‘सप्तरंग’: सामयिकता, माधुर्य और सरसता का संवाहक हाइकु-संग्रह’ / कविता भट्ट
समीक्षा सप्तरंग (हाइकु-संग्रह):सम्पादक डॉ. सुरंगमा यादव और कृष्णा वर्मा, अयन प्रकाशन, जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर नई दिल्ली-1159, वर्ष: 2021, पृष्ठ:107, मूल्य रु0 250/-
सम्पादकद्वय- डॉ. सुरंगमा यादव और कृष्णा वर्मा द्वारा सम्पादित हाइकु-संग्रह ‘सप्तरंग’- हरेराम समीप, डॉ. हरदीप कौर सन्धु, हरकीरत हीर, रमेश गौतम, डॉ. शिवजी श्रीवास्तव, डॉ.आशा पाण्डेय और पुष्पा मेहरा जैसे लोकप्रिय हाइकुकारों के विविध विषयों पर रचे गये सुन्दर हाइकु से सुसज्जित हाइकु-संग्रह है। सुन्दर आवरण पृष्ठ के साथ ही सुन्दर और सारगर्भित शीर्षक विषय-वस्तु के सम्बन्ध में बहुत कुछ प्रतिबिम्बित करता है। विविध विषयों पर सात हाइकुकारों के हाइकु का एक ही संग्रह में होना सुखद है। सम्पादकद्वय के अद्भुत सम्पादन में इस संग्रह के अन्तर्गत वैश्विक स्तर के हाइकुकारों के हाइकु चयनित, संकलित और सम्पादित किये गए हैं।
हरेराम समीप इस संग्रह के प्रथम हाइकुकार हैं। आत्मकथ्य को एकाकी क्षणों का साक्षी बनाते हुए आपने-कौन छन्द में/ दुःख की धड़कन/ तुझको बाँधूँ (पृष्ठ 12) जैसे सुन्दर हाइकु रच डाले। वर्तमान, गरीब और किसान, व्यवस्था और नारी जीवन जैसे ज्वलंत और सामयिक विषयों पर लेखनी चलाते हुए आपके उद्गार सारगर्भित हाइकु के रूप में उल्लेखनीय हैं। एक हाइकु इस प्रकार है-
बुनें कालीन/ फिर भी वह पाए/ नंगी ज़मीन (पृष्ठ 17)।
डॉ. हरदीप कौर सन्धु ने गाँव वो मेरा, बिखरी यादें ,जिन्दगी के सफर में, एक अनोखा सच, प्रकृति और पावन एहसास जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत आपने जीवन के यथार्थ को प्रतिबिम्बित किया है। इन शीर्षकों के अन्तर्गत-
याद किशोरी/ मन-खिड़की खोल/ करे कलोल (पृष्ठ 25) तथा गोद में नन्ही/ माँ के आँचल म ज्यों/ खिली चाँदनी (पृष्ठ 27) जैसे हाइकु उल्लेखनीय हैं।
हरकीरत हीर द्वारा राखी, दीपावली, माँ, शीत, दर्द, बारिश, प्रेम-दिवस और होली के रंग जैसे विषयों पर केन्द्रित हाइकु ने संग्रह में चार चाँद लगा दिए हैं- जलाऊँ प्रिय/ तेरे नाम का दीया/ हर दीवाली (पृष्ठ 39) तथा झाड़ती रही/ देह, दर्द की राख/ उम्र न हँसी (पृष्ठ 42) इत्यादि जैसे हाइकु सुन्दर ढंग से सृजित हुए हैं।
रमेश गौतम ने बच्चे, पुष्प, नदी, कोरोना, जीवन-बोध, माँ और वर्षा जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत बहुत ही सारगर्भित हाइकु रचे हैं। इस प्रकार- गुलाबों पर/ तितलियाँ लिखती/रोज रूपक (पृष्ठ 51) और अपराध है/ विद्रूपता के बीच/ तटस्थ होना (पृष्ठ 57) इत्यादि जैसे हाइकु उल्लेखनीय हैं।
डॉ. शिवजी श्रीवास्तव ने उत्कृष्टता का परिचय देते हुए हँसी, नदी, धूप, प्रेम, रात्रि और ज्ञान-वैराग्य जैसे सुन्दर शीर्षकों के माध्यम से अनेक सुन्दर हाइकु प्रस्तुत किए हैं। अग्रांकित जैसे अनेक हाइकु मर्मस्पर्शी हैं- गाँव का स्कूल/ बच्चों का आकर्षण/ मिड-डे-मील (पृष्ठ 63) और नैन तुम्हारे/ महाकाव्य रच दें/ जहाँ निहारें (पृष्ठ 70)। डॉ.आशा पाण्डेय जी के हाइकु को पढ़ते हैं तो स्पष्ट होता है कि आपने जीवन, नारी, प्रेम, माँ, मौसम, रिश्ते व प्रकृति जैसे विषयों को सुन्दर शब्दों में प्रस्तुत किया है। अभिव्यक्ति को स्वर देते हुए आपने प्रेम-जीवन/ सुकुमार संयोग/ डूबो तो मिले (पृष्ठ 81) तथा विपुल जल!/ प्यासा पड़ा सागर!/पानी की चाह (पृष्ठ 88) जैसे सुन्दर और सारगर्भित हाइकु रचे हैं।
पुष्पा मेहरा ने यादें, भोर, सागर, झील तथा जल जैसे रोचक विषयों पर लेखनी चलाई है। निःसंदेह एक से बढ़कर एक हाइकु आपने रचे। दो उदाहरण- स्मृति के दीप/ गहरी मन नदी में/ उजाला भरें (पृष्ठ 93) और तन्हा थी साँझ/ लिये स्वर्ण दीप वो/ सिन्धु में कूदी (पृष्ठ 96) जैसे अत्युत्तम हाइकु इस संग्रह के सौन्दर्य में वृद्धि कर रहे हैं।
डॉ. सुरंगमा यादव तथा कृष्णा वर्मा जैसे अनुभवी सम्पादकद्वय ने श्रेष्ठ हाइकु चयन और विषयों को एक ही संग्रह में संकलित किया। चयन में आपने अद्भुत क्षमता का परिचय दिया। हाइकु के इस अतिसामयिक संग्रह को अनेक नवीन प्रयोग समग्रता की ओर ले जाते हैं। अनुभवी हाइकुकारों ने अपनी- अपनी शैली में विभिन्न बिषयों को हाइकु का विषय बनाया है। अनेक सुन्दर विषयों पर रचित हाइकु इस संग्रह को विशिष्ट बनाते हैं। साररूप में सामयिकता, माधुर्य और सरसता का संवाहक यह संग्रह सभी के लिए पठनीय और संग्रहणीय है।