‘बुराँश के उस पार’: हर कदम पर रोमांच / रश्मि विभा त्रिपाठी

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डॉ. भीकम सिंह का यात्रा- संस्मरण पढ़ा। पन्नों पर कुदरत के रंग और कुदरत के उन रंगों की एक नई दुनिया में ले जाती सम्मोहित करती तस्वीरें! सचमुच कुदरत के पास जादू का पिटारा है और वह पिटारा खुलता है ‘बुराँश के उस पार’ के पन्ने पलटते हुए। ‘बुराँश के उस पार’ हर कदम पर रोमांच का अनुभव कराती कुदरत की जादूगरी है। डॉ. भीकम सिंह शब्दों के जादूगर हैं, जो प्रकृति के कल्पना से परे सौंदर्य के जादू को अपने शब्दों के जरिए पन्नों पर बिखेरकर सबकी आँखों को बाँध देते हैं। त्रिवेणी और हिन्दी हाइकु पर प्रकाशित इनकी शब्दशक्ति इसकी साक्षी है। इनके हाइकु- संग्रह ‘सिवानों पर गाँव’, चोका- संग्रह ‘थके– से सहयात्री’ इनके और प्रकृति के मध्य शाश्वत सम्बन्ध की अभिव्यक्ति है।

पुस्तक में लेखक ने अपने पर्वतारोहण के साहसिक अभियान के दौरान मिजोरम, डलहौजी- खज्जियार, केदार काँठा, देवरियाताल तुंगनाथ चोपता, ब्रह्मताल सम्मिट, लेह, भृगु लेक और जलोरी पास आदि पर्वतीय स्थलों की यात्रा करते हुए वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य के शब्द- चित्र बनाए हैं–

ऊँची- नीची पहाड़ियों की टेढ़ी- मेढ़ी घुमावदार सड़कें, पगडंडियाँ– बुराँश से ढकीं, बुराँश, देवदार से ढकी घाटी, बर्फ ओढ़े देवदार, पहाड़ों, पगडंडियों, रास्तों पर, घाटियों में कहीं जंगली फूल, सूखी घास, पत्तों, तिनकों का बिछौना, कहीं मखमली घास का कालीन, कहीं इधर गहरी घाटी, उधर दीवार की तरह खड़ा ओक का घना जंगल, कहीं दोनों ओर गहरी घाटी, घाटियों में उड़ते अलग- अलग रंग- रूप के पंछी, सेव के पेड़ों की शाखाओं पर खेलती तितलियाँ, रखाल, सागौन, चीड़, बाँस के जंगल, ऊँचे पॉपलर, बांज, मतीरा, आडू, खरसू संतरे के पेड़, पेड़ों को दमकाता साँझ का आकाश, एशिया का सबसे बड़ा बुग्याल यानी हरे मखमली घास का मैदान, फूलदार झाड़ियाँ, कहीं उछलता- कूदता हिमालयन लंगूर, कहीं रंगीन पंख समेटे मोनाल, चाय के बागान, पहाड़ों पर तिरछे, सीधे, छोटे-छोटे सीढ़ीनुमा खेत, खेतों में मुड़े जल के स्रोत, कहीं झरने का प्रवाह मोड़ता बुराँश, सूरज की किरणों को छूती हिमशिखरों की चोटियाँ, बहते झरनों की धुन, ओक के जंगलों की चुप्पी, बुराँश की खुशबू, पेड़ों को जगाती बर्फीली हवा, ओक, बुराँश, चीड़ के बीच कच्चे रास्ते और रास्तों की थकान मिटाता बुराँश का जूस।

कहीं गले मिलती अलकनन्दा और मंदाकिनी, भगीरथी से मिलकर गंगा बनती अलकनन्दा, कहीं समुद्र तल से कई हजार फुट की ऊँचाई पर आक्सीजन की कमी से उखड़ती साँसों को प्राणवायु देता सिन्धु और जांस्कर नदी का संगम, संगम की तट की चट्टानों से टकराती लहरें, पल- पल रंग बदलती पैंगोंग झील, बर्फीले पहाड़ों के बगल में सेंड ड्यून, सेंड ड्यून के बगल में पत्थरों की चादर ओढ़े दूर-दूर तक बिछी रेत में शांत बहती नदी, घिरती घटा, उमड़ते मेघ, झर-झर झरती बर्फ, स्कीइंग का मैदान बने पहाड़ी के टीले और बर्फ में दबे टैंट!

लेखक साथी पर्वतारोहियों संग कभी एक रिज, कभी बुराँश के पेड़ों के सहारे, झूला परजीवी को पैरों से रौंदते चलते हैं, कभी जोंक प्रभावित जंगल से गुजरते हैं, कभी बर्फ की चादर ओढ़े पगडंडी के फिसलन भरे रास्ते में उन्हें ओक की बाहें सहारा देती हैं और कभी ढलवाँ पगडंडी पर बिना स्की, बिना स्केट, वे सर्र-सर्र फिसलते चलते हैं। बढ़ती बर्फबारी में रास्तों के सिरे ढूँढते बर्फ पर फिसलते चलते ये ट्रैकर सूरज निकल आने से रास्ता और फिसलन भरा हो जाने की चिंता से तेज चलते हैं लेकिन हवा का वेग कदमों को रोकता है। लेखक बैठ-बैठकर फिसलते हुए स्लीपरी रास्ता तय करते हैं।

आधी रात को अँधेरे में टॉर्च लेकर सम्मिट पाइंट की ओर बढ़ते, लगातार गिरते बर्फ के फोहों के बीच बर्फ पर फिसलते अनिर्वचनीय आनन्द से भरे ये ट्रैकर दुनिया के अटूट नियम को तोड़ देते हैं, जब वे गिरते वक्त खिलखिलाते हैं। घुटने तक बर्फ में धँसते पैर को बाहर खींचकर आनन्दित होते, जमी झील के ऊपर चहलकदमी करते ये ट्रैकर उस पथ के पथिक हैं, जो वास्तविक जीवन की ओर जाता है।

सृष्टि के आरम्भ से ही यात्रा का शुभारंभ हुआ। स्रष्टा ने भी यात्रा की है, सभी देवी- देवताओं के अलग-अलग वाहन उनकी यात्रा वृत्ति को दर्शाते हैं।

जीवन एक यात्रा है। यात्रा का जीवन में विशेष महत्त्व है। यात्रा का महत्त्व तब और बढ़ जाता है, जब मनुष्य को प्रकृति के पास जाने का अवसर मिलता है क्योंकि प्रकृति और मनुष्य के बीच का सम्बन्ध शाश्वत है। (जिसे विरला ही समझता है) प्रकृति की गोद में ले जाकर यात्रा हमें उस सम्बन्ध से मिले अलौकिक सुख से भर देती है जिसमें डूबकर हम महसूस करते हैं कि यात्रा एक जीवन है।

हिंदी साहित्य में यात्रा- साहित्य अपने विविध उद्देश्य के साथ विविध शैलियों में लिखा गया है। डॉ. भीकम सिंह का प्रकृति की ओर लौटने के उद्देश्य से रचा गया यह यात्रा- साहित्य आज की महानगरीय संस्कृति के दौर में महत्त्वपूर्ण है। डॉ. भीकम सिंह के यात्रा- साहित्य की विशेषता यह है कि वे विविध बिम्बों को यथावत प्रस्तुत करते हुए हर स्थान की स्थलाकृति बनाते चलते हैं। दुर्गम ट्रैकिंग स्थलों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती पुस्तक साहसिक यात्रा के यायावर के लिए एक मार्गदर्शिका है। लेखक ने हर ट्रैक पर की गई अपनी यात्रा के हर क्षण की अनुभूति से उस स्थान का पूरा का पूरा नक्शा पन्नों पर बनाकर रख दिया है।

लेखक ने इस प्रकार प्रत्येक स्थल के विविध परिदृश्यों के शब्द-चित्र बनाए हैं, कि हर स्थल के भूगोल को विस्तार से समझाया है। हर ट्रैक की भौगोलिक स्थिति लेखक ने इस तरह बताई है कि पाठक वहाँ अपनी मौजूदगी महसूस करता है।

प्राकृतिक विरासत को सहेजता यह यात्रा- संस्मरण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है और राष्ट्रीय एकता, भाषा और संस्कृति के आदान-प्रदान में भी अपना योगदान देता है।

लेखक के अनुसार यह प्रकृति की यात्रा है परन्तु ‘बुराँश के उस पार’ के पन्ने पलटते हुए, पाठक प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा तो देखता ही है, लेखक ने जाने- अनजाने प्रत्येक स्थल के इतिहास, भूगोल, धर्म, संस्कृति से भी उसका परिचय कराया है। यात्रा स्थलों के अस्तित्व के साथ, लोक मान्यताओं, परंपराओं व उनसे जुड़ी कथा, किंवदंतियों और वहाँ क्या विशेष है, आदि की जानकारी देते हुए लेखक हर स्थान के परिवेश के साथ-साथ वहाँ के लोकजीवन की झलक भी दिखाते चलते हैं। हालांकि लेखक ने केवल प्राकृतिक सौंदर्य और शांति की ओर ध्यानाकर्षित किया है। प्राकृतिक सौंदर्य और असीम शांति का अनुभव कराती लेखक की जंगलों, फूलों, पेड़ों, नदियों, झील, झरनों और पहाड़ों की यह यात्रा पाठक को प्रकृति के चमत्कारी रूप की ओर खींचती है। प्रकृति के सौंदर्य की सम्मोहित कर देने वाली जादुई शक्ति दिखाती लेखक की लेखनी में गहरी संवेदनशीलता, चित्रात्मकता और एक सटीक शोध की झलक मिलती है।

हिन्दी के यात्रा- साहित्य की परम्परा में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के ‘सरयू पार की यात्रा’ से लेकर मोहन राकेश के ‘आखिरी चट्टान तक’ के बाद ‘बुराँश के उस पार’ का नाम भी जुड़ गया है, जहाँ हर मोड़ पर एक नया, अकल्पनीय संसार है और हर कदम पर कुदरत की एक नई जादूगरी सहयात्री बने पाठक को रोमांचित करती है।

‘बुराँश के उस पार’ यात्रा-संस्मरण: डॉ. भीकम सिंह, पृष्ठ: 168, मूल्य: रुपये, ISBN: 978-93-94221- , प्रथम संस्करण: 2024, प्रकाशक: अयन प्रकाशन, जे–19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली–110059

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