‘उठती है हर निगाह खरीदार की तरह’ / जयप्रकाश चौकसे

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‘उठती है हर निगाह खरीदार की तरह’
प्रकाशन तिथि : 20 अप्रैल 2020


महामारियों का इतिहास पुराना है और हर दौर में मनुष्य ने उपचार भी खोजे हैं। मनुष्य कभी पराजय स्वीकारता नहीं। वह अपराजेय योद्धा है। क्षय रोग पोलियो, मलेरिया इत्यादि से बचे रहने के लिए बचपन में टीके लगाए जाते हैं। मीजल्स और स्माल पॉक्स के टीके भी बांह पर लगाए जाते हैं और उनके निशान ताउम्र कायम रहते हैं। छद्म आधुनिकता से ग्रस्त माता-पिता बांह की जगह शरीर के अन्य स्थान पर टीके लगाने का आग्रह करते हैं, क्योंकि उन्हें इस तरह की निरर्थक चिंता है कि बड़ी होने पर उनकी पुत्री स्लीवलैस ब्लाउड धारण करेगी तो टीके का निशान दिखना नहीं चाहिए। महिला के ब्लाउज की बांह घटती-बढ़ती रहती है। फैशन चक्र का क्षेत्रफल महिला की बांह तक ही सिमटा है। विचारों की संकीर्णता का हाल भी कुछ इसी तरह है। स्मॉल पॉक्स को अवाम सीतला माता कहता रहा है, चेचक को गोदना माता कहते हैं, मीजल्स को खसरा कहा जाता है। मनुष्य जिन बातों को समझ नहीं पाता, उनके नाम देवी-देवता पर रख देता है।

पंजाब के सिख परिवार में जन्मी हरिकीर्तन कौर को फिल्मकार केदार शर्मा ने ‘बावरे नैन’ नामक फिल्म में अवसर दिया और वह रातोंरात सितारा हो गई। केदार शर्मा ने ही उसका फिल्मी नाम गीताबाली रखा। भगवान दादा सीमित बजट की फिल्मों में अभिनय करते थे। जब उन्होंने ‘अलबेला’ बनाने का विचार किया तो कोई शिखर महिला सितारा उस फिल्म में काम करना नहीं चाहती थी। गीताबाली सहर्ष तैयार हो गई और फिल्म को भारी सफलता मिली। गीताबाली इतनी उदारमना थी कि उन्होंने कभी भेदभाव नहीं किया। वे सभी तरह की संकीर्णता से मुक्त थीं।

गीताबाली और शम्मी कपूर को प्रेम हुआ और इन मस्तमौला लोगों ने अलसभोर में एक मंदिर में विवाह कर लिया। शम्मी कपूर गीताबाली से दो वर्ष छोटे थे। केदार शर्मा ‘रंगीन रातें’ नामक फिल्म बना रहे थे और उस फिल्म की नायिका का चयन वे कर चुके थे। गीताबाली के लिए कोई भूमिका नहीं थी। फिल्म के नायक शम्मी कपूर थे और गीताबाली उनके साथ अधिक समय गुजारना चाहती थी। अत: गीताबाली ने जिद करके फिल्म में एक पुरुष भूमिका अभिनीत की। फिल्म असफल रही, क्योंकि दर्शक को लगा कि गीताबाली अपना असली स्वरूप जाहिर करेगी।

बहरहाल, फिल्मकार धीर ने गीताबाली को राजिंदर सिंह बेदी की रचना ‘एक चादर मैली सी’ से प्रेरित पटकथा सुनाई। गीताबाली को पटकथा इतनी अच्छी लगी कि फिल्म निर्माण में पूंजी भी लगाई। ‘रानो’ नामक इस फिल्म में धर्मेंद्र नायक रहे। कुछ समय पश्चात गीताबाली बीमार पड़ी। उन्हें स्मॉल पॉक्स हुआ और बचपन में टीका नहीं लगने के कारण रोग जंगली घास की तरह उनके शरीर में फैल गया। उनकी मृत्यु हो गई। जिस मंदिर में विवाह हुआ था, उसके निकट स्थित श्मशान में उनका दाह संस्कार किया गया। शम्मी कपूर को यह भरम रहा कि फिल्म की आउटडोर शूटिंग में रोगाणु ने गीताबाली को रोगी बनाया। उन्होंने रेमनॉर्ड लेबोरेटरी जाकर फिल्म के निगेटिव व पॉजिटिव तथा ध्वविपट्ट को ही नष्ट कर दिया। इस तरह विश्व सिनेमा की धरोहर बन सकने वाली फिल्म नष्ट कर दी गई। ज्ञातव्य है की कुलदीप कौर नामक कलाकार की मृत्यु टिटेनस से हुई थी।

कुछ दशक बाद दाढ़ी बनाने के ब्लेड बनाने वाली कंपनी के द्वारा पूंजी निवेश से ‘एक चादर मैली सी’ बनी, जिसमें हेमा मालिनी और ऋषि कपूर ने देवर-भाभी की भूमिकाएं अभिनीत की। फिल्म में देवर-भाभी की उम्र में 10 वर्ष का अंतर है। हालात ऐसे हो जाते हैं कि आर्थिक मजबूरियों के कारण देवर को विधवा भाभी से विवाह करना पड़ता है और उन्हें तन-मन से रिश्ता स्वीकार करना होता है। इस घटना के कई वर्ष पश्चात राजिंदर सिंह बेटी ने संजीव कुमार और रेहाना सुल्तान अभिनीत फिल्म ‘दस्तक’ बनाई। ‘दस्तक’ में मदनमोहन और मजरूह ने माधुर्य रचा था। गीत- ‘माई री मैं कासे कहूं..’ और ‘हम हैं माताए कूचे ओ…’ काफी लोकप्रिय हुए।