होड / सत्यनारायण सोनी

Gadya Kosh से
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ओ ही कहाणी लिखण रो कोई तरीको है! अेक दरसाव है आंख्यां साम्हीं। म्हैं हूं, विनोद है। अेक दरसाव माथै कहाणी रचण री होड लाग ज्यावै। खुद माथै ई हांसण लागूं म्हैं, बडो तीस-मारखां हुयग्यो रे तू! कहाणी री अेक किताब कांई छपी, खुद नै मौजीज कथाकारां री पंगत में गिणन लागग्यो!ÓÓ अब विनोद री दलील ई देखो, जद ई कहाणी लिखण बैठै, कविता हुय ज्यावै। कहाणी कीकर लिखीजै? उणरो सवाल है। जवाब में म्हैं मोकळो थूक बिलोवूं। ......अर बात-बात में ई आ होड लाग ज्यावै। तो साÓब, दरसाव साम्हीं है। अेक घर है। घर में मरद है, लुगाई है, टाबर है। अै सब तो होवणा ई हा, क्यूंकै घर, घर है, कोई उजाड़ नीं। म्हैं उण घर मांय बड़ ज्यावूं। घर मांय कोई पांवणा पण आयोड़ा है। घर अेक नौजवान साहितकार रो है अर पांवणा बां रा साहितकार मित्तर। किणी विसै माथै गंभीर साहितिक चरचा चाल रैयी है। म्हैं अचाणचक ई जा धमकूं। राम-राम, नमस्कार अर हाथ मिलावणा हुवै। पछै चाय आय ज्यावै। म्हे चाय पीवण लागां। मित्तरां री साहितिक चरचा भी चालती रैवै। म्हैं कप होटां सूं लगाÓर अेक प्यारो-सो घूंट भर्यो अर आंख्यां साÓमली भींत माथै छोड दी। म्हारी आंख्यां भींत माथै छिपकली-सी सरकण लागी। डावै पसवाड़ै कूंट में मकड़ी रो अेक छोटो-सो जाळो हो। इत्तै साफ-सुथरै घर मांय ठा नीं ओ जाळो कीकर रैयग्यो। लागै, नूंवो है। घरवाळां री निजरां नीं चढ्यो। नजीक ई माळा रै घेरै सूं घिरी अेक छोटी-सी फोटू साहितकार जी रै जी सा री टंगरी है। अेक ठाडो-सो चित्तर भी डावै पासै री भींत री स्यो बधावै। वादियां मांय घूमतो अेक नूंवो जोड़ो। म्हारी आंख्यां अेक-अेक दरसाव माथै बड़ी बारीकी सूं घूमती जावै कै अचाणचक अेक जोड़ी बूढी आंख्यां भी बठै घूमण सारू पूग ज्यावै। म्हैं ओळख लेवूं। अै घूरती-सी आंख्यां साहितकार जी री मां री है। अबार उण भींत माथै दोय जोड़ी आंख्यां ही। अचाणचक बूढी आंख्यां बठै सूं गायब हुय ज्यावै। म्हैं देख्यो, बै आंख्यां अबार म्हारै चेरै माथै टंग्योड़ी ही। पतो नीं कांई सोचै ही बूढी मां? म्हैं आपरै हाथ मांय पकड़्यै चाय रै कप नै याद कर्यो। ठंडी हुवती चाय नै अेक ई सुरड़कै में सलटायÓर म्हैं कप कुरसी हेटै सरकाय दियो। और सुणाओ सा, कांईं हालचाल है?ÓÓ पांवणै म्हनै पूछ्यो। ठीक-ठाक।ÓÓ बै जाणता हा, बातचीत में म्हैं सबदां री घणी काठ बरतूं। बहसबाजी सूं तो साव अळगो ई रैवूं। बै भळै आपरी आवणवाळी किताब री चरचा करण लाग्या। म्हैं ई बीच-बीच में 'हा, हूंÓ करतो बां री चरचा में सरीक रैवण री भूमिका निभावतो रैयो, लाचार स्रोता-सो। पण म्हारी चंचळ आंख्यां भळै भींत सूं जाय चिपी। भींत पर जीवणै पासै बित्तो ई बडो अेक और चित्तर है। पहाड़ी है, झरणो है। पहाड़ी रै अेक बडै-सै पत्थर माथै बो ईज जोड़ो बैठ्यो है। टाबरां री निजर जिण भांत उडती पतंग माथै हुवै, ठीक उणीÓज भांत उण जोड़ै री निजरां भी आभै टंगी है। ...अर म्हारी निजर चित्तर रै अेक-अेक दरसाव रो बारीकी सूं मुआयनो करै कै अचाणचक चित्तर रै लारै सूं अेक छिपकली निकळै। ऊपरलै पासै भींत रै बीचोबीच काठ री अेक चिड़ी चिपी है, बा छिपकली उण चिड़ी रै जाय चिपै। म्हैं आंख्यां मसळूं। कठै ई म्हारी आंख्यां ई तो छिपकली...? नईं, यूं तो नीं हुय सकै। आ तो साच्याणी छिपकली है। असली छिपकली। और कांईं-कुछ लिख रैया हो आजकल?ÓÓ वां रो आगलो सवाल हो। बस, कीं नीं।ÓÓ म्हारो खांडो-सो जवाब। अकसर म्हैं बातेरी लोगां नै देखूं तो बड़ी ईष्र्या हुवै। चांवता थकां भी बोल नीं पाटै। जरूरत सूं बेसी तो कांईं, जरूरत रा बोल ई को फूटै नीं। जोड़ायत नै भी सिकायत रैवै, अपणै आप में ई खोया रैवो हो आखै दिन।ÓÓ अर भळै म्हैं भींत माथै काठ री चिड़ी पर सूं सरकती छिपकली रै साथै-साथै सरकण लागूं। चिड़ी सूं थोड़ो ऊपर जीवणै पसवाड़ै बइयै रो अेक घुरसाळो टंग्यो है। म्हैं बड़ी गौर सूं देखूं। तिणकलो-तिणकलो कांईं गजब गुंथ्यो है। इणरी आ प्यारी-सी बुणगट म्हारो मन मोह लेवै। लखदाद इण कारीगरी नै। लखदाद इण कारीगर नै। म्हैं ध्यान सूं देखण सारू कुरसी छोडÓर बीं रै कनै जायÓर ऊभो हुय जावूं। साहितकार मित्तर सूं मुखातिब होवूं, असली है?ÓÓ बिलकुल!ÓÓ बां आंख्यां मटकारी। बां रै चेÓरै माथै गुमेज री रेखावां उभर आई। म्हारी हालत खराब हुयगी। हियै मांय अेक टीस-सी उमड़ आई अर बा टीस अबार म्हारो हुलियो बिगाड़ण लागी। म्हारी मरियल-सी आंख्यां भळै भींत री जातरा पर निकळी। उण घुरसाळै रै नेड़ै ई दो पोस्टर टंग्या हा। फैज अहमद फैज अर बशीरबद्र रा सेर बां पोस्टरां माथै छप्योड़ा हा। बशीरबद्र रो सेर म्हारी निजरां साम्ही है। म्हैं बांचूं, 'लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में।Ó साच्याणी टूट्यो हुसी बो पंछी बापड़ो, तिणकलो-तिणकलो चुगÓर गूंथ्यो हुसी ओ घुरसाळो। म्हारो कहाणीकार उडारी भरै। बाजरै रो खेत है, हर्यो-भर्यो। खेजड़ो है। खेजड़ै री डाळी सूं झूलतो बो ईज बइयै रो घुरसाळो। बइयै आपरी नाड़ बारै काढ राखी है, बइयै री हलचल सूं हालतो, हींडतो घुरसाळो। आहा, कित्तो प्यारो दरसाव है! बारै-तेरै बरस रो अेक छोरो उणनै तकावै, राजी हुवै। घुरसाळो उणनै घणो व्हालो लागै। बया री कारीगरी देख-देख बो खुस हुवै। पण ओ कांईं? ओ छोरो तो घणो कुचमादी। अेक भाटो उठावै। घुरसाळै रो निसानो लगावै। बइयो बापड़ो फुर्र दांणी उड ज्यावै। घुरसाळै री पकड़ घणी मजबूत। जख्मी हुय सकै, पण जिग्यां नीं छोडै। छोरो भी सोरै सांस लारो कद छोडै। सेवट अेक न्यारी अटकळ लगावै छोरो। रूंख माथै चढ ज्यावै। अबार घुरसाळो उणरै हाथ आय ज्यावै। उळटै-पळटै तो अंडा बिखर ज्यावै। बइयै रो घर उजड़ ज्यावै। बचिया रुळ ज्यावै। बापड़ो बेबस पंछी अेक डाळ सूं दूजी डाळ सिर मारतो फिरै। ब्याकल, डरूंफरूं। उणरी दुनिया उजडग़ी। जीवण भार हुयग्यो। धोरां में तिसायै पंछी री भांत उणरी चांच खुलरी है। बाको बा राख्यो है। बो छोरै रै हाथ में आपरै उजड़्यै घर अर जमीन माथै बिखर्योड़ै, टूट्योड़ै अंडां नै देखै है अेकटक, पण देख्या नीं जावै है। सिगरेट?ÓÓ पांवणै अैसट्रे में गुल झड़काÓर सिगरेट म्हारै कानी करी। नां सा! धन्यवाद।ÓÓ सिगरेट रो धुंवो अर बास कमरै मांय पसर ज्यावै। ओ घुरसाळो?ÓÓ म्हैं हिम्मत करÓर मित्तर सूं पूछूं। अेक छोरै ल्याÓर दियो। कीकर लाग्यो?ÓÓ ठीक।ÓÓ म्हारो उत्तर सुणÓर बां रै चेÓरै रा भाव पळटग्या। म्हारो रूखापणो स्यात बां नै दाय नीं आयो। स्यात म्हारै सौंदर्यबोध माथै तरस भी आयो हुसी बां नै। छिपकली, जकी अजै तांई घुरसाळै रै असवाड़ै-पसवाड़ै घूमै ही। अबार घुरसाळै रै मांय बडग़ी ही। घुरसाळो जको म्हारी कहाणी रो केन्द्र-बिन्दु है, बो ईज घुरसाळो, या यूं कैवां कै अेक उजड़्योड़ो घर म्हारी आंख्यां रै साम्हीं है। ...अर म्हारै कहाणीकार री आंख्यां! आंख्यां में अेक लुगाई है, साहितकार रै ड्राईंग-रूम में घुरसाळै नै निरखती - अैड़ो अनोखो घुरसाळो तो उणरै ड्राईंग-रूम में भी हुवणो चाईजै, सोचती। अर भळै म्हैं देखूं आखी दुनिया रै बइयां रा घुरसाळा ड्राईंग-रूमां में पूगÓर बां री सोभा बधा रैया है।

(1998)