‘यह यात्रा कहां शुरू कहां खतम’ / जयप्रकाश चौकसे

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‘यह यात्रा कहां शुरू कहां खतम’
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2020


आशुतोष मुखर्जी के उपन्यास से प्रेरित फिल्मकार असित सेन की फिल्म ‘सफर’ में राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर, फिरोज खान, नादिरा और आई.एस, जौहर ने अभिनय किया था। ‘सफर’ का कथासार-गरीब परिवार में जन्मा नायक अपनी प्रतिभा और परिश्रम से समाज में सम्मान जनक स्थान प्राप्त करता है। मेडिकल में पढ़ते हुए उसकी मित्रता सहपाठी से हो जाती है। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर ने ये भूमिकाएं अभिनीत की थीं। दोनों को प्रेम हो जाता है परन्तु विवाह के पहले ही राजेश खन्ना अभिनीत पात्र को लाइलाज कैंसर हो जाता है। शर्मिला टैगोर अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए एक छात्र को पढ़ाने जाती हैं। छात्र का बड़ा भाई उससे प्रेम करने लगता है। कालांतर में दो घटनाएं होती हैं। फिरोज खान को व्यवसाय में बड़ा घाटा होता है और उसे यह ज्ञात होता है कि उसकी पत्नी का राजेश खन्ना से प्रेम रहा है। वह आत्महत्या कर लेता है। पुलिस शक के आधार पर उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लेती है। अदालत में फिरोज खान अभिनीत पात्र की मां बयान देती है कि उसकी बहू पर लगाया आरोप निराधार है। मां की भूमिका नादिरा ने अभिनीत की थी। ज्ञातव्य है कि महबूब खान ने नादिरा को अपनी फिल्म ‘आन’ में दिलीप कुमार के साथ प्रस्तुत किया था। यह फिल्म शेक्सपीयर के नाटक ‘द टेमिंग ऑफ द श्रु’ से प्रेरित थी। नादिरा ने किशोर साहू निर्देशित ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ में नकारात्मक भूमिका अभिनीत की थी। इस फिल्म का गीत ‘ये मंजिलें हैं कौन सी, कहां शुरू कहां खतम’ आज भी लोकप्रिय है। इस फिल्म में डॉक्टर और नर्स की प्रेमकथा प्रस्तुत की गई।

दक्षिण के फिल्मकार श्रीधर ने राजेंद्र कुमार राजकुमार और मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ‘दिल एक मंदिर’ मात्र 30 दिन की शूटिंग में पूरी कर ली थी। इसका क्लाइमेक्स अजीबो गरीब था कि कैंसर का रोगी तो स्वस्थ हो जाता है परंतु डॉक्टर की मृत्यु हो जाती है। ज्ञातव्य है कि कैंसर, कोरोना की तरह नजदीकियों के कारण नहीं फैलता। ट्विटर संसार में टिप्पणी की गई कि राज कपूर की ‘बॉबी’ के गीत की तरह ‘हम तुम कमरे में बंद हो और चाबी खो जाए’। आज सभी अपने घरों में बंद हैं। इच्छा मृत्यु विषय पर पहली फिल्म खाकसार कि ‘शायद’ थी। गुलजार की विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म ‘अचानक’ में मृत्युदंड दिए गए मरीज को निरोग करने का काम एक डॉक्टर को दिया जाता है जिसका फांसी पर चढ़ाया जाना अदालत तय कर चुकी है। डॉक्टर ‘हिप्पोक्रेटिक ओथ’ से बंधे हुए हैं। ज्ञातव्य है कि ईशा पूर्व तीसरी सदी में ग्रीक मेडिकल विज्ञान के छात्रों को यह शपथ दिलाई जाती थी कि वह मरीज में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। कोरोना डॉक्टरों का इम्तिहान ले रहा है। सरकार लगातार विज्ञापन दे रही है कि मनुष्य की जीवन भर की बचत इलाज में खर्च हो जाती है, इसलिए मेडिकल बीमा कराना आवश्यक है। विजय आनंद की फिल्म ‘तेरे मेरे सपने’ में तो डॉक्टर कस्बे के उम्रदराज डॉक्टर के छोटे से अस्पताल में काम करते हैं। कस्बे की एक युवती से देवानंद अभिनीत डॉक्टर को प्रेम हो जाता है। साधनों की कमी और सीनियर डॉक्टर व पत्नी के बुरे व्यवहार के कारण देवानंद नौकरी छोड़कर महानगर चला जाता है। फिल्म में हेमा मालिनी एक सफल फिल्म सितारा बनी हैं। वह डॉक्टर पर मोहित हो जाती है। फिल्म में विजय आनंद ने यह भी रेखांकित किया कि गांव और कस्बों में अस्पताल नहीं हैं। कुछ जगह अस्पताल है परंतु यथेष्ट साधन नहीं हैं। टिमटिमाते दीये की रोशनी में शल्य क्रिया कैसे करें। फिल्म एजे क्रोनिन के उपन्यास ‘द सिटाडेल’ से प्रेरित थी। चिंताजनक बात यह है कि कोरोना कालखंड में महानगरों से लोग गांव लौट रहे हैं। जहां सुविधा नहीं है। अगर ग्रामीण क्षेत्र कोरोना से नहीं बचे तो भारत की बहुत हानि होगी।