होशियारी खटक रही है / सुभाष चंद्र कुशवाहा / पृष्ठ 1
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समीक्षा:चन्द्रेश्वर पाण्डेय
सुभाष चंद्र कुशवाहा की 13 कहानियों का संकलन 'होशियारी खटक रही है ' नाम से 2010 में अंतिका प्रकाशन से छपा है। सुभाष चंद्र कुशवाहा की कई कहानियों में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण जीवन का यथार्थ प्रतिनिधि बनकर उपस्थित होता है। सुभाष की कहानियाँ उत्तर भूमंडलीकृत ग्रामीण समाज का दस्तावेज हैं। उनकी एक ऐसी ही कहानी है ---'होशियारी खटक रही है '। सुभाष की कहानियां एक सचेत, सतर्क और प्रतिबद्ध कहानीकार की कहानियां हैं। उनकी कहानियों में वर्गीय चेतना परिलक्षित होती है। वे एक यथार्थवादी दृष्टि के कहानीकार हैं। वे वर्तमान में कुछ गिने-चुने युवा पीढ़ी के कहानीकारों में शुमार किये जा सकते हैं, जिन्होंने ग्रामीण जीवन के नए यथार्थ को केंद्र में रखकर बेहतरीन कहानियां लिखी हैं। अभी उन्होंने कुल जमा 56 कहानियां लिखी हैं।
समकालीन हिन्दी कहानी में सुभाष चंद्र कुशवाहा एक चर्चित नाम है। ऐसे तो सुभाष ने 1980 के आसपास लिखना आरम्भ किया था। शुरू में उन्होंने गीत और ग़ज़ल भी लिखे ;पर बाद में उनके सृजन की मुख्य विधा कहानी बन गयी। उन्हें ये बात ज़ल्द समझ में आ गयी कि तेज़ी से बदलते सामाजिक यथार्थ को इसी विधा में प्रस्तुत किया जा सकता है। उन्होंने ख़ासतौर से 1990 के बाद के बदलते ग्रामीण जीवन के यथार्थ को बेहद प्रभावशाली तरीके से अपनी कहानियों में व्यक्त किया है। वे ग्रामीण जीवन से अच्छी तरह से परिचित हैँ।