होली का महिलाकरण / प्रेम जनमेजय
होली का महिलाकरण
मेरी एक पत्नी है। एक मेरी पत्नी है। मेरी पत्नी भी एक ही है। मित्रों मैं अपनी पत्नी की कैसे भी व्याख्या करूं, उसमें ‘एक’ शब्द आएगा ही। दूसरा या दूसरी शब्द लाने का मुझमें साहस नहीं है। मेरे एक लेक्चरर मित्र इन दिनों अपने बड़े हुए वेतन से बहुत प्रसन्न हैं। उनका कहना है कि वेतन आयोग ने हम मास्टरों के वेतन इतने बड़ा दिए हैं कि इस मंदी में भी अब हम दूसरी रखने की सोच सकते हैं। मेरा भी वेतन बड़ा है पर साहस नहीं बड़ा है। मेरा साहस सदा मंदी की गिरफत में रहा है। इस मामले में आप मुझे कायर, डरपोक आदि कुछ भी कह सकते हैं। मेरे घर में प्रजातंत्र है और इस प्रजातंत्र में मेरी पत्नी सदैव सत्ता -पक्ष ही रही है। मैं विरोधी दल का तो हूं पर जैसे पार्टी हाई कमांड के सामने, वि’ोषकर कांग्रेस हाई कमान के सामने, आप कोई विरोध दर्ज नहीं कर सकते हैं और करें तो नतीजे भुगतने पड़ते हंै, वैसा ही मेरा विरोध का स्वर है। हमारे बीच तूं -तूं मैं-मैं का रिश्ता नहीं है, हां और न का रिश्ता है। मेरी हर हां पर उसकी नंा होती है और नां पर हां होती है। मेरी हर बात का जवाब उसकी ‘नहीं..ई’से शुरु होता है।वो एकला चलो के नहीं उल्टा चलो के सिद्धांत पर वि’वास करती है। मेरी सदा को’िा’ा रहती है कि मैं कुछ ऐसा करूं कि जिसका उलटा वो न सोच सके पर बलिहारी प्रभु अपने, उसे ऐसी बुद्धि दी है कि तत्काल उलट वार करती है। उसकी इस उलटवार प्रतिभा से प्रभावित हो कर अनेक विरोधी दल के नेता मेरी पत्नी से प्र’िाक्षण लेने के लिए पिछले दरवाजे से आते हैं। इस बार होली पर मैंनें उसकी उलटचाल प्रवृत्ति को चुनौती देने के लिए पासा फेंका- इस बार हमारे बेटे- बहू कि पहली होली है, इस बार होली का दिन बड़ा मस्त मनाएंगें।’ मुझे उम्मीद थी कि मेरे इस प्रस्ताव के विरुद्ध मेरी पत्नी के पास कोई उलट -वार न होगा पर मेरी पत्नी ने शतरंजी घोड़े की ढाई चाल चलते हुए कहा- नहीं...इ...इ इस बार हम मस्ती से अंतर्राष्टीय महिला दिवस मनाएंगें। तुम बाप-बेटे ने घर में मुझे अकेली के होने का लाभ उठाकर बहुत मनमानी कर ली है अब बहू के आने से हम दो-देा की बराबरी पर आ गए हैं, अब हम महिलाओं की चलेगी।’ आप तो जानते ही हैं कि क्योंकि वो महिला है इसलिए मेरी पत्नी है या फिर कह सकते हैं कि क्योंकि मेरी पत्नी है इसलिए महिला है। आपकी मुस्कान सही फरमा रही हैं कि आजकल आव’यक नहीं कि जो आपकी पत्नी हो वो महिला ही हो। पर मैंनें कहा न कि मैं साहसी नहीं हूं इस लिए जैसे लोग गैर सरकारी संस्थाओं का साहसपूर्ण सदुपयोग कर लेते हैं मैं गैरमहिला का पत्नी के रूप में साहसपूर्ण सदुपयोग नहीं कर पाता हूं। मैंनें साहस कर के पूछा- अंतर्राष्टीय महिला दिवस ! वो कब है? और उसमें मनाने को क्या है? - मैं जानती थी कि आप जैसे महिला-विरोधी पुरुषों को ध्यान भी न होगा कि अंतर्राष्ट्रीय महिला नाम का कोई दिवस भी होता है। श्रीमान पुरुषदेव, इस बार ये आपकी होली से दो दिन पहले है और आपकी होली तो केवल उत्तर भारत में ही मनाई जाती है, ये पूरे संसार में मनाया जाता है।’ - होली के दिन तो हम रंग खेलते हैं इस दिन आप लोग क्या खेलते हैं? - इस दिन पूरे संसार में महिला स’ाक्तिकरण के नारे लगाए जाते हैं, सेमिनार होते हैं... -- यानि इस दिन सेमिनार- सेमिनार खेला जाता है। संस्थाओं को अपना पुराना बजट खत्म करने और नया बनाने का सुअवसर दिया जाता है, महिलाओं को कुछ लाॅलीपाॅप थमाए जाते हैं जिसे वे चूसती रहें तथा अपनी प्रगति का भ्रम पाले रहें और... - और पुरुषों के पेट में दर्द होता है... आप लोग तो औरत की तरक्की बर्दा’त नहीं कर सकते हो... आप तो चाहते ही नहीं हो कि पूरे साल में कम से कम एक दिन ऐसा जिस दिन औरतों पर कोई बात हो सके...’’ मैंनें देखा धीरे-धीरे वो दुर्गा की मुद्रा में आ रही है। होली से पहले ही रंग में भंग न पड़ जाए इसलिए मैंनें अपने समस्त हथियार डालते हुए कहा- ठीक है देवी इस बार हम अतर्राष्टी्रय महिला दिवस मनाएंगें, होली की मस्ती नहीं मनाएंगें।’ मेरी बात से सहमत हो जाए वो मेरी पत्नी नहीं, उसका तो स्वर्णिम वाक्य है- विरोधमय जयते, इसलिए उसने तत्काल असहमती जताते हुए कहा-होली की मस्ती क्यों नहीं होगी? हमारे बच्चों की पहली होली है, हम क्यों नहीं मनाएंगें?’’ मैंनें हाई कमान के सामने समस्त हथियार डालते हुए कहा- पर कैसे, देवी? उसने जालिम मुस्कान बिखेरी और बोली- हम हेाली का महिलाकरण करेंगें... समझे?’ इससे पहले कि मैं अपनी नासमझी की व्याख्या करता वो चल दी। अब ये होली का महिलाकरण क्या होता है, आप भी सोचिए। आप तो जानते ही हैं कि महिलाओं से जुड़े सवाल कितने पेचीदगी से भरे होते हैं, इतने पेचीदगी से भरे कि उन्हें देवता भी नहीं समझ पाए मनुष्य की क्या औकात है। अगर पेचीदगी से भरे न होते तो इतने अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय महिला दिवस आए और चले गए पर महिलाओं को संसद में आरक्षण देने का बिल अभी तक बिल में ही पड़ा हुआ है। मैं तो इस बार भुगत कर अगले वर्ष ही उत्तर दे सकूंगा कि होली का महिलाकरण कैसे हुआ पर यदि आप भुक्तभोगी हैं तो आप मुझे इस बार ही समझा दें जिससे मैं होली पर सुरक्षा- कवच धारण का सकूं।