‘आज क्यों नाचे सपेरा गीतों में कह गए शैलेंद्र / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 फरवरी 2021
टेलीविजन पर नागिन शृंखला बनाई जा रही है। स्पष्ट है कि यह लोकप्रिय कार्यक्रम है। शशधर मुखर्जी ने प्रदीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत ‘नागिन’ फिल्म बनाई थी। संगीत हेमंत कुमार ने दिया था। वादक कल्याण जी भाई ने विदेश से आयात किए गए क्ले वायलिन पर बीन के स्वर बजाए थे। वर्तमान में ए.आर. रहमान के कंप्यूटर पर अनेक ध्वनियां हैं और उनको सिंथेसिस किया जा सकता है। इन उपकरणों के आयात सेे रिकॉर्डिंग के वादक बेरोज़गार हो गए हैं। एक सेक्सोफोन वादक की कहानी मनोज रूपड़ा ने अपने लघु उपन्यास ‘साज-नासाज’ में प्रस्तुत की है। इसके अंत में समुद्र तट पर सेक्सोफोन बजाता बूढ़ा ऐसा प्रभाव उत्पन्न करता है मानो वाद्य यंत्र ही वादक को बजा रहा है।
हरमेश मल्होत्रा ने सर्प मिथक में एक नया आयाम यह प्रस्तुत किया कि इच्छाधारी सर्पणी स्त्री के रूप में प्रस्तुत हो सकती है। श्रीदेवी और ऋषि कपूर अभिनीत फिल्म ‘नगीना’ में एक इच्छाधारी सर्पणी के मानवीय स्वरूप से नायक को प्रेम हो जाता है। नतीजतन, नागिन अब अपने मूल स्वरूप में जाना ही नहीं चाहती। सपेरा, अमरीश पुरी अपने साथियों सहित वहां आकर बीन बजाते हैं ताकि अपने मूल स्वरूप में नागिन लौट जाए। फिल्म में नायिका के भीतरी द्वंद्व को प्रस्तुत किया गया है। वह मानव स्वरूप में ही टिकी रहती है। संगीतकार प्यारे लाल को एक ही सपेरा मिला। वे क्ले वॉयलिन का उपयोग नहीं करना चाहते थे। सपेरे से रिकॉर्डिंग माइक को अलग-अलग दूरी पर रख कर मिक्सिंग के जादू से मनचाहा प्रभाव पाया। लक्ष्मीकांत प्राय: गीत की धुन बनाते थे और प्यारेलाल रिकॉर्डिंग स्टूडियो में वादकों की संख्या जगह तय करते थे। लक्ष्मीकांत की मृत्यु के बाद प्यारेलाल अभी हमारे बीच हैं। दोनों ने ‘पारस मणि’ फिल्म में गीत बनाया ‘वो जब याद आए बहुत याद आए ग़म-ए-ज़िंदगी के अंधेरे में हमने चिराग-ए-मुहब्बत जलाए बुझाए...।’ जाने वाले संगीत के जादूगर बहुत याद आते हैं। दास्तां बयां करते-करते वे लोग सो गए, सुनने वाले जाग रहे हैं।
गोयाकि नाग पंचमी के दिन सांप को दूध पिलाने की परंपरा है साथ ही कुछ नगद भी दिया जाता है। इस तरह सांप एक परिवार की रोजी-रोटी का जरिया बन जाता है और मनुष्य प्यार जिससे पाता है, उसी के सीने में खंजर मारता है।
सांप हमारी माइथोलॉजी का हिस्सा है। भगवान विष्णु समुद्र तल में सर्प शय्या पर लेटे रहते हैं, तो भगवान शिव हिमवत की चोटी पर सर्प गले में बांधे विराजते हैं। अधिकांश सर्प विषैले नहीं होते हैं। इसीलिए मंत्र फूंक कर जहर उतारने वालों की रोजी चलती है। कोबरा के दांत के पीछे जहर की एक छोटी सी पोटली होती है। उसके काटते ही जहर की पोटली फूटती है। अत: सांप के दांत जहरीले नहीं होते। सर्प किवदंतियों पर फिल्में बनी हैं। एनाकोंडा शृंखला लोकप्रिय रही है। कहते हैं कि सांप और नेवले की लड़ाई में नेवला भारी पड़ता है। चीन में सांप का सिर काटकर फेंक देते हैं और शेष हिस्सा पकाकर खाया जाता है।
राजा राव का उपन्यास ‘सरपेंट एंड द रोप’ कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है। अंधेरे में मनुष्य का पैर रस्सी पर पड़ता है, वह समझता है कि सांप ने काटा है। वह मर जाता है। यह मृत्यु भय से हुई है। इसीलिए व्यवस्थाएं भय का हव्वा खड़ा कर देती हैं। शैलेंद्र रचित एक गीत स्वयं सचिन देव बर्मन ने गाया है, ‘वहां कौन है तेरा, मुसाफ़िर, जाएगा कहां, दम लेले घड़ी भर, ये छैयां पाएगा कहां..’ शैलेंद्र की पंक्ति है ‘आज क्यों नाचे सपेरा... बीन बजाता है।’ सांप उसके शरीर के हिलने की नकल करता है, जिसे अवाम नृत्य समझता है। शैलेंद्र का जीनियस है कि वे हतप्रभ अवाम से कहते हैं आज क्यों नाचे सपेरा...? आम आदमी के मत से व्यवस्था का निर्माण होता है गोयाकि गणतंत्र व्यवस्था में आम आदमी सपेरा है परंतु जीवन में आम आदमी ही नाच रहा है।