‘एक कहानी यह भी’ कहने वाली मन्नू भंडारी की साहित्यिक यात्रा / स्मृति शुक्ला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन्नू भंडारी हिन्दी की सफल और प्रतिष्ठित कहानीकार हैं। उनकी कहानियाँ व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभूतियों से बुनी गई है। उन्होंने अपनी 'प्रिय कहानियाँ' की भूमिका में लिखा है-" जिन रचनाओं में अपनी और दूसरों की बात इस तरह घुल-मिल गई हैं, वह इतनी अधिक संभावनाओं से भरी होती हैं कि प्रायः समय-समय पर उनकी नई व्याख्याएँ और नए पक्षों का उद्घाटन होता रहता है। मन्नू भंडारी का जन्म 03 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में हुआ। मन्नू भंडारी की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर में हुई। यहाँ के सावित्री कन्या उच्च विद्यालय से उन्होंने मैट्रिक तथा 1947 ई. में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। कलकत्ता से उन्होंने बी.ए और बनारस से एम.ए. किया। 22 नवंबर 1959 ई. में उनका विवाह हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव के साथ हुआ। छठे दशक में नई कहानी आंदोलन में राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कमलेश्वर जैसे कहानीकारों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। इसी समय उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोवती और मृदुला गर्ग ने भी हिन्दी कथा-संसार में प्रवेश किया। मन्नू भंडारी की पहचान उनकी सहजता अनुभव की प्रामाणिकता से है। स्त्री के हृदय में उठने वाले भावों का और स्त्रियों के प्रति पुरुषों के दृष्टिकोण का चित्रण उन्होंने अपने कथा-साहित्य में किया है। पारिवारिक जीवन और दाम्पत्य जीवन के चित्र भी इन कहानियों में उपस्थित हैं। मन्नू भंडारी की कहानियों के अनेक पात्र वास्तवित जीवन से लिये गए हैं। बाद की कहानियों में उन्होंने, व्यंग्य का पुट भी दिया है। 'मै हार गयी' , 'तीन निगाहों की एक तस्वीर' , 'यही सच है' , 'एक प्लेट सैलाव' , 'त्रिशंकु' और 'मेरी प्रिय कहानियाँ' , उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं। मन्नू भंडारी के 'आपका बंटी' , 'महाभोज' और 'स्वामी' आदि उपन्यासों ने अपनी वस्तुगत श्रेष्ठता और कलागत वैशिष्ट्य के कारण हिन्दी उपन्यास-जगत् में काफी धूम मचाई। 'एक इंच मुस्कान' उन्होंने राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर लिखा तथा 'बिना दीवारों का घर' शीर्षक से एक नाटक भी लिखा है। बाल साहित्य में उन्होंने बच्चों के लिए उपन्यास और बाल कहानियाँ लिखीं। मन्नू भंडारी की 'कहानी यही सच है' पर हिन्दी फीचर फिल्म 'रजनीगंधा' बनी, जिसने अपार लोकप्रियता प्राप्त की। मन्नू भंडारी जी ने कई धारावाहिकों की पटकथा भी लिखी है, जिनमें रजनी, 'निर्मला' , 'स्वामी' , 'दर्पण' और 'अकेली' प्रमुख हैं। 'कथा-पटकथा' शीर्षक से उन्होंने विधागत पुस्तक भी लिखी। मन्नू भंडारी ने उन स्थितियों घटनाओं और पात्रों पर लिखा, जो उनकी संवेदनाओं का हिस्सा बनी थी। मन्नू भंडारी जी अत्यंत स्वाभिमानी तथा संवेदनशील लेखिका थी। उन्हें 'पद्मश्री' सम्मान प्राप्त हुआ था; लेकिन आपात्काल के विरोध में उन्होंने वह सम्मान लौटा दिया था। साहित्य कला परिषद का पुरस्कार भी उन्होंने लौटा दिया था। कारण यही था कि वे पुरस्कार के लिए नहीं लिखती थीं। हिन्दी अकादमी ने जब उन्हें साहित्य और भाषा की विशिष्ट सेवा का पुरस्कार दिया, तो उन्होंने पुरस्कार तो ग्रहण किया; लेकिन इससे प्राप्त राशि समाजसेवी संस्था को दान कर दी। इतना यश और सम्मान प्राप्त करने के बाद वे अत्यंत सहज, आत्मीयता और संवदेनाओं से आपूरित रहीं।

'आपका बंटी' उपन्यास का बंटी भी एक सच्चा चरित्र है। बंटी की जन्मकुंडली कैसे मन्नू भंडारी के मस्तिष्क में बनी, यह मन्नू जी ने स्वयं लिखा है-"वास्तव में देखा जाए, तो जिंदगी को चलाने और निर्धारित करने वाली कोई भी स्थिति कभी इकहरी नहीं होती, उसके पीछे एक साथ अनेक और कभी-कभी बड़ी विरोधी प्रेरणाएँ निरन्तर सक्रिय रहती हैं। उन सबको सच्चाई के साथ अनेक स्तरों पर पकड़ना और मानवीय सहानुभूति के साथ चित्रित करना आसान बिल्कुल नहीं है। यह बिल्कुल स्पष्ट था कि त्याग और दया, क्षुद्रता और महानता, प्रतिशोध और क्षमा, संकीर्णता और उदारता इन सभी को एक ही समय में, एक ही व्यक्ति संपूर्ण जटिलता और अन्तर्विरोध में जी सकता है। शकुन और बंटी दोनों के चरित्र की वास्तविकता है, परोक्ष रूप से अजय के जीवन की वास्तविकता भी यही है। 'आपका बंटी' उपन्यास के केन्द्र में एक ऐसा बच्चा है जिसके माँ-बाप में अनबन है और इसकी परिणति होती है दोनों अलगाव में। बंटी की माँ का डॉ. जोशी से दूसरा विवाह करना बंटी के मन को आहत करता है। वह अपने पिता अजय के स्थान पर डॉ. जोशी को स्वीकार नहीं कर पाता।" (आधुनिक हिन्दी उपन्यास-संपादक भीष्म साहनी, पृ। 155 लेखिका का वक्तव्य)

मन्नू भंडारी की कहानियों की नायिकाओं के रूप में स्त्री के अनेक रूप हैं। अलग-अलग वर्गों की ये स्त्रियाँ अलग-अलग समस्याओं से जूझ रही हैं। समाज की खोखली मान्यताओं और रूढ़ियों की चक्की में पिसती स्त्रियाँ या तो अपनी स्थितियों से समझौता करती हैं या विद्रोह करती हैं। 'इनकम टैक्स और नींद' कहानी की नायिका डॉ. महिमा और 'नई नौकरी' की रमा 'रानी माँ का चबूतरा' कहानी की गुलाबी और 'कथा' कहानी की आनंदी, 'मैं हार गई' कहानी की नायिका रानी तथा 'ऊँचाई' कहानी की नायिका शिवानी समाज और जीवन की सच्चाइयों का सामना करती हैं वे कोरे आदर्श को लेकर चलने वाली स्त्रियाँ नहीं हैं, वरन परिस्थतियों से संघर्ष कर अपनी राह बनाने वाली स्त्रियाँ हैं। मन्नू भंडारी की कहानियों में पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के अनेक कोण हैं। प्रेम, विवाह, पुरुष का अहं, स्त्री को देखने का नजरिया, विवाहेतर सम्बंध या आकर्षण, नारी-शोषण, स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता और चेतना सम्पन्नता से उसकी सोच में आये बदलाव आदि उनकी कहानियों के विषय हैं।

मन्नू भंडारी ने अपनी आत्मकथा एक कहानी यह भी में 'स्पष्टीकरण' शीर्षक से लिखा है कि-"अपनी कहानी लिखते समय सबसे पहले तो मुझे अपनी कल्पनाओं के पर ही कतर कर एक ओर सरका देने पड़े, क्योंकि यहाँ तो निमित्त भी मैं ही थी और लक्ष्य भी मैं ही... यह शुद्ध मेरी ही कहानी है और इसे मेरा ही रहना था, इसलिए न कुछ बदलने-बढ़ाने की आवश्यकता है, ना काटने-छाँटने की यहाँ मुझे केवल उन स्थितियों का ब्यौरा प्रस्तुत करना था, वह भी जस का तस जिनसे मैं गुजरी थी। दूसरे शब्दों में कहूँ, तो जो कुछ मैंने देखा जाना, अनुभव किया, शब्दशः उसी का लेखा-जोखा है यह कहानी।"

मन्नू भंडारी की यह आत्मकथा यह बताती हैं कि उन्होंने राजेन्द्र यादव से विवाह इसलिए किया था कि उनके लेखन के लिए अनुकूल वातावरण मिलेगा। राजेन्द्र यादव स्वयं लेखक हैं इसलिए उनका साथ मेरे सृजनधर्मी व्यक्तित्व को पोषित करेगा और मार्ग प्रशस्त करेगा। वे लिखती हैं-"विवाह के पूर्व मोहन राकेश ने उन्हें चेताया था, समझाया था कि मन्नू तुम एक लेखक से विवाह मत करो। निहायत अनिश्चित, अस्थिर जिंदगी से बँधकर तुम सुखी नहीं रह पाओंगी।" लेकिन मन्नू भंडारी की भीतर जो सृजनधर्मी चेतना थी, उस कारण उन्हें लगता था कि वे एक लेखक के साथ ही सुखी रह सकती हैं और अच्छा लिख सकती हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि यह निर्णय उन्होंने पूरे परिपक्व मन से लिया था। लेकिन मन्नू भंडारी का सोचा हुआ असल जिंदगी में उनकी सोच के अनुसार प्रतिफलित नहीं हुआ। परिवार की पूरी जिम्मेदारी नौकरी के साथ उन्होंने अकेले उठाई। चाहे उनकी खुद की बीमारी हो या बच्ची की। इस कठिन समय में पति राजेन्द्र यादव साथ देने के लिए कभी खड़े नहीं रहे। इस लेखिका के पारिवारिक और भावात्मक संसार, लेखन तथा सृजनात्मक जीवन के साथ स्त्री के जीवन संघर्षों को भी यह आत्मकथा चित्रित करती है। इस आत्मकथा को पढ़ते हुए पाठकों को अनेक साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ भी मिलते हैं। मन्नू भंडारी ने इसमें अपने महाविद्यालय की हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का बहुत सम्मान से जिक्र किया है, जिन्होंने मन्नू जी को साहित्य की दुनिया में बाकायदा प्रवेश कराया। अपने पिता पर मन्नू भंडारी ने विस्तार से लिखा तथा पुरुष के रूप में उनकी जो अच्छाइयाँ थीं या उनके जीवन के जो अंतर्विरोध थे, उन्हें भी पूरी ईमानदारी से चित्रित किया। पति राजेन्द्र यादव के विषय में लिखा है-" इसमें कोई संदेह नहीं कि मेरे लेखकीय व्यक्तित्व को राजेन्द्र ने जरूर प्रेरित किया और प्रोत्साहित किया... इनके साथ मिलने वाला साहित्यिक वातावरण, होने वाली गोष्ठियाँ मेरे प्रेरणा स्रोत भी रहे। लेकिन मेरे व्यक्तित्व का पत्नी रूप? इस पर राजेन्द्र जो और जैसे प्रहार करते रहे, उसका परिणाम तो मेरे लेखक ने ही भोगा। निरंतर खंडित होते आत्मविश्वास से लेखन में आए गतिरोध का जो सिलसिला शुरू हुआ, अंततः उसके पूर्ण विराम पर ही समाप्त हुआ।

निष्कर्षतः मन्नू भंडारी ऐसी सशक्त कहानीकार हैं, जो स्त्री विषयक मुद्दों को अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाती हैं। नारी जीवन की सारी रेखाओं से निर्मित उनका कथा संसार स्त्री-जीवन के अनेक वातायन खोलता है; लेकिन वे स्त्रीवादी लेखिकाओं की तरह न तो बोल्ड लेखन करती हैं, न परिवार और विवाह संस्था के खिलाफ जाती हैं; उनका उद्देश्य इन संस्थाओं की कमियों को उजागर करना था। वे स्त्री के प्रति समाज के नजरिये को परिष्कृत करना चाहती थी। एक कथाकार के रूप में मन्नू भंडारी ने हिन्दी साहित्य को अमूल्य योगदान दिया है।