‘आखिरी महाराजा’ की विदाई? / जयप्रकाश चौकसे

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‘आखिरी महाराजा’ की विदाई?
प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2020


एयर इंडिया को बेचने का प्रयास सरकार पहले भी कर चुकी है, परंतु कोई खरीदार सामने नहीं आया। उस समय के प्रस्ताव में सरकार मलाई अपने पास रखकर मट्ठा बेच रही थी। सरकार को धन की आवश्यकता है। प्रचार तंत्र खर्चीला होता है। बारहमासी चुनाव के लिए भी धन की जरूरत है। नए प्रयास में लोभ लोचा यह है कि एयर इंडिया की इमारतें सौदे में शामिल नहीं हैं। बैंक भी बैलेंस शीट में मुनाफा केवल इसलिए दिखा पाते हैं कि दशकों पूर्व खरीदे ऑफिस का वर्तमान मूल्य उसमें शामिल कर लिया जाता है। सरकारी बैलेंस शीट और जमा खर्च के कागज अफसानों की तरह गढ़े जाते हैं। सरकार चलाने वाले कल्पनाशील प्राणी कथा साहित्य रचते तो पाठकों को रोचक सामग्री मिल जाती। देश भी बच जाता। प्राइवेट एयरलाइंस में एक जहाज के उड़ने और रख-रखाव के लिए 70 व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, जबकि एयर इंडिया में 470 लोग नियुक्त हैं। नेताओं ने अपने चमचों को नौकरियां दी हैं। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जन्मजात आलस्य एयर इंडिया को सफेद हाथी बना चुका है। नया खरीदार इस भानुमति के कुनबे का दायित्व नहीं लेना चाहता। सेवानिवृत्त हुए लोगों की पेंशन अदायगी भी बड़ी समस्या है। सरकार की कार्यप्रणाली के जानकारों का कहना है कि एयर इंडिया को बेचने के दूसरे प्रयास में सरकार ने अपनी पसंद का खरीदार पहले ही तय कर लिया है और खुली नीलामी एक प्रहसन की तरह है। हरिशंकर परसाई इन चोंचलों का पूर्वानुमान लगा चुके थे। व्यापार जगत से जुड़े सभी लोग जानते हैं कि एयर इंडिया किसकी झोली में जाने वाला है। सरकार के रमी के पत्ते खुल चुके हैं। मौजूदा हुकूमत का राज, राज न रहा।

स्वतंत्रता प्राप्त होते ही सामंतवाद को कानूनी तौर पर समाप्त कर दिया गया था, परंतु सामंतवादी प्रवृत्तियां कायम रही हैं। बहरहाल, एयर इंडिया का प्रतीक महाराजा को चुना गया। आशय यह था कि भूतपूर्व महाराज अब अवाम की सेवा करेंगे। छवि में साफा बांधे महाराज मेहमान का स्वागत करते हुए नजर आते हैं। सन् 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भूतपूर्व महाराजाओं के प्रीवी पर्स और अन्य सहूलियतें भी खारिज कर दीं, परंतु कानून से प्रवृत्तियां नष्ट नहीं होती हैं। गौरतलब है कि गणतांत्रिक चुनाव भी भूतपूर्व राजा-महाराजा जीतते रहे हैं। एयर ट्रैफिक कंट्रोल बोर्ड और इससे जुड़ी संस्थाओं ने प्राइवेट एयरलाइंस को सुविधाजनक समय सारणी दी और एयर इंडिया के साथ सौतेला व्यवहार किया। इस विराट तंत्र को सोचे-समझे ढंग से किस्तों में खत्म किया गया है। एक जीवित संस्था का पोस्टमार्टम कर दिया गया और अब कंकाल की नीलामी का स्वांग रचा गया है। एयरलाइंस के प्राइवेट हाथों में जाते ही हवाई सफर महंगा हो जाएगा। सरकारी खर्च और औद्योगिक घरानों के खर्च पर सफर करने वाले लोग ही हवा-हवाई रह पाएंगे। व्यवस्था ऐसा कुछ कर रही है कि अवाम को पैदल ही फासले तय करने होंगे। बकौल, निदा फ़ाज़ली- ‘यहां हर शै मुसाफिर है और सफर में जिंदगानी है।’ सोनम कपूर अभिनीत फिल्म ‘नीरजा’ यथार्थ घटना से प्रेरित थी। इस फिल्म की अंतिम रील में नीरजा की मां का पात्र अभिनीत करते हुए शबाना आजमी ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया था। इस दृश्य ने पूरी फिल्म को भावना का नया शिखर दिया।

अक्षय कुमार अभिनीत एक फिल्म में खाड़ी के दो देशों के बीच चल रहे युद्ध ने वहां बसे भारतीय लोगों का जीवन संकट में डाल दिया। नायक चंदा एकत्रित करके फंसे हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाता है। वर्तमान में इंडिगो एयरलाइंस ही सुचारु रूप से चलाई जा रही है। उनकी उड़ान समय की पाबंद है। यात्रियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। जाने कैसे यह संस्था उस द्वीप की तरह है जिस पर भ्रष्ट लहरों का प्रभाव नहीं पड़ रहा। अमेरिका में हवाई जहाज से जुड़ी फिल्में बनी हैं। प्रधानमंत्री और प्रेसिडेंट के लिए विशेष विमान होते हैं। कुछ धनाढ्य लोगों के निजी विमान भी हैं, जिनकी भीतरी साज-सज्जा फाइव स्टार होटल की तरह है। खाकसार को ऐसा एक अवसर मिला था। धनाढ्य व्यक्ति अपने फोन पर महिला मित्रों से बतिया रहा था। आश्चर्यचकित होकर उनसे पूछा कि इतना बड़ा उद्योग संचालन करने वाले व्यक्ति के पास महिला मित्रों से हंसी-ठिठोली करने का वक्त और रुझान है, अपना विराट उद्योग कैसे चला पाते हैं? जवाब में उन्होंने इंटरकॉम पर दोनों पायलट्स को भीतर बुलाया। कुछ औपचारिक बातें कर उन्हें विदा कर दिया। उद्योगपति ने कहा- जब दोनों पायलट यात्री कक्ष में थे, तब हवाई जहाज ऑटो पायलट सिस्टम पर उड़ रहा था। वर्तमान सरकार भी ऑटो पायलट सिस्टम पर ही चल रही है। इस देश के अवाम में इतनी शक्ति है कि ऑटो पायलट सिस्टम के दौर में भी वे अपना अस्तित्व बनाए रखे हैं।