‘बदला’ एक और अदालत केंद्रित फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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‘बदला’ एक और अदालत केंद्रित फिल्म
प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2019


अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म 'पिंक' इतनी सफल रही कि बोनी कपूर इसे तमिल भाषा में चेन्नई के कलाकारों के साथ बना रहे हैं और इसकी डबिंग तेलुगु और कन्नड़ भाषा में भी की जाएगी। इस वर्ष 23 मार्च को 'बदला' नामक फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है। इसमें अमिताभ बच्चन अदालत में तापसी पन्नू का केस लड़ते नज़र आएंगे। पन्नू अभिनीत पात्र पर कत्ल करने का आरोप है। 'पिंक' अमिताभ बच्चन की श्रेष्ठ अभिनीत फिल्मों में से एक मानी जाती है। फिल्म में मुकदमे की पैरवी करते समय उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार दिखाई गईं। अतः फिल्म के व्यक्तिगत जीवन में वे गंभीरतम दुख से गुज़र रहे हैं और एक कठिन मुकदमे की पैरवी कर रहे हैं। इस मुकदमे से जुड़े चारों युवा धनाढ्य परिवारों के चश्मों चिराग हैं और वे दोषी हैं। पिंक अत्यंत रोचक फिल्म थी।

बहरहाल फिल्म 'बदला' भी एक अदालत केंद्रित फिल्म है। हिंदी सिनेमा में अदालत के दृश्य अत्यंत नाटकीय एवं यथार्थ से बहुत अलग प्रस्तुत किए जाते हैं। वकीलों द्वारा चीखना-चिल्लाना उन दृश्यों को मंडी के दृश्य के समान बना देता है। कुछ गवाहों को हंसोड़ पात्र की तरह रचा जाता है। दशकों पूर्व बलदेव राज चोपड़ा की फिल्म 'कानून' में जज पर ही कत्ल का आरोप लगता है तो मामला सनसनीखेज हो जाता है। परंतु क्लाइमैक्स में जज के हमशक्ल के गुनाह किए जाने की बात प्रस्तुत करके मामला कुछ ऐसा बन गया कि खोदा पहाड़ और निकली चूहिया। हमारे फिल्मकार प्राय: पतली गली से भाग निकलते हैं। अगाथा क्रिस्टी का अदालत केंद्रित नाटक 'माउस ट्रैप' इंग्लैंड में दशकों तक मंचित हुआ और कलाकार बदलते रहे। शेक्सपीयर के नाटक 'मर्चेंट ऑफ वेनिस' में सूदखोर महाजन ने एक पात्र को कर्ज दिया है और समय पर नहीं लौटाने के दंड स्वरूप वह पात्र के शरीर के किसी भी भाग से एक पाउंड गोश्त निकाल सकता है। वकीले सफाई कहता है कि मांस निकालते समय एक बूंद रक्त भी नहीं बहना चाहिए, क्योंकि अनुबंध में खून गिरने के बारे में कुछ नहीं लिखा है। इस तरह सूदखोर महाजन को शिकस्त खानी पड़ती है। वकीले सफाई आरोपी की प्रेमिका पोर्शिया है। सच तो यह है कि किसी महिला का पुरुष रूप धारण करना भी एक अपराध है। हर वकील को अपनी डिग्री और आरोपी द्वारा मुकदमा लड़ने का आज्ञा पत्र प्रस्तुत करना होता है। राज कपूर की सबसे अधिक लोकप्रिय फिल्म 'आवारा' के अदालत के दृश्य में नायक पर कत्ल का आरोप है और सरकारी वकील द्वारा पुत्री की तरह पाली गई युवती आरोपी की वकीले सफाई है। इस दृश्य में जज की भूमिका में पृथ्वीराज कपूर के पिता प्रस्तुत हुए थे गोयाकि कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने एक ही दृश्य में अभिनय किया था। इस दृश्य के अंत में नायक बयान देता है 'अपराध के कीड़े जन्म से ही मेरे खून में नहीं थे, ये अपराध के कीड़े मुझे उस गंदी गटर से मिले जो हमारी झोपड़पट्टी के पास बहता है और आज भी गटर वहीं से गुजर रही है। आप बच्चों को उन कीड़ों से बचा लीजिए...' कितने अवसाद की बात है कि आज भी नगरों में झोपड़पटि्टयां हैं और गंदे नाले वहां से गुजर रहे हैं।

महानगर मुंबई में एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्‌टी धारावी आज भी जस की तस मौजूद है। तथाकथित विकास का हवाई जहाज झोपड़पट्‌टी के ऊपर से उड़ता है। सांताक्रू;;ज विमान स्थल के पास बसी यह बस्ती एक प्रश्न है, जिसका समाधान किसी नेता के पास नहीं है। अधिकांश कॉर्पोरेट मुख्यालय मुंबई में स्थित हैं और देश का अधिकांश धन मुंबई में जमा होता है। अधिकांश गगनचुंबी बहुमंजिला इमारतों के आंगन में झोपड़पटि्टयां बसी हैं, क्योंकि इन अमीरों की सेवा चाकरी करने वाले लोग वहां बस गए हैं। बहरहाल, अमिताभ बच्चन व तापसी पन्नू अभिनीत अदालत केंद्रित फिल्म 'बदला' अत्यंत रोचक हो सकती है।

अरसे पहले शशि कपूर अभिनीत 'देल्ही टाइम्स' नामक फिल्म में एक सरकारी अतिथि गृह में एक विधायक का कत्ल हो जाता है और एक नेता नायक को बताता रहता है कि वह कातिल को कैसे खोज निकाल सकता है। इस मार्गदर्शन के सहारे कातिल पकड़ा जाता है परंतु बाद में नायक को ज्ञात होता है कि परामर्श देने वाला नेता ही असली कातिल है और वह स्वयं एक बच्चे की तरह असली कातिल के खिलौने की तरह कार्य करता रहा है। बहरहाल, अदालत का सबसे अधिक मानवीय करुणा जगाने वाला दृश्य संजीव बख्शी के उपन्यास 'भूलन कांदा' में वर्णित है और इसी रचना से प्रेरित फिल्म बनी भी चुकी है परंतु उसके प्रदर्शन का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उसमें किसी सितारे ने अभिनय नहीं किया है। विगत दशकों में प्रदर्शित नहीं हो पाने वाली फिल्मों की रीलों से भारत की सारी सरहदें बांधी जा सकती हैं। ये अभागी फिल्में मीलों लंबी हैं। अक्षय कुमार और सौरभ शुक्ला अभिनीत अदालत केंद्रित 'जॉली एलएलबी 2' में जज महोदय अपनी मेज पर रखे एक नन्हे पौधे में पानी डालते रहते हैं। गोयाकि न्याय का पौधा सूख न जाए। यह प्रतीकात्मक ढंग से अभिव्यक्त हुआ है। वर्तमान में गणतंत्र व्यवस्था का न्यायालय पक्ष ही बचा हुआ है। अन्य सारे स्तंभ ध्वस्त किए जा चुके हैं। यह भी याद आता है कि 'पिंक' में जज का नाम सत्यजीत है गोयाकि फिल्मकार अपने देश के सबसे महान फिल्मकार सत्यजीत रॉय को आदरांजलि दे रहा है। साथ ही जज की सत्य की जीत संभव करता है।