‘चक दे इंडिया’ और महाकवि कबीर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 फरवरी 2020
हाल ही में आदित्य चोपड़ा और निर्देशक शामित अमीन की शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘चक दे इंडिया’ दूसरी बार देखने का अवसर मिला। यह फिल्म पुन: इस तथ्य को रेखांकित करती है कि भारत का अस्तित्व उसकी विविधता में एकता नामक आदर्श के कारण ही बना हुआ है, जिसे खंडित करने के प्रयास लगातार हुए हैं। ज्ञातव्य है कि शामित अमीन यूगांडा से एक तानाशाह द्वारा खदेड़े गए लोगों में से एक रहे हैं। उनका दर्द फिल्म की हर फ्रेम में नजर आता है। फिल्म का सार यह है कि भारत महाकवि कबीर की विविध रेशों से बुनी हुई चादर की तरह ही रहा है। महाकवि कबीर हर कालखंड में प्रासंगिक रहे हैं और आज सबसे अधिक हैं। पारंपरिक शिक्षा से वंचित संत कवि कबीर सदियों से पढ़े-लिखे लोगों का आदर्श रहे हैं। उनके ‘ढाई आखर प्रेम’ की धुरी पर साहित्य सदियों से घूम रहा है।
फिल्मकार के नायक का नाम भी कबीर है। वह भारत की महिला हॉकी टीम का कोच है। प्रशिक्षण कैम्प में विविध प्रांतों से आए हुए खिलाड़ी अपने साथ अपनी प्रांतीयता की संकीर्णता भी लाए हैं। एक घटना द्वारा उन खिलाड़ियों का एक टीम बनना दिखाया गया है। रेस्तरां में जब एक अहंकारी पुरुष महिला खिलाड़ी का अपमान करता है तो सारी महिलाएं दंभी लोगों की जमकर पिटाई करती हैं। इस घटना से उन्हें एकता और टीम स्पिरिट का महत्व समझ में आता है।
भारत में खेलों का नियंत्रण करने वाले आला अफसर महिला टीम को धन नहीं देना चाहते। यह तय किया जाता है कि पुरुष टीम और महिला टीम के बीच मैच खेला जाएगा और परिणाम तय करेगा कि महिला टीम को धन दिया जा सकता है क्या? रोमांचक मैच में पुरुष टीम जीत जाती है, परंतु सभी पुरुष खिलाड़ी महिलाओं के जुझारूपन की प्रशंसा करते हैं। कमेटी महिला टीम को धन उपलब्ध कराती है। एक क्रिकेट खिलाड़ी की सगाई महिला हॉकी टीम की एक सदस्य से तय की गई है। महिला तर्क देती है कि सगाई की रस्म टूर्नामेंट के बाद भी की जा सकती है, परंतु क्रिकेट खिलाड़ी महिला हॉकी टीम को हेय समझता है। रिश्ते की इसी गांठ को फाइनल मैच में खोला गया है, जब दो महिलाओं के बीच अधिकतम गोल मारने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। यह ज्ञात होते ही कि किसी दंभी पुरुष को सबक सिखाना है, गोल मारने का अवसर उसे दिया जाता है। खिलाड़ियों के बीच एकता की भावना उनके व्यक्तिगत रिश्तों में पड़ी गठानों को भी खोल देती है।
‘चक दे इंडिया’ महज एक खेल फिल्म नहीं है, वरन् यह भारत के समाज का आईना भी है। इस कथा का नायक कोच कबीर है। भारतीय टीम की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए मैच में उससे एक भूल हो जाती है जो किसी भी खिलाड़ी से हो सकती है, परंतु उसके धर्म के कारण यह अफवाह फैलाई जाती है कि उसने जान-बूझकर गलती की है। उसके पुश्तैनी घर की दीवार पर गद्दार लिख दिया गया है। बाद में सभी जान जाते हैं कि महिला टीम को एकता के सूत्र में बांधने का काम कबीर ने किया है और उसकी खेल नीति के कारण ही टीम ने विश्वकप जीता है।
टीम भारत लौटती है तो क्रिकेट खिलाड़ी महिला से विवाह का प्रस्ताव रखता है। महिला कहती है कि यह एक तरफा रिश्ता युवक की तरफ से था, परंतुु अब मेरी भी अपनी अलग पहचान बन चुकी है। अत: इस एक तरफा रिश्ते से वह इनकार कर देती है। इस तरह इस महान फिल्म में बहुत गहराई है और अर्थ की अनेक परतें भी हैं। फिल्म के अंतिम दृश्य में कोच कबीर अपने पुश्तैनी घर लौटता है। पूरा मोहल्ला परेशान है। एक बालक दीवार पर लिखे हुए गद्दार शब्द को मिटा देता है। कबीर अपनी हॉकी स्टिक उस बच्चे को देता है। यह प्रतीक है कि एक पीढ़ी अपना अनुभव और विरासत युवा पीढ़ी को दे रही है।
फिल्म में बार-बार महाकवि कबीर दास जी की पंक्तियां दोहराई गई हैं। दूरदर्शन ने अन्नू कपूर अभिनीत ‘कबीर’ नामक फिल्म बनाई थी। उसका पुन: प्रदर्शन किया जाना चाहिए। कबीर ऐसी दवा है, जिससे समाज को लगे सभी रोगों का इलाज किया जा सकता है। पेनीसिलीन की खोज के पांच सौ वर्ष पूर्व कबीर नामक एंटीबायोटिक हमें प्राप्त हो चुका था।