‘पूस की रात’ होरी पर लाठीचार्ज? / जयप्रकाश चौकसे

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‘पूस की रात’ होरी पर लाठीचार्ज?
प्रकाशन तिथि : 03 जनवरी 2021

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भारत के शिखर लेखक प्रेमचंद की कथा ‘दो बैलों की कहानी’ से प्रेरित फिल्मकार जेटली ने ‘हीरा मोती’ नामक फिल्म बनाई थी। सत्यजीत रे ‘सद्गति’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ बना चुके हैं। ‘गोदान’ पर भी राज कुमार अभिनीत फिल्म बन चुकी है। गुलजार ने दूरदर्शन के लिए ‘कफन’ बनाई थी। ‘गोदान’ में किसान वेदना का विवरण है। एक भाई के पास गाय है। किसान की आर्थिक हालत उसके पाले हुए जानवरों से आंकी जाती है। नायक का भाई ईर्ष्या करता है। वह अपने भाई की गाय को जहर दे देता है। अपने अपनों के बीच दरार होती है। नायक की जद्दोजहद एक गाय खरीदने की। कहानी के किसान का नाम होरी है, पत्नी का नाम धनिया और पुत्र का नाम गोबर है। गांव में कृषि संबंधित नाम ही रखे जाते हैं। शहरों में नाम रखने मैं अधुनिकरण हुआ है।

किसान अन्न उपजाता है परंतु उसका जीवन अभावों में ही कटता है। वर्तमान में किसान आंदोलन में यह स्पष्ट किया जा रहा है कि उन्हें अपनी फसल का मूल्य मिलेगा परंतु फसलों को खरीदने का अधिकार देश के दो पूंजी पतियों को मिलेगा। आम जनता को अनाज के महंगे दाम चुकाने होंगे। इस कारण महंगाई बढ़ेगी। दो वर्ष पश्चात वैश्विक आर्थिक मंदी के समय आवाम की कठिनाइयां बढ़ेंगी। इस तरह यह आंदोलन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। टीवी पर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरित सीरियल दिखाया जाएगा। उसकी पहली झलक में ही बाल अवस्था में अहिल्याबाई कहती है कि सोने और चांदी से अधिक महत्वपूर्ण है अनाज। आश्चर्य है कि अहिल्याबाई की नगरी इंदौर के आसपास के गांव में किसान सांकेतिक हड़ताल भी नहीं कर पा रहे हैं। खौफ की चादर ने सारा आकाश घेर लिया है। तथ्य है कि पूरे भारत में एक बेचैनी और खामोशी छाई हुई है। विरोध व्यक्त करने वालों के तमाम रिश्तेदार और मित्रों के घर आयकर व ईडी का छापा पड़ जाता है। गेहूं के साथ घुन भी पिस रहा है। सचमुच ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ बरतनी चाहिए। ज्ञातव्य है कि प्रेमचंद कुछ समय के लिए मुंबई आए थे परंतु उन्हें पटकथा की तथाकथित तकनीकी उलझनों से डरा दिया गया। राजेंद्र सिंह बेदी कुछ समय तक संवाद लेखन करने में सफल हो गए। अभी तक ‘देवदास’ प्रेरित सभी फिल्मों में उनका यह संवाद उपयोग में लाया गया है। ‘कौन कमबख्त कहता है कि मैं शराब पीता हूं...चंद्रमुखी तुम्हें बर्दाश्त करने के लिए और पारो की याद को भुलाने के लिए...’।

दरअसल हम जिसे अधिक भुलाना चाहते हैं वह उतना अधिक याद आता है। यादें तो उन मवेशियों की तरह है जो अपने आप गोधूली के समय अपने ठिहे पर पहुंच जाती हैं। जाने कैसे कुछ परंपराएं बन जाती हैं। मृत्यु के समय को दान करने पर मनुष्य स्वर्ग जाता है। क्या हिटलर और उस जैसे लोग गोदान करके स्वर्ग जा सकते हैं? इस तरह तो स्वर्ग में भी गेस्टापो (हिटलर की सीक्रेट पुलिस) घटित होने लगे। हिटलर ने उन लोगों को दंडित किया था जिनके घर किताबें मिलीं। उसका एक अफसर मन ही मन शर्मसार है कि उसके घर किताब नहीं मिली! आज तो सरकारी और गैर सरकारी वाचनालय नदारद हो गए हैं। ‘किताब घर’ नामक दुकान शहरों में कम बची हैं। वह दिन दूर नहीं जब घरों में किताबें छुपा कर रखना पड़ेंगी या दस्तानों के मुताबिक वे तलघर में छुपा दी जाएंगी। क्या दफन की गई किताब का भूत बन जाता है? कविता प्रेत आत्मा बन जाती है संगीत पर भूत-प्रेत और चुड़ैलें नृत्य करेंगी। जिंदगी में तुझसे परेशान नहीं हैरान हूं कि संपूरण सिंह पंजाब किसान आंदोलन पर कविता नहीं लिख रहे हैं। यह गर्व की बात है कि सेना से सेवानिवृत्त व्यक्ति उस सड़क की सफाई कर रहा है जहां किसान आंदोलन कर रहे हैं। हड़ताल पर बैठे हुए किसानों के पुत्र देश की सरहद की रक्षा का कार्य करते हुए परेशान भी हैं और हैरान भी हैं। क्या होरी को उसके भाई द्वारा मारी गई गाय ही स्वर्ग लेकर गई होगी। जय किसान...जय जवान...जय हिंद।