होली / सपना मांगलिक
अर्पिता की यह पहली होली थी। उसने और निखिल ने घरवालों के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह किया था। उनकी शादी में कोई भी अपना शरीक नहीं हुआ और उनका दांपत्य जीवन बड़ों के आशीर्वाद के बिना शुरू हुआ, इसका निखिल से ज़्यादा अर्पिता को मलाल था। मगर विवाह के दो महीने बाद जब रंग-बिरंगी होली का त्यौहार पास आने लगा तो अर्पिता ने इस होली में सबके गिले शिकवे दूर कर निखिल और उसके परिवार को एक करने की ठानी। उसके मन में अनेक उमंग उठ रहीं थी कि होली पर मैं यह बनाउंगी वह बनाउंगी और सब मेरी तारीफ करेंगे मुझे आशीर्वाद प्रदान करेंगे। होली वाले दिन अर्पिता निखिल के साथ ससुराल पहुंची दोनों ने बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। माता-पिता बच्चों से कबतक नाराज रहते उन्होंने भी दोनों को माफ़ कर दिया। घर में खुशियों की खिलखिलाहट गूँज उठी। तभी निखिल के जीजाजी वहाँ आये और अर्पिता को रंग लगाने लगे। अर्पिता भी अपने ससुराल की पहली होली का भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए खुद बचते हुए जीजाजी को रंग लगाने की कोशिश करने लगी। होली की इस धरपकड़ में अचानक एक तमाचे की आवाज सबको सुनाई दी। जीजाजी अपना गाल सहलाते हुए बडबडा रहे "मैं तो पहले ही कह रहा था यह लड़की सही नहीं है, दिखा दी न अपनी औकात" उधर अर्पिता रोते हुए तमतमाए चेहरे के साथ घर से बाहर निकल गई, आखिर उसकी पहली होली की मिठास हमेशा-हमेशा के लिए कडवाहट में जो बदल गई थी।