दिया। एक बार फिर सारी दुनिया का ध्यान एशियाई देशों की ओर चला आया। भारत सरकार से विश्व सुरक्षा नीति के लिए सहयोग मांगा गया। अमेरिका में आयोजित विश्व शांति सुरक्षा का एक मसौदा भारत की अगुवाई में तैयार करने की सहमति पर आम राय बन चुकी थी। भारत की अगुवाई से इंकार करने को औपचारिक रूप से आपत्तिस्वरूप हाथ खड़ा करने की बात जब सदन में की गई तो भारत के ही पड़ोसी देश के प्रतिनिधि प्रमुख ने कहा-”मेरे मुल्क को घोर आपत्ति है। भारत को छोड़ हम किसी भी देश के साथ खड़े हैं।” यह सुनते ही सदन आश्चर्य में पड़ गया। कोई कुछ समझ ही नहीं पाया। भारत ने स्थिति को भांप लिया। भारत ने भी अगुवाई करने से इंकार करते हुए कहा-”एक भी देश विरोध करता है तो हम समझते हैं कि हमारी रीति-नीति में कुछ और किया जाना शेष है। हमारी अगुवाई को अस्वीकार करने वाले हमारे पड़ोसी देश को ही इस मसौदे के निर्माण करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। हम हर संभव सहयोग करने का वचन देते हैं।” भारत की उदारता और निष्ठा के लिए सदन में तालियों की गड़गड़ाहट देर तलक गंूजती रही। वहीं पड़ोसी देश के इस बचकाने से रवैये को देख सभी देश हतप्रभ रह गए।
समय बीतता गया। दुनिया भर में आतंकवादी हमलों की संख्या बढ़ती चली गई। दुनिया के कई देश अचानक अतार्किक बयानबाजी करने लगे। भारत के कई पड़ोसी देश सीमाओं पर अवांछित गतिविधियों में शामिल होने लगे। भारत की सुरक्षा जांच ऐजेंसी सहित सेनाओं ने भारत सरकार को संभावित घटनाओं-परिणामों से अवगत कराया। अति आपातकालीन बैठक में निर्णय लिया गया कि पड़ोसी देशों के अचानक उग्र होने और पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव के कारणों का गोपनीय ढंग से पता लगाया जाए। ‘एस.एस.’ के सहयोगी रहे सहायक साईन्टिस्ट कृष्ण कुमार कपिल की सहायता ली गई। जिन्हें गोपनीय कोड दिया गया ‘केतीन’। ‘केतीन’ ने आपातकालीन बैठक में कहा-”अब तक मैं चुप था। अब समय आ गया कि मैं संशय से परदा उठा ही दूं। एस.एस. जीवित हैं। मुझे लगता है कि पड़ोसी मुल्क ने उनका अपहरण किया है। ये वही मुल्क है जिसने भारत की अगुवाई में मसौदे के बनाए जाने में आपत्ति की थी। आज तक उसने मसौदे का एक अक्षर भी तैयार नहीं किया। अपहरण का कारण उनकी बादलों को लाने और हटाने वाली खोज हो सकती है। मैं खुद सोच रहा था कि आखिर एस.एस. को कैसे छुड़ाया जाए। आप सभी के सहयोग से ही ये संभव है। मैंने आवश्यक तैयारी कर ली है। एस.एस. ने अमेरिका जाते हुए मुझे एक ऑडियो दिया था। उन्होंने कहा था कि यदि मैं साल के अंत तक नहीं लौटा और संवाद न कर पाया तो इस ऑडियों को सुनना। आत्महत्या की खबर सुनकर मैंने सबसे पहले इसे सुना। आप सब भी सुनिये।”
आपातकालीन बैठक में भारत की पहली पंक्ति के राजनेता सहित कई अति विशिष्ट सुरक्षा-सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे। ‘केतीन’ ने कहा-”जिस दिन एस.एस. की मौत होगी, उस दिन मेरी कलाई में बंधी घड़ी की टिक-टिक थम जाएगी। एस.एस. ने इस घड़ी को अपनी सांसों के साथ जोड़कर इसका रिमोट मुझे ही दिया हुआ है। या तो मैं रिमोट की सहायता से उनकी जान ले सकता हूं या वे कैसी भी मौत मारे जाएंगे तो ये घड़ी काम करना बंद कर देगी। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि यदि कोई देश जबरन उनसे सूचना-तकनीक या उनकी खोज के संबंध में जबरदस्ती करेगा तो ये घड़ी असामान्य हो जाएगी और दोनों सुईंया बारह बजे पर जाकर टिक जाएगी। यह मेरे लिए संकेत होगा कि मैं रिमोट से एस.एस. की जान ले लूं ताकि कोई भी उनसे बादल हटाने और लाने की तकनीक हासिल न कर सके। सो मुझे विश्वास है कि वो अभी जीवित हैं।”
आपातकालीन बैठक में मौजूद सभी के चेहरे खिल उठे। बैठक की अध्यक्षता कर रहे भारत के सर्वोच्च नागरिक ने कहा-”केतीन आपकी योजना क्या है? क्या हमें बताएंगे?”
‘केतीन’ ने उठकर कहा,”हां महामहिम। रिमोट से संचालित ये कृत्रिम हवा का अंश हम पड़ोसी मुल्क की ओर भेजेंगे। इस कृत्रिम हवा को ‘एर’ नाम दिया गया है। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इसे मेरे अलावा एस.एस. ही महसूस कर और देख पाएंगे। आपकी आज्ञा पाते ही इसे रिमोट के सहारे छोड़ जाएगा, वहीं एस.एस. अपनी लंबी-लंबी सांस लेंगे और ये हवा यानि ‘एर’ उसी दिशा की ओर अपना रास्ता तय कर लेगी।”
सुरक्षा जांच एजेंसी के प्रमुख खुद को रोक नहीं पाए। कहने लगे-”बस! अब कुछ मत कहिए। मुझे ही नहीं यहां मौजूद एक एक महानुभाव को भले ही आपकी बातें किसी किस्सा-कहानी सी ही लग रही है। पर है अद्भुत! विज्ञान की जय हो। हम सभी एस.एस. के लौटने तक आपका इंतजार करेंगे। महामहिम आपको पहले ही आज्ञा दे चुके है कि देश हित में यह उच्च स्तरीय समिति सब कुछ करने का अधिकार पा चुकी है। आप अपनी प्रयोगशाला में जाइए और तत्काल एस.एस.का पता लगाइए और यह भी पता लगवाइए कि आखिर ऐसे कौन से कारण है कि पिद्दी भर के पड़ोसी देश हमें आंख दिखाने का दुस्साहस क्यों कर रहे हैं?” आपातकालीन बैठक समाप्त हुई और ‘केतीन’ अपनी प्रयोगशाला में लौट आए।
आपातकालीन बैठक के समाप्त हुए अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता कि ‘केतीन’ के आग्रह पर आनन-फानन में ही देर रात उच्च स्तरीय समिति के सभी सदस्यों को विशेष संदेश मिला। सभी को विशेष वाहन से वाघा की सरहद अति विशिष्ठ हवाई अड्डे पहुंचाया गया। सभी की नजरें रात के घुप्प अंधेरे में आसमान से नीचे की ओर आ रही पीली रोशनी की गोलाकार आकृति पर पड़ी। उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व कर रहे ‘केतीन’ लगभग चिल्लाए-”वही हैं एस.एस.। शुक्र है वे लौट रहे हैं।”
जांच ऐजंेसी के प्रमुख ने कहा-”लेकिन ये किस विमान से आए? ये कैसे दुश्मनों के पंजे से छूटे? क्या वो खोज भी साथ लाए हैं?”
‘केतीन’ ने जवाब दिया-”आपके सभी सवालों का जवाब एस.एस. स्वयं देंगे। वह अपने पैराशूट से ही यहां पहुंच रहे हैं। ये पैराशूट नैनो तकनीक का नायाब उदाहरण है। इसे एस.एस. ने अपनी नाक के बालों में छिपाया हुआ था।”
“क्या! इतना विशालकाय पैराशूट, नाक के बालों में? वाकई?” एक राजनेता ने चौंकते हुए पूछा। थोड़ी ही देर में एस.एस. पैराशूट सहित नियत स्थल पर कूद पड़े। पल भर में ही सभी विशेष विमान में बैठे और सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए। सुरक्षा कारणों से तय किया गया कि एस.एस. के जीवित लौटने की खबर से पहले वृहद चर्चा कर ली जाए।
देश के अग्रणी कर्णधार और पहली पंक्ति के सुरक्षा अधिकरियों सहित वरिष्ठ वैज्ञानिकों के समक्ष एस.एस. का संबोधन शुरू हुआ-”सबसे पहले भारतभूमि को नमन कि मैं सकुशल लौट आया। मैं नहीं जानता कि अमेरिका से मैं कैसे पड़ोसी देश में पहुंच गया। मैं यह भी नहीं जानता कि मेरी आत्महत्या की पुष्टि कैसे हो गई। मेरी ही जगह जिस आदमी का शव प्रयोगशाला में बरामद हुआ था, वह भी पड़ोसी मुल्क का ही बाशिंदा था। उस अपरिचित व्यक्ति की प्लास्टिक सर्जरी कर मेरे जैसा चेहरा बनाया गया था। पता चला है कि बदले में उसके परिवार को मोटी रकम दी गई है। खैर। मेरी लैब में किसी ने नैनो तकनीक के सहारे बल्ब के स्विच में मूर्छित होने का रसायन लगा दिया। मैंने जैसे ही रोशनी के लिए स्विच ऑन किया तो मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया। मैं जब होश में आया तो पड़ोसी देश की अति विशिष्ट टास्क फोर्स ने मुझे बंदी बना रखा था। हालांकि वो मेरे साथ सख्ती से कभी पेश नहीं आए। लेकिन भारत को लेकर वो बेहद खूंखार हैं। मैं चार महीने से अधिक उनकी कैद में रहा। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि मैं कैद में हूं। मेरी हर इच्छा पूरी की जाती थी। सुरक्षा के साथ मुझे यहां-वहां ले जाया जाता था। समूची दुनिया को मैं देख-पढ़-जान सकता था। बस मैं किसी से संपर्क नहीं कर सकता था। पड़ोसी देश के इरादे खतरनाक है। उसे खुशफहमी है कि एक न एक दिन वो हमें युद्ध में हरा देगा और समूचा हिंदुस्तान उसका गुलाम होगा।”
भारतीय सेना के सर्वोच्च टॉस्क फोर्स के अधिकारी बीच में बोल पड़े-”माफ कीजिएगा एस.एस.। हम सभी को आपके सहयोगी साथी ‘केतीन‘ ने सब कुछ बता दिया। जोबाश उर्र कतई का पड़ोसी मुल्क से संबंध था। यह भी हमें मालूम चल गया है। हम जानते हैं कि उसके मरने के बाद भी आतंकवादी गतिविधियों को शह देने से हमारा पड़ोसी मुल्क बाज नहीं आने वाला है। लेकिन हम ये जानने को उत्सुक हैं कि पड़ोसी देश आपसे आखिर चाहता क्या था?”
एस.एस. ने एक गिलास पानी पानी पिया और अपनी बात कहने लगे-”मुझसे एक ही गलती हुई। मुझे अमेरिका में रहते हुए अपने आविष्कार का खुलासा करना ही नहीं चाहिए था। मुझे क्या पता था कि कोई इस जनहित के आविष्कार को अभिशाप के रूप में भी लेने की सोच सकता है। दरअसल पड़ोसी देश अपनी औकात जानता है। उसे पता है कि जल, थल या नभ क्षेत्र में या किसी ओर मामलों में भी वो हमारा कुछ न बिगाड़ पाएगा। अब उसकी रणनीति दूसरी तरह से हमें नुकसान पहुँचाने की है। जैसे आतंकवाद फैलाकर। धार्मिक वैमनस्य फैलाकर। जब इनसे भी कोई बात नहीं बन रही तो अब वो प्राकृतिक ढंग से हमें नुकसान पहंुचाने की फिराक में है।”
विदेशी मामलों के जानकार उठ खड़े हुए। कहने लगे-”प्राकृतिक ढंग से नुकसान पहुंचाने की ! आपके आविष्कार से भला क्या नुकसान कराया जा सकता है? कैसे?”
अब ‘केतीन’ ने कहा-”मुझे लगता है कि एस.एस. को अपनी बात पूरी कर लेनी चाहिए।” सब चुप हो गए। अब तक एस.एस. सामान्य हो चुके थे। कहने लगे-”पड़ोसी देश की विकृत मानसिकता है कि प्राकृतिक आपदाएं, भूस्खलन, बाढ़, अतिवृष्टि, अकाल आदि की घटनाएं जब भी भारत में होती है, तो उसे खुशी होती है। वो चाहता है कि भारत का जनमानस परेशान हो। भारत सरकार का ध्यान प्राकृतिक घटनाओं से जूझने में ही लगा रहे। इससे कोष पर असर पड़ेगा। जान-माल की अत्यधिक हानि होने से मंहगाई बढ़ेगी। अशांति फैलेगी। तब शायद पड़ोसी मुल्क हम पर पीछे से वार करे। मेरे शोध को वो हथियाना चाहते थे। उनका मानना था कि वे बारंबार हमारे मुल्क में मनचाही बारिश करवाकर हमारे देश को अस्त-व्यस्त कर सकेंगे। बारिश की संभावना को हमेशा मिटाकर सूखा-अकाल की नौबत ला देंगे। वे जानते हैं कि मेरे आविष्कार से विशालकाय रडार विकसित होंगे। ऐसे यंत्र बनेंगे जिससे हमें अपनी धरती में उठने वाले बादलों पता लग जाएगा और हम या तो उन्हें वहां से भगा सकते हैं। या जहां हमें बारिश चाहिए, हम वहां उन बादलों को भेज सकते हैं। मेरे आविष्कार में ऐसी विशालकाय तोप होंगी जो एसिटलीन नामक गैस को बादल में भेजकर उन्हें वहां से भगा सकती है, जहां हम बारिश नहीं चाहते। फिलहाल कहीं से बादलों को लाने और भगाने की सीमा तीन से चार किलोमीटर के दायरे की है। लेकिन वो चाहते थे कि मैं ऐसी बंदूकों-तोपों के लिए कोई ऐसा फार्मूला खोज सकूं जो 300 किलोमीटर के दायरे से ही सैकड़ों किलोमीटर की परिधि में छाए बादलों को भगा दे या तत्काल मनचाही जगह में ताबड़तोड़ बारिश करवा दे। उनके खतरनाक इरादों को भांप कर भी मैंने हामी भर दी। यदि असंभव कह देता तो संभव है कि वो मेरी हत्या भी कर देते।” यह कहकर एस.एस. चुप हो गए।
“ओह ! तो ये बात है। वेल्डन। आपकी आंखों में छिपे वीडियों रिकार्डिंग यंत्र ने समूचे चार महीने के पल-पल को रिकार्ड किया ही है। हमारी पूरी टीम आपकी सहायता से पूरे मामले की तह में जाकर दुश्मन को उसीके घर में मात देने की रणनीति बनाएंगे। हमे आप पर गर्व है। आप वैज्ञानिक लोग मनुष्य के हित में और जीव-जन्तुओं के हित में ही तो शोध-आविष्कार करते हैं। लेकिन विज्ञान को अभिशाप बनाने वालों की कमी नहीं। मनुष्य ही है जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। आज नहीं तो कल ये संभव है कि हम अपने ही नहीं किसी भी भूभाग में होन वाली बारिश को रोक सकने और सूखे वाले क्षेत्र में बारिश करने का आविष्कार कर पाएं। खैर। आप ये बताइए कि आपके शोध का क्या हुआ?” इस बार महामहिम ने ही सवाल पूछ लिया।
एस.एस. ने जवाब दिया-”महामहिम महोदय। मुझे दुख है कि मैंने आवेश में आकर अपने आविष्कार की रीति और फार्मूले को उनके समस्त रसायनों सहित सागर को भेंट कर दिया। लेकिन अब मैं सोच रहा हूं कि मेरा आविष्कार भले ही गलत हाथों में पड़ने से अभिशाप हो सकता था लेकिन वह विज्ञान की प्रगति में एक ओर कदम होता। मैं पुनः अपने उस शोध में काम करूं या नहीं। मुझे सूझ ही नहीं रहा है।
महामहिम ने कहा-”विज्ञान प्रगति के लिए ही बना है। आप अपने प्रयास जारी रखिए। उसे सार्वजनिक करना है या नहीं। ये भारत सरकार बाद में तय करेगी। हमारी शुभकामनाएं हर उस विज्ञानकर्मी के साथ है, जो जनहित में आविष्कार करता है। हम आदेश करते हैं कि समूची दुनिया को बताया जाए कि एस.एस. जीवित हैं और सुरक्षित हैं। ऐसा कोई संदेश नहीं जाएगा कि हम अपने पड़ोसी मगर हमारा अहित चाहने वाले देश की पहचान कर चुके हैं। पड़ोसी देश के साथ हमारे रिश्ते विदेश नीति के तहत चलते रहेंगे। हां। सुरक्षा मामलों में भारत को और सतर्क होने की आवश्यकता है।”
बैठक समाप्त हुई और एस.एस. अपने सहयोगी ‘केतीन’ के साथ फिर से अपने प्रयोगों में जुट गए।